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तानाजी फ़िल्म में क्यों की गईं ये 11 ग़लतियां

<p>हाल ही में आई ‘तानाजी’ फ़िल्म शिवाजी महाराज के क़रीबी रहे तानाजी मालुसरे के जीवन पर आधारित थी. एक सामान्य परिवार के सैनिक की कहानी को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का श्रेय फिल्मनिर्माता को ज़रूर जाता है. </p><p>लेकिन, इस दौरान सिनेमाई आज़ादी का इस्तेमाल करते हुए ऐतिहासिक तथ्यों से भी छेड़छाड़ की गई है. उन्हें […]

<p>हाल ही में आई ‘तानाजी’ फ़िल्म शिवाजी महाराज के क़रीबी रहे तानाजी मालुसरे के जीवन पर आधारित थी. एक सामान्य परिवार के सैनिक की कहानी को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने का श्रेय फिल्मनिर्माता को ज़रूर जाता है. </p><p>लेकिन, इस दौरान सिनेमाई आज़ादी का इस्तेमाल करते हुए ऐतिहासिक तथ्यों से भी छेड़छाड़ की गई है. उन्हें तोड़-मरोड़कर ग़लत तरीक़े से दिखाया गया है. </p><p>फ़िल्म के कई दृश्यों से पता चलता है कि ऐसा जानबूझकर हुआ है. तानाजी फ़िल्म में ऐसे 11 दृश्य हैं, जिनका इतिहास से कोई संबंध नहीं हैं. </p><p><strong>1. </strong><strong>हिंदू-मसुलमानों की जंग </strong></p><p>सेतुमाधव पगड़ी बताते हैं कि शिवाजी महाराज के राज्य में किसी एक धर्म या जाति के लोग नहीं रहते थे, ये एक राजनीतिक लड़ाई थी. </p><p>और अगर ऐसा था तो सभी हिंदुओं को शिवाजी महाराज की तरफ़ और सभी मुसलमानों को मुगलों की तरफ़ चले जाना चाहिए था. </p><p>लेकिन, ऐतिहासिक रूप से ऐसा नहीं हुआ. औरंगज़ेब की तरफ़ से लड़ने वाले उदयभान राजपूत थे और उनके साथ-साथ 500 राजपूत सैनिकों ने उस जंग में अपनी जान गंवाई थी. समकालीन कृष्णाजी अनंत सभासद ने लिखा है, ”500 राजपूतों को मारा गया था.” </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50510601?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">जब शिवाजी ने तानाजी के मरने पर कहा – ‘मैंने अपना शेर खो दिया'</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/entertainment-51168233?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सैफ़ बोले, ‘तानाजी’ में जो दिखाया गया वो ख़तरनाक </a></li> </ul><p>फ़िल्म में उदयभान और उनकी सेना को मुस्लिम कपड़ों में दिखाया गया है, ये दिखाने के लिए कि जैसे वो लड़ाई हिंदू और मुसलमानों के बीच हुई थी. ये साफ़तौर पर हिंदू और मुसलमानों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश दिखती है. </p><p>मध्यकाल में किसानों को अन्याय का सामना करना पड़ा, लेकिन उनका शोषण करने वाला तत्कालीन प्रशासन था. भले ही गांव के स्तर पर केंद्रीय सत्ता निज़ाम, मुगल और आदिल शाह के हाथों में थी फिर भी वतनदार और मिरासदार प्रशासन की ज़िम्मेदारी संभालते थे. </p><p>लालजी पेंडसे और नरहर कुरुंदकर जैसे विचारकों ने इस पर गौर किया है. </p><p>लेकिन, ये फ़िल्म ख़ास तौर पर दिखाती है कि तानाजी और उदयभान के बीच की जंग भगवा बनाम हरे (धार्मिक रंग) की है. मुझे लगता है कि तानाजी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार को लागू करने की कोशिश की गई है. </p><p><strong>2. </strong><strong>’मर्द’ मावला</strong></p><p>इस फ़िल्म में तानाजी का किरदार लगातार ‘मर्द मावला’ मुहावरे का इस्तेमाल करता है, जिसका मतलब है ताक़तवर सैनिक. लेकिन, इन शब्दों का कोई ऐतिहासिक संदर्भ नहीं दिखता है. </p><p>इतिहास कहता है कि उन दिनों में ‘मावला’ शब्द इस्तेमाल किया जाता था. फिर भी पता नहीं फ़िल्म में ‘मर्द’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है. ये लैंगिक भेदभाव की मानसिकता को दिखाता है. यह महिला, पुरुष और तीसरे जेंडर के लोगों के बीच भेदभाव करता है. </p><p>आधुनिक विज्ञान ने साबित किया है कि किसी के जेंडर का उसकी गुणवत्ता या उपलब्धियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता. नारीवादियों का कहना है कि पुरुष बहादुर, शक्तिशाली और बुद्धिमान होते हैं, इसी तरह महिलाएं और तीसरे जेंडर के लोग भी बहादुर, पराक्रमी और बुद्धिमान होते हैं. </p><p>विशेष रूप से ‘मावला’ शब्द इंद्रायणी घाटी से मावलाई की मातृ परंपरा से आया है. महान विद्वान डीडी कोसंबी ने अपनी किताब ‘मिथ एंड रियालिटी’ (मिथक और वास्तविकता), में इसका ज़िक्र किया है. इसलिए ‘मावला’ शब्द महिलाओं के सम्मान में इस्तेमाल होता था. इसके साथ ‘मर्द’ शब्द जोड़ना महिलाओं और तीसरे जेंडर के लिए अपमान की बात है. </p><p><strong>3. </strong><strong>जीजामाता</strong><strong> का पूजा करना </strong></p><p>इस फ़िल्म में एक दृश्य है जिसमें मुस्लिम कमांडर क़िले के अंदर घुसता है और जीजामाता को पूजा करने से रोकता है. कमांडर उन्हें क़िला ख़ाली करने के लिए बोलता है. इस दौरान, जीजामाता शपथ लेती हैं कि जब तक मराठा कोंधाना को फिर से नहीं जीत लेते, वो पैरों में कुछ नहीं पहनेंगी. इस दृश्य का इतिहास में कोई ज़िक्र नहीं है. </p><p><strong>4. </strong><strong>’ओम’ का चिन्ह कैसे आया? </strong></p><p>शिवाजी महाराज का झंडा भगवा रंग का था लेकिन वो सभी लोगों के कल्याण के लिए काम करते थे. वह धार्मिक द्वेष में शामिल नहीं थे. उन्होंने मस्जिदें नहीं गिराईं और न ही उन्होंने दूसरे धर्म के लोगों से नफ़रत की. </p><p>कोई भी ऐसा ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है जो कहता है कि शिवाजी महाराज के समय पर झंडे में ‘ओम’ चिन्ह था. साथ ही ऐसा भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है कि तानाजी की ढाल पर ‘ओम’ का निशान था. </p><p>लेकिन, फ़िल्म में दिखाया गया है कि तानाजी की जिस ढाल को उदयभान तोड़ता है उसमें ओम बना होता है. ये दृश्य धार्मिक द्वेष से भरा हुआ है. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/entertainment-51089207?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">दीपिका पादुकोण की छपाक से आगे अजय देवगन की तानाजी </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/social-51187218?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मोदी को शिवाजी, शाह को तानाजी दिखाने पर बवाल</a></li> </ul><h1>5. शिवाजी महाराज भगवान और पूजा </h1><p>शिवाजी महाराज तर्कवादी थे. वह कर्म पर भरोसा करते थे. उन्होंने भविष्य जानने के लिए कभी पंचांग नहीं देखा. कृष्णाजी अनंत सभासद के अनुसार जब शिवाजी महाराज का बेटा राजाराम पेट के बल पैदा हुआ था तो उन्होंने कहा था कि ‘ये लड़का दिल्ली के शासकों को औंधे मुंह गिरा देगा.’ </p><p>उन्होंने समुद्री क़िलों का निर्माण किया. उन्होंने समुद्र के रास्ते बेदनुर पर आक्रमण करके सिंधु नाकाबंदी को तोड़ दिया. जीजामाता ‘सती’ नहीं हुईं बल्कि उन्होंने बहादुरी से काम लिया.</p><p>ये दिखाता है कि जीजामाता और शिवाजी महाराज तर्कवादी थे. वह रुढ़िवादी नहीं थे और भगवान की पूजा से बंधे नहीं थे. उन्हें अपनी परंपराओं पर भरोसा था लेकिन उन्होंने ग़लत प्रथाओं को कभी स्वीकार नहीं किया. </p><p>वह पारंपरिक लोक देवताओं जैसे तुलजा भवानी, महादेव, आदि का सम्मान करते थे लेकिन उनमें ये सच्चाई समझने की परिपक्वता थी कि अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है. </p><p>शिवाजी महाराज के जीवन का अध्ययन करने वाले त्रयम्बक शेजवल्कर कहते हैं, ”शिवाजी महाराज रुढ़िवादी नहीं बल्कि प्रगतिशील सुधारवादी थे. वह वास्तव में एक आस्तिक थे, लेकिन अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वह चतुर और तर्कशील थे. वह भगवान की पूजा के प्रति आसक्त नहीं थे जिसमें लोग कुछ पाने के लिए प्रथाओं का सहारा लेते हैं. जब तथ्य ये है, तो फिल्म जीजामाता और शिवाजी महाराज को लगातार पूजा करते हुए दिखाकर इतिहास को ग़लत बताती है.”</p><h1>6. नाक का छल्ला कहां से आया? </h1><p>अगर हम कुछ सिनेमाई आज़ादी देते भी हैं, तो भी कोई तानाजी की पत्नी की नाक में छल्ला कैसे पहना सकता है क्योंकि मध्ययुगीन मराठा महिलाओं ने कभी भी नाक में छल्ला नहीं पहना था. </p><p>स्कॉलर शरद पाटिल के दार्शनिक दृष्टिकोण से इसे देखें तो, कोई यह कह सकता है कि यह फिल्म ब्राह्मणवादी सिद्धांतों पर ज़ोर देती है. </p><p>उत्तर की ओर से आए राजपूतों को गहरे रंग का और दक्षिण से आए मावलों को गोरे रंग का दिखाया गया है. ये कैसे संभव है? यह मनुष्य-शास्त्र के सिद्धातों का भी पालन नहीं करती.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-51098755?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’आज के शिवाजी- नरेंद्र मोदी’ नाम की किताब पर क्यों है विवाद</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-51224137?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पाकिस्तान में मौलवी पर बनी फ़िल्म पर क्यों बरपा है हंगामा</a></li> </ul><h1>7. तानाजी का बड़ा महल </h1><p>कोंधाना से राजगढ़ की ओर मुंह वाली नागिन तोप का कोई ऐतिहासिक संदर्भ नहीं है. फ़िल्म में तानाजी का एक बड़ा महल भी दिखाया गया है. </p><p>मूल रूप से, शिवाजी महाराज ने सामान्य परिवारों से सैनिकों को जुटाकर राज्य (स्वराज्य) का निर्माण किया था. तानाजी भी एक कमांडर थे जो एक विनम्र पारिवारिक पृष्ठभूमि से आए थे. जैसा कि फ़िल्म में दिखाया गया है लेकिन वो किसी सामंती वंश से नहीं थे. </p><p>8. तानाजी शिवाजी महाराज पर बैसाखी फेंकते हैं </p><p>तानाजी मालुसरे का शिवाजी महाराज और स्वराज्य के प्रति गहरा लगाव था. वह जीजामाता का भी बहुत सम्मान करते थे. वह एक देशभक्त थे. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि वो बैसाखी फेंककर शिवाजी महाराज का अपमान करेंगे. इस घटना का कोई ऐतिहासिक संदर्भ नहीं है. </p><h1>9. मालुसरे और पिसल </h1><p>इस बात का भी कोई ऐतिहासिक संदर्भ नहीं है कि जब तानाजी और उदयभान जंग के चरम पर होते हैं तो तानाजी अपना दायां हाथ खो देते हैं. कृष्णाजी अनंत सभासद के मुताबिक ये ज़रूर हुआ था कि तानाजी की ढाल टूट गई थी. </p><p>भयंकर लड़ाई के बाद दोनों गिर जाते हैं, जिसके बाद सूर्याजी मालुसरे बहादुरी से लड़ते हैं. लेकिन, फ़िल्म में ऐसा नहीं दिखाया गया है. फ़िल्म में वास्तविकता के बजाय बहुत ज़्यादा कल्पना है. फ़िल्म निर्माता शेलार मामा पर भी कुछ रोशनी डालने के लिए सिनेमाई आज़ादी का इस्तेमाल कर सकते थे. </p><p>एक मिथक ये भी गढ़ा गया है कि पिसल एक गद्दार था. फ़िल्म में दिखाया गया है कि चंद्राजी पिसल ने शिवाजी महाराज को धोखा दिया था और मुगलों की मदद की थी. ये घटना इतिहास से जुड़ी नहीं है और काल्पनिक है. यह पिसल परिवार को बदनाम करती है. </p><h1>10. ‘एक मराठा लाख मराठा'</h1><p>’एक मराठा लाख मराठा’ यानी एक मराठा, लाखों मराठाओं के बराबर है, ये नारा सबसे पहले मराठा क्रांति की रैलियों में इस्तेमाल किया गया था. दरअसल, ये नारा महज़ चार साल पहले ही ईज़ाद हुआ है. </p><p>लेकिन, फ़िल्म निर्माता और निर्देशक ने ये नारा 17वीं शताब्दी के तानाजी के डायलॉग में इस्तेमाल किया. इसलिए एक आधुनिक अवधारणा को इतिहास से जोड़ना, इस फ़िल्म की ऐतिहासिक गंभीरता को कम करता है. </p><h1>11. गद्दार नाई </h1><p>छत्रपित शिवाजी महाराज के राज्य निर्माण के संघर्ष में सभी जाति और धर्मों के लोगों ने त्याग किया था. उस समय उन्होंने हंसते-हंसते मौत को गले लगाया था. पन्हाला की घेराबंदी के दौरान शिवाजी काशीद शिवाजी महाराज का रूप लेकर दुश्मन के इलाक़े में गए जहां उन्हें स्वराज्य के लिए अपनी जान देनी पड़ी. </p><p>जब शिवाजी महाराज अफज़ल ख़ान से मिलने गए, सैयद बंदा ने उन पर हमला करने की कोशिश की और तब जिवाजी महाले ने बंदा का हाथ हवा में ही काट दिया. </p><p>शिवाजी महाराज के लिए अपनी जान जोखिम में डालने वाले शिवाजी काशीद और जिवाजी महाले जैसे लोग नाई समुदाय से थे. ये तथ्य है, फिर भी तानाजी फ़िल्म में एक नाई को शिवाजी महाराज को धोखा देकर उदयभान को मदद करते दिखाया गया है. इस किरदार का इतिहास से कोई संबंध नहीं है. </p><p>फ़िल्म में शिवाजी महाराज और तानाजी के चरित्र असल ऐतिहासिक व्यक्तित्वों का सही प्रतिनिधित्व नहीं करते क्योंकि वे बहुत सुस्त दिखते हैं. इनके मुक़ाबले उदयभान की भूमिका बेहतर है. शिवाजी महाराज और तानाजी सख़्त, फुर्तीले और मज़बूत थे लेकिन फिल्म में कई बार वो ढीले नज़र आते हैं. </p><p>कुल मिलाकर इस फ़िल्म में शिवाजी महाराज के इतिहास को दिखाने के लिए सिनेमाई आज़ादी का लापरवाही से इस्तेमाल किया गया है. </p><p>यह असल में तानाजी मालुसरे की लोगों के कल्याण की लड़ाई से जोड़-तोड़ करना है और उसका राष्ट्रवाद के एजेंडे के लिए इस्तेमाल करना है. </p><p><strong>(श्रीमंत कोकाटे शिवाजी महाराज के जीवन के शोधकर्ता हैं. इस लेख में व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत हैं.)</strong></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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