<figure> <img alt="अमित शाह" src="https://c.files.bbci.co.uk/9EFB/production/_110699604_gettyimages-1133262716.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>"हम सभी एक ऐतिहासिक घटना के साक्षी बने हैं. भारत सरकार, असम सरकार, आब्सू और एनडीएफ़बी के सभी गुटों के बीच एक समझौता हुआ है जिस पर सभी ने हस्ताक्षर किए हैं."</p><p>भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने 27 जनवरी को अलगाववादी संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफ़बी) के सभी चार गुटों, ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (आब्सू) और केंद्र सरकार के बीच बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद ये बात कही.</p><p>इसके बाद उन्होंने कहा, "ये समझौता असम तथा बोडो क्षेत्र के सुनहरे भविष्य का दस्तावेज़ है. मैं मानता हूं ये एग्रीमेंट बोडो क्षेत्र के लिए और असम के लिए एक विकास का रास्ता प्रशस्त करने वाला एग्रीमेंट होने जा रहा है."</p><p>लेकिन उसी दिन यानी 27 जनवरी को कई ग़ैर-बोडो संगठनों ने बोडो स्टेक होल्डर्स (हितधारकों) के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के केंद्र सरकार के क़दम का विरोध करते हुए 12 घंटे का बंद बुलाया था. </p><p>इस बंद का बोडो बहुल इलाक़े में व्यापक असर देखा गया. </p><p>बोडो इलाक़े में सालों से बसे इन ग़ैर बोडो लोगों का आरोप है कि केंद्र सरकार ने महज़ अपने राजनीतिक नफ़े-नुक़सान को ध्यान में रखते हुए जल्दबाज़ी में यह समझौता किया है जिससे इलाक़े में विरोध बढ़ेगा.</p><h3>क्या है बोडो समझौता</h3><p>बोडोलैंड जिसे आधिकारिक तौर पर अब तक बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) कहा जाता है, इस समझौते के लागू होने के बाद इसका नाम बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (बीटीआर) हो जाएगा.</p><p>नए समझौते की शर्तों के अनुसार बीटीआर को अधिक अधिकार दिए जाएंगे. </p><p>इसके साथ ही बीटीसी की मौजूदा 40 सीटों को बढ़ाकर 60 किया जाएगा तथा इलाक़े में कई नए ज़िलों का गठन किया जाएगा. </p><p>गृह विभाग को छोड़कर विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार सारे बीटीआर के पास रहेंगे.</p><p>नए समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 30 जनवरी को एनडीएफ़बी के 1550 से अधिक कैडरों ने अपने हथियारों के साथ आत्मसमर्पण किया. इन्हें सरकार एकमुश्त सहायता के तौर पर भुगतान करेगी. </p><p>केंद्र सरकार ने नए समझौते की शर्तों पर अमल करने के लिए अगले तीन वर्षों में बोडोलैंड के विकास के लिए 1,500 करोड़ रुपये के एक पैकेज को मंज़ूरी दी है.</p><h1>क्यों हो रहा समझौते का विरोध</h1><p>ऑल कोच राजबंशी स्टूडेंट्स यूनियन के सचिव गोकुल बर्मन ने बीबीसी से कहा, "ये शांति समझौता नहीं है, यह अशांति का एक समझौता है." </p><p>उन्होंने इस शांति समझौते को ‘एकतरफ़ा’ और ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ क़रार देता हुए कहा, "सरकार को इस समझौते को अंतिम रूप देने से पहले सभी स्टेक होल्डर्स को यानी बोडोलैंड में बसे अन्य जनजाती के लोगों को विश्वास में लेना चाहिए था. सरकार ने यह एकतरफ़ा समझौता किया है जिससे ग़ैर-बोडो लोगों के अधिकारों को क्षति पहुंचेगी." </p><p>कोच राजबंशी छात्र नेता ने आगे कहा, "इस नए समझौते में राजनीतिक अधिकार से लेकर भूमि और शिक्षा का अधिकार केवल बोडो लोगों के लिए सुनिश्चित किया गया है. शिक्षा संस्थानों से लेकर नौकरियों तक में ग़ैर बोडो लोगों के लिए कुछ नहीं है. एक अलग राज्य गठन करने के लिए सरकार को जिस तरह के अधिकार प्रदान करने थे वो सभी इस समझौते के ज़रिए बोडो लोगों को दे दिए गए हैं, लिहाज़ा हमारा विरोध लगातार जारी रहेगा."</p><h1>भरोसे का सवाल</h1><p>कोच राजबंशी स्टूडेंट्स यूनियन के साथ ही नाथ-योगी स्टूडेंट्स यूनियन,ऑल बोडो माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन,ऑल आदिवासी स्टूडेंट्स यूनियन, ओबोडो सुरक्षा समिति और जनागोष्ठी स्टूडेंट्स यूनियन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि वे तब तक केंद्र शासित प्रदेश परिषद के गठन के ख़िलाफ़ अपना विरोध जारी रखेंगे जब तक कि सरकार क्षेत्र में रहने वाले ग़ैर-बोडो लोगों के मुद्दों पर चर्चा नहीं करती.</p><p>जबकि बोडो इलाक़े की एकमात्र लोक सभा सीट कोकराझाड़ से सांसद नब कुमार शरणीया ने 27 जनवरी को एक काला दिवस बताया. </p><p>सांसद नब कुमार शरणीया ने बीबीसी से कहा,"गृह मंत्री अमित शाह एक तरफ़ इस एग्रीमेंट को ऐतिहासिक कहते हैं और दूसरी तरफ़ उनकी सरकार इलाक़े के एकमात्र लोकसभा सांसद को बुलाना भी ज़रूरी नहीं समझती. सालों से बोडो इलाक़े में बसे ग़ैर बोडो लोगों को बिना भरोसे में लिए यह एग्रीमेंट कैसे विकास का रास्ता प्रशस्त करेगा?"</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50931675?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">असम में डिटेंशन सेंटर बनने की क्या है कहानी? </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50886138?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">असम डिटेंशन कैंप: मोदी का दावा कितना सही</a></li> </ul><h1>सरकार क्या कहती है?</h1><p>असम के वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, "राज्य सरकार बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल के तहत क्षेत्र के विकास के लिए तीन साल की अवधि के लिए प्रति वर्ष 250 करोड़ रुपये की राशि का निवेश करेगी. इसी अवधि के लिए भारत सरकार प्रतिवर्ष 250 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि का योगदान देगी." </p><p>"बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट्स (बीटीएडी) से सटे गांवों को शामिल करने और बहुसंख्यक आदिवासी आबादी के लिए एक आयोग की नियुक्ति की जाएगी. इस क्षेत्र में होने वाले विकास का फ़ायदा सभी नागरिकों को मिलेगा." </p><p>इसके अलावा नए समझौते के अनुसार केंद्र सरकार बोडोलैंड में एक राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय, उदालगुड़ी, बक्सा और चिरांग में भारतीय खेल प्राधिकरण केंद्र तथा उदालगुड़ी में एक राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान की स्थापना करेगी.</p><figure> <img alt="बोडोलैंड की डिमांड करता एक युवक" src="https://c.files.bbci.co.uk/179BB/production/_110699669_gettyimages-175549530.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>ग़ैर बोडो लोगों की शिकायत</h1><p>लेकिन नए समझौते में इतना कुछ होने के बाद भी क्षेत्र में बसे ग़ैर बोडो लोग अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करने की बात कह रहे हैं. </p><p>अबोडो सुरक्षा समिति के सचिव कहते हैं, "सरकार का इरादा अगर वाकई यहां बसे सभी नागरिकों का विकास करने का है तो इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले ग़ैर बोडो लोगों से क्यों बात नहीं की गई. बोडोलैंड में आदिवासी, नेपाली, बंगाली, कोच राजबंसी समेत कई जनजाति के लोग सालों से बसे हैं." </p><p>"बीजेपी सरकार ने 2003 में जो समझौता किया था, उसमें भी सभी जनजातियों के समान विकास की बात कही थी लेकिन हुआ कुछ नहीं जिसके फलस्वरूप अब तक हमें संघर्ष करना पड़ रहा है. राजनीतिक दलों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि बीटीएडी की जनसंख्या क़रीब 32 लाख है इसमें 24 लाख ग़ैर बोडो हैं अर्थात 78 फ़ीसदी जनसंख्या ग़ैर बोडो लोगों की है."</p><h1>स्वायत्तशासी कांउसिल</h1><p>अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 10 फ़रवरी, 2003 को हाग्रामा मोहिलरी की अध्यक्षता वाले विद्रोही संगठन बोडोलैंड लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) के साथ एक समझौता किया था जिसके आधार पर बीटीसी का गठन हुआ. </p><p>इस तरह असम के चार ज़िलों को लेकर बोडोलैंड क्षेत्र के लिए बीटीसी को एक स्वायत्तशासी कांउसिल बनाया गया और तब से हाग्रामा मोहिलरी ही बीटीसी के मुख्य कार्यकारी सदस्य हैं. </p><p>बीटीसी में सदस्यों की संख्या 40 है जिसमें केवल पांच सीट ग़ैर बोडों लोगों के लिए है और पांच सीट ऐसी हैं जिस पर इलाक़े से कोई भी चुनाव लड़ सकता है फिर चाहे वह बोडो ही क्यों न हो. जबकि 30 सीट केवल बोडो जनजाति के लोगों के लिए रिज़र्व हैं.</p><p>हथियार समर्पण करने के बाद राजनीति में क़दम रखने वाले हाग्रामा मोहिलारी ने बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट नामक एक राजनीतिक पार्टी बनाई जो असम में भाजपा की मौजूदा सरकार के साथ गठबंधन में है. </p><p><strong>नागरिकता क़ानून</strong><strong> का भी विरोध</strong></p><p>केवल भाजपा ही नहीं हाग्रामा की पार्टी इससे पहले कांग्रेस के साथ भी सरकार में शामिल थी. कई सार्वजनिक मौक़ों पर हाग्रामा कहते रहे हैं कि बोडोलैंड के लोगों का जिस किसी भी पार्टी की सरकार से विकास होगा वे उनके साथ ही जाएंगे.</p><p>लोकसभा सांसद शरणिया बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, "इस साल बीटीसी के चुनाव होने हैं और मौजूदा परिषद बदलने की संभावना सबसे ज़्यादा है. इसलिए बीजेपी को लगता है कि अगर हाग्रामा की पार्टी बीपीएफ़ कांउसिल चुनाव हार जाती है तो 2021 के असम विधानसभा चुनाव में जो बीपीएफ़ के 12 विधायक हैं उनका जीत पाना मुश्किल हो जाएगा. लिहाज़ा बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में जो मिशन 100 सीटों का लक्ष्य रखा है वो कामयाब होना मुश्किल हो जाएगा." </p><p>वो कहते हैं, "नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध को लेकर असम के बाकी इलाक़ों में बीजेपी की हालत पहले से ही ख़राब है. बोडो लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए बीजेपी ने यह राजनीतिक चाल चली है. क्योंकि बोडोलैंड से बाहर भी कार्बी-आंग्लोंग जैसे ज़िले में हज़ारों की संख्या में बोडो जनजाति के लोग बसे हुए हैं और उनका वोट भी महत्वपूर्ण है. बीजेपी अपने इस नुक़सान की भरपाई के लिए यह सब कुछ कर रही है. जबकि बोडोलैंड में बसे ग़ैर बोडो लोग नागरिकता क़ानून का विरोध कर रहे हैं."</p><p>सांसद नव कुमार शरणिया एक समय प्रतिबंधित विद्रोही संगठन उल्फ़ा के ‘खूंखार’ कैडर माने जाते थे जिन्हें सुरक्षाबलों ने कई बार पकड़ने की नाकाम कोशिश की. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50853649?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">CAA: क्या असम के उबाल से निकलेगी नई सियासी पार्टी?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50795607?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नागरिकता संशोधन: असम में ‘गुस्सा’ क्यों फूटा?</a></li> </ul><p>आख़िर में शरणिया ने हथियार समर्पण कर राजनीति में क़दम रखा और 2014 से वे लगातार बोडो इलाक़े की इस एकमात्र लोकसभा सीट से बतौर निर्दलीय चुनाव जीत रहे हैं. </p><p>यही कारण है कि इलाक़े में बसे ग़ैर बोडो लोगों की एक बड़ी आबादी अपने अधिकारों के लिए शरणिया को वोट देते आ रहे हैं.</p><p>हालांकि ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष प्रमोद बोडो इस नए समझौते को बोडो इलाक़े में शांति और विकास लाने वाला समझौता बता रहे हैं. </p><p>नए समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले बोडो छात्र नेता प्रमोद ने बीबीसी से कहा, "बोडो इलाक़े में लंबे समय से जो हिंसक संघर्ष चल रहा था उसे ख़त्म करने के लिए ही यह समझौता हुआ है. अब हमारे इलाक़े में एक भी बोडो विद्रोही संगठन नहीं बचा है. एनडीएफ़बी संगबिजीत के अध्यक्ष बी सओराइवरा इस शांति समझौते में शामिल होने के लिए म्यांमार से लौट आए हैं."</p><figure> <img alt="आत्मसमर्पण करते एनडीएफ़बी के कैडर" src="https://c.files.bbci.co.uk/15539/production/_110735378_gettyimages-1197608236.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>आत्मसमर्पण करते एनडीएफ़बी के कैडर</figcaption> </figure><h1>आगे भी हो सकता है आंदोलन?</h1><p>क्या आगे भी बोडोलैंड को एक अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर आब्सू आंदोलन करेगा? इस सवाल का जवाब देते हुए प्रमोद बोडो कहते हैं,"अलग राज्य बनाने की मांग को लेकर अभी कुछ भी नहीं होगा. हम चाहते है कि बोडोलैंड में सामाजिक, आर्थिक और शिक्षा के क्षेत्र में तेज़ी से विकास हो. इस समझौते के पीछे हम सबका मक़सद इलाक़े में शांति और विकास लाने का रहा है. क्योंकि क़रीब पांच हज़ार से ज़्यादा लोगों ने बोडोलैंड के आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवाई है. बहुत लोगों को जेल में रहना पड़ा है. इस तरह से हमारे इलाक़े का माहौल बहुत बिगड़ गया था."</p><p>दरअसल, असम के बोडो और अन्य ‘मैदानी जनजातियों’ के लिए प्लेन्स ट्राइबल्स काउंसिल ऑफ़ असम (पीटीसीए) के नेतृत्व में सबसे पहले 1960 के दशक में एक अलग केंद्र शासित प्रदेश गठन करने की मांग उठाई गई. </p><p>हालांकि, बाद में वैचारिक मतभेद और आपसी संघर्ष के कारण अलग राज्य गठन करने को लेकर पीटीसीए आंदोलन की एकजुटता कमज़ोर पड़ने लगी. ऐसे में पीटीसीए के सदस्यों के एक वर्ग ने अलग ‘उदयाचल’ राज्य के लिए हथियारों के साथ लड़ने का फ़ैसला किया. </p><p>इस तरह इलाक़े में अलगाववादियों ने हिंसा शुरू कर दी. </p><p>उसी बीच ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन का गठन हुआ और इसके अध्यक्ष उपेन ब्रह्म ने असम को दो बराबर हिस्सों में बांटने की मांग पर लंबा आंदोलन चलाया. </p><p>एक अलग बोडोलैंड राज्य की मांग को लेकर बोडो जनजाति से ही कई विद्रोही संगठन निकले. इनमें कुछ बोडो अलगाववादियों ने संप्रभुता की मांग भी उठाई. बोडो इलाक़े में काफ़ी हिंसा हुई. </p><p>अमित शाह ने ख़ुद जानकारी दी कि बोडोलैंड में हुई हिंसा में 4 हज़ार से अधिक लोगों की जान गई. हिंसा में मारे गए लोगों में 2823 नागरिक थे, 239 सुरक्षा बलों के जवान थे और अलग-अलग अलगाववादी गुटों के 939 कैडर थे.</p><p>इस क्षेत्र में बोडो और अन्य जनजातियों के बीच ख़ूनी संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है. साल 2012 में बोडो और बंगाली बोलने वाले मुसलमानों के बीच हुई हिंसा में सैकड़ों लोग मारे गए थे तथा हज़ारों की तादाद में लोग विस्थापित हुए थे जिस आज़ादी के बाद सबसे बड़ा लोगों का विस्थापन बताया गया. </p><p>लिहाज़ा इस नए समझौते की शर्तों को लागू करते वक़्त सरकार को इस संवेदनशील क्षेत्र में बसे सभी जनजातियों की बात ध्यान को पूरी अहमियत के साथ ध्यान में रखनी होगी.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a 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बोडो शांति समझौते को ग़ैर-बोडो क्यों बता रहें है ‘अशांति’ का समझौता?
<figure> <img alt="अमित शाह" src="https://c.files.bbci.co.uk/9EFB/production/_110699604_gettyimages-1133262716.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>"हम सभी एक ऐतिहासिक घटना के साक्षी बने हैं. भारत सरकार, असम सरकार, आब्सू और एनडीएफ़बी के सभी गुटों के बीच एक समझौता हुआ है जिस पर सभी ने हस्ताक्षर किए हैं."</p><p>भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने 27 जनवरी को अलगाववादी संगठन नेशनल डेमोक्रेटिक […]
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