<figure> <img alt="राहुल गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/13709/production/_110852697_6714bb35-f18d-4e52-8012-19e72e127ba8.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>राहुल गांधी</figcaption> </figure><p><strong><em>201</em></strong><strong><em>5:</em></strong><strong><em>कांग्रेस 0</em></strong></p><p><strong><em>2020</em></strong><strong><em>:</em></strong><strong><em>कांग्रेस 0</em></strong></p><p>ये वो आंकड़ा है जो कांग्रेस पार्टी दिल्ली में लगातार दो विधानसभा चुनावों के बाद झेलती नज़र आ रही है.</p><p>इस बार भी दिल्ली में कांग्रेस का अस्तित्व शून्य पर सिमट गया. कभी दिल्ली में पहले नंबर की पार्टी रही कांग्रेस फिसल कर सबसे नीचे कैसे आ गई?</p><p>दिल्ली में 15 वर्षों तक सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी शून्य पर कैसे आ गई?</p><p>कभी कांग्रेस का गढ़ रही दिल्ली ने आज उसे पूरी तरह नकार क्यों दिया?</p><figure> <img alt="दिल्ली के मतदाता" src="https://c.files.bbci.co.uk/02D5/production/_110852700_d336ba8c-502f-4256-925f-0e3f1baaf6e0.jpg" height="672" width="1011" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>क्यों हुई कांग्रेस की ये हालत?</h3><p>वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक <strong>विनोद शर्मा </strong>इसके लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराते हैं.</p><p>उन्होंने बीबीसी हिंदी से बातचीत में कहा, "ग़ैरहाज़िरी को राजनीति में ख़ुदकुशी जैसा माना जाता है और इस दिल्ली चुनाव में कांग्रेस पूरी तरह ग़ैरहाज़िर रही, पूरी तरह ग़ायब रही. इसका मतलब ये है कि कांग्रेस ने दिल्ली में ख़ुदकुशी की है."</p><p>इस चुनाव में कांग्रेस पूरी तरह नदारद रही. न उसके बड़े नेताओं ने ज़्यादा रैलियां, न उसके कार्यकर्ता ज़मीन पर दिखे और न ही उसने सोशल मीडिया पर कारगर रणनीति अपनाई. </p><p>कांग्रेस पार्टी पर क़रीब से नज़र रखने वाले <strong>राशिद </strong><strong>किदवई </strong>का मानना है कि कांग्रेस की सबसे बड़ी कमी ये है कि वो अपनी बात जनता तक प्रभावी तरीके से पहुंचा नहीं पाती. </p><p>वो कहते हैं, "इससे भी ज़्यादा बुरी बात ये है कि कांग्रेस अपनी कमियों को सुधारना नहीं चाहती. साल 2014 से लेकर अब तक कांग्रेस ने अपने मीडिया विभाग को नहीं बदला है. दूसरी तरफ़ देखें तो आम आदमी पार्टी ने अपनी बात जनता तक पहुंचाने की हर छोटी-बड़ी कोशिश की. यहां तक कि आख़िरी वक़्त में उन्होंने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर तक की मदद ले ली. वहीं, कांग्रेस ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की."</p><p>वरिष्ठ पत्रकार <strong>स्मिता सिंह</strong> का मानना है कि कांग्रेस इस चुनाव में कोई ‘प्लेयर’ ही नहीं थी. वो कहती हैं कि पिछले पांच वर्षों में कांग्रेस ने ऐसा कुछ किया ही नहीं था जिससे वो दिल्ली के लोगों को भरोसा दिला पाती.</p><p>वो दिल्ली में किसी मज़बूत नेतृत्व और चेहरे न होने को भी कांग्रेस की बड़ी ग़लती बताती हैं.</p><p>वो कहती हैं, "दिल्ली में भले ही बीजेपी ने जनता के सामने मुख्यमंत्री पद के लिए कोई चेहरा नहीं रखा लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उसके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह जैसे चेहरे थे. एक वर्ग को लुभाने के लिए उनके पास तीन तलाक़, अनुच्छेद 370 और नागरिकता क़ानून जैसे मुद्दे थे. इसके उलट, कांग्रेस के पास न मुद्दा था और न चेहरे."</p><p>राजनीतिक विश्लेषक <strong>नीरजा चौधरी</strong> की भी कुछ ऐसी ही राय है.</p><p>वो कहती हैं, "बाकी नेतृत्व का छोड़िए, मौजूदा वक़्त में तो यही ठीक से नहीं मालूम की कांग्रेस का अध्यक्ष कौन है. इसके अलावा दिल्ली में जैसा चुनावी अभियान उन्होंने किया, वो बिल्कुल भी प्रभावी नहीं था. उन्होंने सुभाष चोपड़ा जैसे नेता को आगे रखा, जिसे जनता ने पूरी तरह नकार दिया."</p><p>नीरजा कहती हैं, "दिल्ली में बीजेपी की ओर ख़ुद प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ ने चुनाव प्रचार किया. आम आदमी पार्टी का हर नेता और कार्यकर्ता चुनाव अभियान में लगा रहा जबकि कांग्रेस के बड़े नेता चुनावी मैदान से लगभग नदारद रहे."</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-51298395?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">परवेश वर्मा: शाहीन बाग़ में लोग जिहाद की बात करते हैं</a></p><figure> <img alt="सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/50F5/production/_110852702_8a52080f-8e88-4f2c-83cd-cb032435d154.jpg" height="741" width="940" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>चुनाव में हारना ही कांग्रेस की रणनीति थी?</h3><p>चुनाव के रुझान आते ही कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने कहा, "सबको मालूम था कि आम आदमी पार्टी फिर से सत्ता में आएगी."</p><p><a href="https://twitter.com/ANI/status/1227097874720100352">https://twitter.com/ANI/status/1227097874720100352</a></p><p>वहीं, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने कहा, "अपने बारे में तो हमें पहले से पता था. सवाल ये है कि बड़े-बड़े दावे करने वाली बीजेपी का क्या हुआ?"</p><p><a href="https://twitter.com/ANI/status/1227121903279562753">https://twitter.com/ANI/status/1227121903279562753</a></p><p>वरिष्ठ पत्रकार <strong>अपर्णा द्विवेदी </strong>मानती हैं कि ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं जो कांग्रेस अगर चाहती तो कर सकती थी लेकिन उसने किया नहीं.</p><p>वो कहती हैं, "चुनाव में कांग्रेस ने जनता के सामने किसी लोकप्रिय नेता का चेहरा नहीं रखा. आज की तारीख़ में उसने सुभाष चोपड़ा और कीर्ति आज़ाद जैसे नेताओं को दिल्ली चुनाव का चेहरा बनाया. सुभाष चोपड़ा की बेटी शिवानी चुनाव लड़ रही थीं, वो उसमें व्यस्त थे और कीर्ति आज़ाद की बेटी पूनम आज़ाद चुनाव लड़ रही थीं, वो उनके चुनावी अभियान में व्यस्त थे. यानी पार्टी का कोई नेता पार्टी को आगे रखकर चुनाव नहीं लड़ पाया."</p><p>इन सभी बातों पर ध्यान दें तो साफ़ लगता है कि कांग्रेस ने इस बार कोई कोशिश ही नहीं की. उसने जैसे पहले से ही यह तय कर रखा था कि वो पिछले विधानसभा का ज़ीरो इस बार भी मेन्टेन करने का मन बना चुकी थी. </p><p>अब सवाल है कि कांग्रेस ने ऐसा किया क्यों? क्यों उसने जानबूझकर कोई कोशिश नहीं की?</p><p>विनोद शर्मा की मानें तो ये कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति थी.</p><p>वो कहते हैं, "मेरे अनुमान से कांग्रेस इस बार आम आदमी पार्टी के साथ <strong>’वैचारिक गठबंधन'</strong><strong><em>(tactical alliance) </em></strong>में थी. वो चाहते थे कि दिल्ली में एंटी-बीजेपी वोट बिखरे नहीं. शायद यही वजह है कि राहुल और प्रियंका गांधी ने दिल्ली में बहुत कम रैलियां कीं और बहुत लो प्रोफ़ाइल रहते हुए ये चुनाव लड़ा."</p><p>विनोद शर्मा कहते हैं कि जैसे वोटर कई बार रणनीति के तहत वोट करता है वैसी ही राजनीतिक पार्टियां भी रणनीति के तहत चुनाव लड़ती हैं.</p><p>वो कहते हैं, "कांग्रेस के पारंपरिक वोट, इस बार आम आदमी पार्टी को गए हैं. शीला दीक्षित से ज़माने में कांग्रेस का जो जनाधार था या यूं कि कहें कि जो सेक्युलर जनाधार था वो ज़्यादा मज़बूत होकर ‘आप’ के पास चला गया है और इस तरह आम आदमी पार्टी दिल्ली की नई कांग्रेस बन गई है."</p><p>कांग्रेस की रणनीति को समझाने के लिए एक सामरिक रणनीति का ज़िक्र करते हैं: कई बार आपको कुछ इंच पीछे हटना पड़ता है ताकि आने वाले वक़्त में आप कुछ मील आगे बढ़ सकें.</p><p>वो कहते हैं, "कांग्रेस ने इसी सामरिक रणनीति के तहत अपने उम्मीदवार तो उतारे लेकिन न तो ज़ोर-शोर से प्रचार किया और न ही पूरी ताक़त के साथ लड़ाई लड़ी." </p><p>वरिष्ठ पत्रकार स्मिता सिंह भी विनोद शर्मा से सहमति जताती हैं. </p><p>वो कहती हैं, "कांग्रेस के कुछ नेताओं का कहना है कि अगर उन्हें ज़रा भी ये उम्मीद होती कि वो आम आदमी पार्टी को थोड़ा-बहुत नुक़सान भी पहुंचा पाते तो वो कोशिश करते मगर उन्हें दूर-दूर तक ऐसी कोई आस नहीं थी. इसलिए उन्होंने अपना पहला मक़सद बीजेपी को हराने का बनाया."</p><p>राजनीतिक विश्लेषक अपर्णा द्विवेदी का भी कुछ ऐसा ही मानना है.</p><p>वो कहती हैं, "इस दिल्ली चुनाव कांग्रेस चुनाव में रणनीति के तहत ही पीछे रही है. उन्होंने जो रैलियां की वो सांकेतिक थीं. युवा उम्मीदवारों के नाम पर उन्होंने जिस तरह टिकट बांटे, वो भी बहुत सोच-समझकर लिया गया फ़ैसला नहीं था. कांग्रेस नहीं चाहती थी कि बीजेपी विरोधी वोट बंटें."</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-51455313?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">दिल्ली का जो भी नतीजा आता है, इसके लिए मैं ज़िम्मेदार हूं: मनोज तिवारी</a></p><figure> <img alt="दिल्ली मतदाता" src="https://c.files.bbci.co.uk/9F15/production/_110852704_11dc7f49-8edd-4120-8d62-e22fb46f6b56.jpg" height="556" width="1017" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>’कांग्रेस ने कोशिश की लेकिन जनता ने नकारा'</h3><p>हालांकि राशिद किदवई इस ‘थ्योरी’ (कांग्रेस के जानबूझकर चुनाव हारने की) को पूरी तरह नकारते हैं. </p><p>बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस ने जानबूझकर कोशिश नहीं की. राजनीतिक पंडित कई बार कांग्रेस के बारे में एक्स्ट्रीम होकर सोचते हैं. फिर चाहे वो पार्टी के सकारात्मक पहलू के बारे में हो या नकारात्मक. राजनीति का मामला घर-परिवार जैसा नहीं होता जहां लोग एक-दूसरे के लिए त्याग करने में नहीं हिचकते. राजनीति से लाखों-करोड़ों पार्टी कार्यकर्ता, नेता, संसाधन और खर्च जैसे कई पहलू जुड़े होते हैं."</p><p>राशिद किदवई कहते हैं, "मुझे लगता है कि कांग्रेस ने अपनी तरफ़ से भरकस प्रयास किया लेकिन देश और दिल्ली में जैसा माहौल है वो उसके अनुकूल नहीं है. इस बार एक तरफ़ आम आदमी पार्टी के कामों का रिपोर्ट कार्ड था तो दूसरी और सीएए और शाहीन बाग़ प्रदर्शन जैसे मुद्दे. ऐसे में कांग्रेस के पारंपरिक वोटर छिटककर ‘आप’ के पास चले गए."</p><p>किदवई कहते हैं, "शाहीन बाग़ और नागरिकता क़ानून जैसे मुद्दों पर केजरीवाल और उनकी पार्टी ने बहुत खुलकर अपनी राय नहीं रखी. इसके उलट कांग्रेस मुखर होकर सीएए का विरोध करती रही. लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस के पारंपरिक मतदाताओं उसकी स्थिति थे वाकिफ़ थे और जानते थे कि कांग्रेस को वोट देने का कोई फ़ायदा नहीं होने वाला. इसलिए कुछ मसलों पर ‘आप’ से असंतुष्ट होने के बावजूद उन्होंने वोट उसे ही दिया."</p><p>राशिद किदवई का मानना है कि दिल्ली के नतीजे पूरी तरह से ‘वोटर-ड्रिवेन’ हैं. </p><p>वो कहते हैं कि अगर कांग्रेस बीजेपी को हराने पर इतनी ही आमादा होती तो उसके सामने चुनाव न लड़ने का विकल्प भी था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.</p><p>किदवई पूछते हैं, "क्या कांग्रेस के चुनावी अभियान रेडियो और सोशल मीडिया में नहीं दिखाई पड़े? क्या उन्होंने अपना घोषणात्र जारी नहीं किया? क्या उन्होंने पैसे खर्च नही किए?"</p><p>बड़े नेताओं के सक्रिय न होने के बारे में किदवई कहते हैं, "अगर अमित शाह और पूरी बीजेपी के इस कदर आक्रामक चुनावी अभियान का फ़ायदा नहीं हुआ तो राहुल और प्रियंका के रैलियों का कितना फ़ायदा हो जाता? बात बस इतनी सी है कि कांग्रेस ने अपनी ओर से सबकुछ किया लेकिन लोगों ने उसे ठुकरा दिया."</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-51456041?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">दिल्ली के नतीजे- बिरयानी की कहानी और गोली मारने के नारे BJP के कितना काम आए? </a></p><figure> <img alt="राहुल गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/108F1/production/_110852876_246c7d9b-555b-408b-a7db-c33ff8026c73.jpg" height="730" width="839" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को फ़ायदा?</h3><p>वरिष्ठ पत्रकार स्मिता सिंह कहती हैं कि दिल्ली में बीजेपी के हारने का फ़ायदा राष्ट्रीय राजनीति और आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को ही मिलेगा.</p><p>वो कहती हैं, "जैसे-जैसे बीजेपी का ग्राफ़ नीचे गिरेगा, इसका फ़ायदा कांग्रेस को मिलेगा क्योंकि इतनी बुरी हालत के बाद भी, बीजेपी के बाद दूसरी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस ही है. अगले लोकसभा चुनाव आने तक अगर लोगों का भरोसा बीजेपी में कम होता है तो उनके लिए दूसरा विकल्प कांग्रेस ही होगी."</p><p>राशिद किदवई का भी मानना है कि दिल्ली में बीजेपी की हार का फ़ायदा कांग्रेस को राष्ट्रीय राजनीति में मिलेगा. </p><p>वो कहते हैं, "पहले ऐसा होता था कि कांग्रेस एक तरफ़ होती थी और बाकी विपक्षी पार्टियां दूसरी तरफ़. अब हालात उलट गए हैं. अब बीजेपी एक तरफ़ होती है और बाकी विपक्षी पार्टियां दूसरी तरफ़. इसलिए कांग्रेस आज किसी भी तरह से प्रमुख विपक्षी पार्टियों में बने रहना चाहती है और राज्यों की सत्ता का हिस्सा बनने रहने के तरीके भी ढूंढ रही है. जैसा कि उसने महाराष्ट्र और झारखंड में किया."</p><p>राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी का मानना है कि दिल्ली चुनाव में बीजेपी की हार का असली फ़ायदा कांग्रेस को उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में मिल सकता है, जो डेढ़ साल बाद होंगे.</p><p>वो कहती हैं, "बिहार और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की हालत बहुत अच्छी नहीं है लेकिन उत्तर प्रदेश में वो ज़रूर कोशिश कर सकती है. हाल के दिनों में प्रियंका गांधी भी यूपी की राजनीति में काफ़ी सक्रिय हुई हैं. इसलिए अनुमान है कि वो आने वाले वक़्त में उत्तर प्रदेश को साधने का पूरा प्रयास करेगी."</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/social-51445389?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’48 के ट्वीट’ पर मनोज तिवारी की खिंचाई</a></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां </strong><a 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दिल्ली विधान सभा चुनाव 2020: कांग्रेस ने क्या ‘ख़ुशी से ख़ुदकुशी’ कर ली?
<figure> <img alt="राहुल गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/13709/production/_110852697_6714bb35-f18d-4e52-8012-19e72e127ba8.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>राहुल गांधी</figcaption> </figure><p><strong><em>201</em></strong><strong><em>5:</em></strong><strong><em>कांग्रेस 0</em></strong></p><p><strong><em>2020</em></strong><strong><em>:</em></strong><strong><em>कांग्रेस 0</em></strong></p><p>ये वो आंकड़ा है जो कांग्रेस पार्टी दिल्ली में लगातार दो विधानसभा चुनावों के बाद झेलती नज़र आ रही है.</p><p>इस बार भी दिल्ली में कांग्रेस का अस्तित्व शून्य पर सिमट गया. कभी दिल्ली में पहले नंबर की पार्टी रही कांग्रेस फिसल […]
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