<p>’हम आपके हैं कौन’ जैसी फ़िल्म बनाने वाले राजश्री फ़िल्म्स का यह नाम आख़िर कैसे पड़ा? ‘यश राज फ़िल्म्स’ के नाम में अगर ‘यश’ नाम यश चोपड़ा का है तो ‘राज’ कहां से आया? दीपिका के प्रोडक्शन हाउस का नाम ‘का प्रोडक्शन्स’ क्यों है?</p><p>आइए जानते हैं कुछ बॉलीवुड और हॉलीवुड के नामचीन प्रोडक्शन हाउस के ‘लोगो’ और फ़िल्म कंपनियों के नाम की कहानी. किसी प्रोडक्शन हाउस की फ़िल्म, फ़िल्म कंपनी का नाम और ‘लोगो’ यानी प्रतीक चिन्ह उसकी पहचान हाती है.</p><figure> <img alt="धर्मा प्रोडक्शन का लोगो" src="https://c.files.bbci.co.uk/1262C/production/_110680357_karanjopharproductions.jpg" height="549" width="976" /> <footer>dharma productions facebook </footer> </figure><h1>धर्मा प्रॉडक्शन ने अपनी पहचान को बदला</h1><p>हाल ही में ‘धर्मा प्रोडक्शन्स’ ने अपनी पहचान को बदला है. करण जौहर की ‘धर्मा प्रॉडक्शन्स’ ने ‘कुछ कुछ होता है’, ‘कभी ख़ुशी कभी गम’ और ‘कल हो न हो’ जैसी फ़िल्में बनाईं. </p><p>अपनी आने वाली फ़िल्म ‘भूत- पार्ट वन: द हॉन्टेड शिप’ के प्रमोशन के लिए ‘धर्मा प्रोडक्शन्स’ ने अपने ‘लोगो’ में ही कुछ बदलाव किए. उन्होंने ‘लोगो’ के रंग को बदला और उसके पीछे आने वाले संगीत को डरावना बना दिया.</p><p>करण जौहर ने अपनी कंपनी ‘धर्मा प्रोडक्शंस’ के ट्विटर अकाउंट का ‘लोगो’ काला कर दिया है और कवर स्टोरी में लिखा है- ‘डार्क टाइम्स बिगिन नाओ.’ फ़िल्म में मुख्य भूमिका विक्की कौशल और भूमि पेडनेकर निभा रहे हैं.</p><p><strong>दीपिका </strong><strong>के प्रोडक्शन हाउस का नाम ‘का प्रोडक्शन्स'</strong><strong>क्यों?</strong></p><p>इस साल दीपिका पादुकोण ‘छपाक’ फ़िल्म के साथ निर्माता बन गईं. दीपिका के प्रोडक्शन हाउस का नाम है ‘का प्रोडक्शन्स.’ </p><p>दीपिका कहती हैं, " ‘का’ का मतलब है अंतर आत्मा. आपका एक ऐसा हिस्सा जो आपके जाने के बाद भी इस दुनिया में रह जाता है. शायद मैं भी यही चाहती हूँ कि मेरे जाने के बाद मेरा काम यहीं रहे और मैं ऐसा काम करूं कि लोग मुझे याद रखें." </p><p>फ़िल्म को बनाने में जितना पैसा लगा, ‘छपाक’ ने उससे ज़्यादा कमाई की है और लोगों को फ़िल्म पसंद आई. </p><p>एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की ज़िंदगी से प्रेरित फ़िल्म ‘छपाक’ का निर्देशन मेघना गुलज़ार ने किया है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/entertainment-51032221?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">दीपिका: बैडमिंटन, मॉडलिंग, एक्टिंग से जेएनयू तक</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/entertainment-51285468?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">तानाजी फ़िल्म में क्यों की गईं ये 11 ग़लतियां </a></li> </ul><h1>राजश्री फ़िल्म्स का नाम कैसे रखा गया?</h1><p>राजश्री फ़िल्म्स के सूरज बड़जात्या ने ‘हम आपके हैं कौन’, ‘मैंने प्यार किया’ और ‘हम साथ साथ हैं’ जैसी पारिवारिक फ़िल्में बनाई हैं. </p><p>राजश्री प्रोडकशन्स की शुरुआत करने वाले ताराचंद बड़जात्या के बेटे कमल बड़जात्या के मुताबिक, "जब नाम रखने की बात आई तो शुरुआती नाम था ‘राज-कमल’. मेरा नाम ‘कमल’ और मेरे भाई का नाम ‘राज’. लेकिन फिर मेरी बहन ‘राजश्री’ के नाम पर प्रोडक्शन का नाम तय हुआ."</p><p>पर जब राजश्री की फ़िल्में शुरू हाती हैं तो सरस्वती मां की प्रतिमा आती है. इसके पीछे का क्या राज़ है?</p><p>इस पर कमल ने कहा, "पिताजी सरस्वती मां को बहुत मानते थे और कहते थे कि जो फ़िल्में बनेंगी वो ऐसी होंगी कि पूरा परिवार देख सके." </p><h1>राज कपूर और नरगिस बने आरके फ़िल्म्स की पहचान</h1><p>आरके फ़िल्म्स की शुरुआत राज कपूर ने साल 1948 में की. आरके फ़िल्म्स और स्टूडियोज़ के लिए राज कपूर और नरगिस ने साथ में कई फ़िल्मों में काम किया. इन दोनों का क़रीबी रिश्ता ख़ासी चर्चा में भी रहा. </p><p>आरके फ़िल्म्स और स्टूडियोज़ की पहली फ़िल्म ‘आग’ रुपहले पर्दे पर कोई ख़ास कमाल नहीं दिखा पाई. लेकिन इनकी दूसरी फ़िल्म ‘बरसात’ कामयाब रही और यही इनकी पहचान बन गयी.</p><p>साल 1949 में आई राज कपूर और नरगिस की फ़िल्म ‘बरसात’ के पोस्टर में फ़िल्म के ही एक सीन की तस्वीर थी जिसमें राज कपूर ने एक हाथ से नरगिस को पकड़ रखा है तो दूसरे हाथ में वॉयलिन है. और यही बन गया आरके फ़िल्म्स का ‘लोगो’ जो फ़िल्मों के शुरू होने पर आता है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/entertainment-51195439?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सैफ़ अली ख़ान के लिए ‘लालच’ इतना ज़रूरी क्यों? </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/entertainment-51187989?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">शुभ मंगल ज़्यादा सावधान : आयुष्मान खुराना बने गे </a></li> </ul><h1>यश राज प्रोडक्शन में ‘राज’ का ‘राज़'</h1><p>’यशराज फ़िल्मस’ की शुरुआत हुई फ़िल्म ‘दाग’ से. साल 1973 में आई यह फ़िल्म बतौर निर्माता यश चोपड़ा की पहली फ़िल्म थी. </p><p>इस फ़िल्म की कहानी में फ़िल्म के ख़त्म होते-होते हीरो के साथ दो हिरोइन घर जाती हैं. इस वजह से उस समय ये फ़िल्म किसी जोखिम से कम नहीं थी.</p><p>पर यश चोपड़ा को इस फ़िल्म पर यक़ीन था और राजेश खन्ना को यश चोपड़ा पर. </p><p>कहा जाता है कि इस फ़िल्म के बनने में राजेश खन्ना का एक बड़ा योगदान रहा और यह भी कहा जाता है कि यश राज में ‘राज’ राजेश खन्ना के नाम का अंश है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/entertainment-51021714?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">आज की फ़िल्मों से प्यार क्यों हैं ग़ायब?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/entertainment-51221467?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">दीवार: जिसका जलवा 45 साल बाद भी कायम है</a></li> </ul><h1>मूक फ़िल्मों के युग से लेकर टॉकीज के युग तक</h1><p>’बॉम्बे टॉकीज़’ की स्थापना हिमांशु राय, देविका रानी और राज नारायण दुबे ने की थी.</p><p>साल 1934 में बॉम्बे टॉकीज़ ने काम करना शुरू किया. इसके लोगो में हिमांशु राय और राज नारायण दुबे की तस्वीर है.</p><p>राज नारायण दुबे एक बड़े व्यापारी थे और उन्होंने ही इस प्रोडक्शन हाउस मैं पैसा लगाया. हिमांशु राय एक निर्माता, निर्देशक और अभिनेता थे जिन्होंने अभिनेत्री देविका रानी से शादी की जो कि रविंद्रनाथ टैगोर की रिश्तेदार थीं. </p><p>हिमांशु राय ने साइलेंट फ़िल्में भी बनायीं और टॉकीज़ भी. दिलीप कुमार, अशोक कुमार और मधुबाला ने ‘बॉम्बे टॉकीज़’ के साथ अपने करियर की शुरुआत की.</p><p>इस प्रोडक्शन हाउस के साथ राजकपूर, सत्यजीत रे, बिमल रॉय और किशोर कुमार ने भी काम किया.</p><h1>विदेशी फ़िल्म कंपनी के लोगो </h1><p>अंग्रेज़ी फ़िल्मों के प्रोडक्शन कंपनी के लोगो के पीछे भी कमाल की कहानी और सोच लगी है.</p><p>फ़िल्म समीक्षक अर्णब बैनर्जी ने बताया, " ‘एम.जी.एम’ के ‘लोगो’ में एक शेर है. वो बीसवीं शताब्दी के शुरुआत में बनाया गया था. इस कंपनी के मुख्य प्रचारक हार्वर्ड डाइटस ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की और उसके चिन्ह यानी शुभंकर से प्रेरित होकर एम.जी.एम के लोगो में एक शेर को लाए. तब मूक फ़िल्में बनती थीं इसलिए शेर की दहाड़ तब तक नहीं सुनाई दी जब तक कि फ़िल्मों में आवाज़ नहीं आई, यानी साल 1928 तक."</p><p>कुछ ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने सालों तक अपनी पहचान नहीं बदली और कुछ जो वक़्त के साथ बदलते रहे हैं. कुछ प्रोडक्शन हाउस अब तक फ़िल्में बना रहे हैं- जैसे यशराज और राजश्री. कुछ वक़्त के अंधेरों में गुम होकर बंद हो गए.</p><p>मुंबई के चेम्बूर में स्थित ‘आरके फ़िल्म्स’ की आख़िरी फ़िल्म आई थी साल 1999 में जिसका नाम था ‘आ अब लौट चलें.'</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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