<figure> <img alt="बिहार के छात्र" src="https://c.files.bbci.co.uk/C175/production/_110652594_7e43b3f7-b247-4940-9fb8-adb471652894.jpg" height="921" width="689" /> <footer>Neeraj Priyadarshy/BBC</footer> </figure><p>दुनिया के कोई भी माता-पिता अपने बच्चे को यह सोचकर कभी इंजीनियरिंग नहीं पढ़ाते होंगे कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वो चपरासी की नौकरी करे.</p><p>लेकिन, देश में इस वक़्त सरकारी नौकरी के लिए इतनी मारामारी है कि न केवल बीटेक की डिग्रीधारक बल्कि मास्टर डिग्री वाले इंजीनियर भी चपरासी, माली, दरबान और सफाईकर्मी बनने के लिए लाइन में लगे हुए हैं.</p><p>"इंजीनियर बन रहे हैं चपरासी". इसको गूगल सर्च करने पर पता चलता है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत तमाम राज्यों का यही हाल है. फ़िलहाल इस वजह से सुर्खियों में बिहार है.</p><p>बिहार विधानसभा में चपरासी, माली, सफाईकर्मी और दरबान बनने के लिए फोर्थ ग्रेड के कुल 136 पदों पर भर्ती चल रही है और इसके लिए पांच लाख से भी अधिक आवेदन आए हैं. </p><p>आवेदकों में सैकड़ों उम्मीदवार ऐसे हैं जिनके पास बीटेक और एमटेक की डिग्री है. हज़ारों ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो आईएएस और आईपीएस बनने के लिए यूपीएससी की परीक्षाओं (प्रीलिम्स+मेन्स) को भी पास कर चुके हैं. </p><p>इन पदों के लिए शैक्षणिक और तकनीकी योग्यता है – मैट्रिक पास या समकक्ष, हिंदी और अंग्रेज़ी भाषाओं का ज्ञान और साइकिल चलाने की क्षमता.</p><p>बहरहाल सवाल ये है कि इंजीनियर चपरासी क्यों बनने जा रहे हैं? </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-47111805?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">इंजीनियरिंग-एमबीए करके नागा बन रहे हैं युवा</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india/2015/07/150704_india_education_engineering_ps?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">इंजीनियरिंग के बाद भी नौकरी की दिक्कत</a></li> </ul><figure> <img alt="बीपीएससी की एक परीक्षा में परीक्षा देते अभ्यर्थी, छपरा के एक केंद्र पर" src="https://c.files.bbci.co.uk/E885/production/_110652595_936d8534-7c68-4424-9fb7-f4e180f2e113.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Neeraj Priyadarshy/BBC</footer> </figure><h3>नहीं निकली सरकारी नौकरी </h3><p>इसका एक सीधा सा जवाब है – "बिहार में इंजीनियरों को सरकारी नौकरी मिलना क़रीब एक दशक से भी अधिक वक़्त से बंद है."</p><p>असिस्टेंट इंजीनियरों की भर्ती कराने वाला बिहार लोकसेवा आयोग 2007 के बाद से एक भी ज्वाइनिंग नहीं करा सका है. </p><p>2017 में आयोग की तरफ से असिस्टेंट इंजीनियर की पोस्ट के लिए आख़िरी बार विज्ञापन निकाला गया था. कई तारीख़ें बदलने और परीक्षाएं रद्द करने के बाद पिछले साल जुलाई में उसके मेन्स की परीक्षा ली गई थी. लेकिन इंटरव्यू और रिजल्ट की तिथि अब तक नहीं आ सकी है.</p><p>मेन्स का रिजल्ट जारी करने और इंटरव्यू की तिथि घोषित करने की मांग के साथ सैकड़ों इंजीनियर अभ्यर्थी पिछले कई दिनों से बिहार लोकसेवा आयोग दफ़्तर के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.</p><p>गुरुवार को आयोग के दफ़्तर के बाहर प्रदर्शन करने पहुंचे एक अभ्यर्थी अभिषेक कुमार ने बताया, "हम लोग ये जानने पहुँचे थे कि आख़िर मेन्स का रिजल्ट कब जारी किया जाएगा. परीक्षा का नोटिफिकेशन निकाले तीन साल होने को हैं लेकिन किसी अधिकारी से बात ही नहीं हो पा रही है. दफ़्तर में कहा जा रहा है कि सभी लोग बौद्ध महोत्सव के लिए गए हुए हैं."</p><p>पटना के आरपीएस कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग करने वाले अभिषेक कुमार कहते हैं, "इसी तरह 2011-12 में भी एक बार वैकेंसी निकली थी. परीक्षा में गड़बड़ी की शिकायतें हुईं. धांधली के मामले दर्ज किए गए और रिजल्ट बार-बार अटकता गया. वो ज्वाइनिंग भी कभी नहीं कराई जा सकी."</p><p>अभ्यर्थियों का कहना है कि इस बार मामला हाई कोर्ट में गया है. अदालत में याचिका डाली गई है कि मेन्स में चार प्रश्न ग़लत पूछे गए थे. याचिका स्वीकार कर ली गई और अदालत ने आयोग से जवाब मांगा था.</p><p>एक अभ्यर्थी विशाल कुमार कहते हैं, "लेकिन आयोग के जवाब से हम लोग असंतुष्ट हैं क्योंकि आयोग ने जवाब दिया है कि विशेषज्ञों ने प्रश्न तैयार किए थे, उन्हें बदला नहीं जा सकता. या उसकी वजह से परीक्षा रद्द नहीं की जा सकती है. मामले की सुनवाई अभी भी चल ही रही है. हालांकि, अब तो हम लोग सिर्फ़ यही चाहते हैं कि कम से कम मेन्स का रिजल्ट प्रकाशित कर दिया जाए."</p><p>हमने बीपीएसपी के सदस्य, संयुक्त सचिव सह परीक्षा नियंत्रक अमरेंद्र कुमार सिंह से फ़ोन पर बात की. वे रिजल्ट में देरी और प्रश्न पत्र की गड़बड़ियों से जुड़े सवाल पर कहते हैं, "मामला अब हाई कोर्ट में चला गया है. आगे की कार्रवाई कोर्ट के निर्णय के अनुसार ही होगी. हमारा काम पूरा है. रिजल्ट बन चुका है. हम बस कोर्ट के ऑर्डर का इंतज़ार कर रहे हैं."</p><p>इसके आगे हमारे किसी भी सवाल पर अमरेंद्र कोर्ट का हवाला देते हैं.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48481291?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">बेरोज़गारी दर 45 साल में सबसे ज़्यादा</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/vert-fut-40044882?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क्या इसलिए भारत में बेरोज़गारी बढ़ रही है?</a></li> </ul><h3>ठेके पर बन रहे जूनियर इंजीनियर</h3><p>जहां तक बात बिहार में इंजीनियरों को काम मिलने की है तो ऐसा नहीं है कि काम नहीं मिल रहा, बस सरकारी और स्थायी नौकरी नहीं मिल रही है.</p><p>2011-12 में बीपीएसपी के तहत हुई भर्ती में गड़बड़ियां सामने आने के बाद बिहार सरकार ने इंजीनियर बहाल करने के लिए एक नए आयोग का गठन किया गया. नाम दिया गया बिहार तकनीकी सेवा आयोग. इसके ज़रिए विभिन्न विभागों के लिए इंजीनियरों को कॉन्ट्रैक्ट पर बहाल करने की योजना भी शुरू हुई.</p><p>यह योजना भी बिहार में शिक्षकों के नियोजन की योजना से मिलती-जुलती है. लेकिन इसके लिए केवल बीटेक होना ही ज़रूरी नहीं है बल्कि डिग्री और (ग्रेजुएट एप्टिट्यूड टेस्ट) गेट की परीक्षा के स्कोरकार्ड के आधार पर चयन होना है. </p><p>मेरिट बनाने का काम आयोग करता है लेकिन आख़िरी चयन विभाग को ही करना है. 27,000 रुपए की अधिकतम तनख़्वाह फ़िक्स कर दी गई है.</p><p>पटना नगर निगम के अज़ीमाबाद में इसी तरह के कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार काम कर रहे नगर विकास विभाग के जूनियर इंजीनियर मृणाल सिंह बताते हैं, "इंजीनियरिंग करने वाले 20 से 30 फीसदी लोग ही गेट क्वालिफाई कर पाते हैं. क्वालिफाई करने का मतलब अच्छा स्कोर कर पाते हैं. लेकिन इसमें भी बहुत फर्जीवाड़ा हुआ है." </p><p>"कोई ऐसा विभाग नहीं बचा है जहां से जाली सर्टिफिकेट बनवाकर ज्वाइन करने के मामले सामने नहीं आए हैं और अब तो गेट का स्कोरकार्ड भी फर्जी निकल जाता है. उसमें तो बस कागज़ जमा करना होता है. कोई फर्जीवाड़ा करता भी है तो तब पकड़ा जाता है जब शिकायत होती है और सर्टिफिकेट्स की जांच होती है. हाल ही में बिजली विभाग में ऐसा मामला आया था."</p><p>बिहार तकनीकी सेवा आयोग 2015-16 से काम करना शुरू किया है. हज़ार से ज़्यादा इंजीनियर कॉन्ट्रैक्ट पर रखे जा चुके हैं. </p><p>लखनऊ के एक कॉलेज से इंजीयिरिंग कर चुके मृणाल लगभग चार साल से कॉन्ट्रैक्ट पर जूनियर इंजीनियर की नौकरी कर रहे हैं. चुनाव हो या जनगणना या फिर विधि-व्यवस्था को लेकर कोई भी सरकारी काम, जूनियर इंजीनियर रहते सब कुछ कर चुके हैं.</p><p>वे कहते हैं, "आप विभागों से पता करिएगा तो पता चलेगा कि कितने इंजीनियरों ने दो-तीन महीने की नौकरी करके छोड़ दी. आख़िर कोई इंजीनियरिंग करके इतने कम पैसे में क्यों काम करेगा? मुझे एक साल से सैलेरी नहीं मिली. विभाग कहता है कि अटका हुआ है. पिछले लोकसभा चुनाव में जो ड्यूटी लगाई गई थी, उसका पैसा भी नहीं मिला."</p><p>बिहार में 32 पॉलिटेक्निक कॉलेज हैं. सभी में पांच ब्रांच हैं और हर ब्रांच में 60 सीटें. यानी केवल सरकारी पॉलिटेक्निक इंजीनियरिंग कॉलेजों से हर साल 9600 बच्चे डिप्लोमा करके निकलते हैं. अगर अन्य सरकारी और ग़ैर-सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों की गणना की जाए तो क़रीब 32 अन्य कॉलेज भी हैं जहां से हज़ार युवा हर साल इंजीनियर की डिग्री पाते हैं.</p><p>एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बिहार में हर साल कम से कम 20 हज़ार इंजीनियर निकलते हैं. अगर बाहर जाकर इंजीनियरिंग करने वालों को मिला दिया जाए तो यह संख्या और भी बढ़ जाएगी.</p><p>लेकिन, इंजीनियरिंग के हज़ार पद अभी भी ख़ाली हैं. ख़ुद बिहार सरकार का कहना है कि उनके यहां क़रीब सात हज़ार जूनियर इंजीनियर और इतने ही असिस्टेंट इंजीनियरों के पद ख़ाली हैं.</p><p>सवाल अब भी वही है कि इंजीनियरिंग के बाद भी ये लोग आखिर चपरासी, गार्ड और माली क्यों बनना चाहते हैं? दूसरी प्राइवेट नौकरियां भी मिल सकती हैं.</p><p><strong>इंजीनियरिंग </strong><strong>कॉलेजों में गुणवत्ता की कमी </strong></p><p>इसका एक जवाब ये भी हो सकता है कि लाखों इंजीनियर्स की भीड़ में सारे इंजीनियर की नौकरी के क़ाबिल नहीं हैं. कुकरमुत्ते की तरह फैले इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ाई की गुणवत्ता गिर गई है.</p><p>लेकिन इसके अलावा भी तमाम वज़हे हैं? जो नौकरी की सुरक्षा और पैसे से जुड़ी हैं.</p><p>शुक्रवार को जब हमने बिहार विधानसभा के एनेक्सी भवन में चपरासी की नौकरी के इंटरव्यू के लिए आए इंजीनियरों से बात की तो हमें कई तरह के जवाब मिले.</p><p>विधानसभा के गेट पर खड़े कुछ उम्मीदवार, जिनका इंटरव्यू दूसरी पाली में था, अंदर घुसने का इंतज़ार कर रहे थे.</p><p>उनसे जब ये पूछा कि आपमें से किसी ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है? तो उन्हीं में से एक उम्मीदवार कहता है, "अगर की भी होगी तो शर्म के मारे वह बात नहीं करेगा."</p><p>इन्हीं में से एक उम्मीदवार रोहित कुमार ने तुरंत कहा, "इसमें शर्माने की क्या बात है. मैं भी हूं इंजीनियर. 2014 में ही बीआईटी मेसरा के पटना कैंपस से बीटेक किया है. कहीं इंजीनियरिंग की नौकरी नहीं मिली तो जनरल कंपटीशन की तैयारी करने लगा. अब लगता है कि चपरासी की नौकरी भी मिल जाए तो ठीक है. मेरा तो एक दोस्त एमटेक कर चुका है वहीं से, लेकिन फिर भी इंटरव्यू दिया है."</p><p>रोहित पटना में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं.</p><p>एक उम्मीदवार नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं, "मेरी तस्वीर मत छापिएगा. घर पर किसी को नहीं बताया कि चपरासी का फॉर्म भरे हैं. वो इंटरव्यू का देखेंगे तो जाने क्या सोचेंगे! मेरे तीन और दोस्त हैं, इंजीनियर हैं, वर्किंग भी हैं, वो इंटरव्यू भी दे चुके हैं. हम सबने मिलकर यही सोचा था कि अगर हो जाएगा तो घरवाले जान ही जाएंगे. फिर क्या ही बोलेंगे! सरकारी नौकरी होगी, पैसे भी ज़्यादा मिलेंगे."</p><p>इंजीनियरों के चपरासी बनने के पीछे एक अहम कारण वेतन भी है.</p><p>बिहार सरकार जूनियर इंजीनियरों के लिए अधिकतम तनख्वाह 27 हज़ार दे रही है, जबकि विधानसभा में चपरासी बन जाने पर 56,000 रुपए की सैलेरी मिलेगी. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते 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बिहार में इंजीनियर क्यों बनना चाहते हैं चपरासी?
<figure> <img alt="बिहार के छात्र" src="https://c.files.bbci.co.uk/C175/production/_110652594_7e43b3f7-b247-4940-9fb8-adb471652894.jpg" height="921" width="689" /> <footer>Neeraj Priyadarshy/BBC</footer> </figure><p>दुनिया के कोई भी माता-पिता अपने बच्चे को यह सोचकर कभी इंजीनियरिंग नहीं पढ़ाते होंगे कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वो चपरासी की नौकरी करे.</p><p>लेकिन, देश में इस वक़्त सरकारी नौकरी के लिए इतनी मारामारी है कि न केवल बीटेक की डिग्रीधारक बल्कि […]
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