<figure> <img alt="इमरान ख़ान" src="https://c.files.bbci.co.uk/F9C5/production/_110214936_gettyimages-1170810237-1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को आख़िरकार सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के सामने झुकना पड़ा. </p><p>पाकिस्तान मलेशिया में 19-20 दिसंबर को आयोजित कुआलालंपुर समिट में हिस्सा नहीं लेगा. इमरान ख़ान इस समिट में जाएंगे या नहीं इसे लेकर घोर अनिश्चितता बनी हुई थी. </p><p>मंगलवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्री महमूद शाह क़ुरैशी ने साफ़ कर दिया कि बुधावार से शुरू हो रहे कुआलालंपुर समिट में इमरान ख़ान नहीं जाएंगे. </p><p>इमरान ख़ान ने मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद को फ़ोन कर खेद जताया और कहा कि वो नहीं आ पाएंगे. वहीं तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन इस समिट में शामिल होने के लिए कुआलालंपुर पहुंच गए हैं. अर्दोवान और इमरान ख़ान ने ही इस समिट की बुनियाद रखी थी. </p><p>मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद के कार्यालय से भी बयान जारी करके इस बात की पुष्टि की गई है कि इमरान ख़ान ने इस समिट से ख़ुद को अलग कर लिया है. इस बयान में कहा गया है, ”प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने पीएम महातिर मोहम्मद को फ़ोन कर नहीं आने की सूचना दी है. इस समिट में पीएम ख़ान इस्लामिक दुनिया पर अपनी बात कहने वाले थे.”</p><figure> <img alt="सऊदी पाकिस्तान" src="https://c.files.bbci.co.uk/147E5/production/_110214938_gettyimages-1147208735.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>क्यों झुका पाकिस्तान?</h3><p>इसी साल सितंबर महीने में न्यूयॉर्क में मलेशियाई पीएम महातिर मोहम्मद, तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन और पाकिस्तानी पीएम इमरान ख़ान के बीच इस समिट को लेकर सहमति बनी थी. इसके बाद पिछले महीने 29 नवंबर को मलेशिया के उप-विदेश मंत्री मर्ज़ुकी बिन हाजी याह्या ने इमरान ख़ान को फ़ोन कर इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था. इमरान ख़ान ने इस आमंत्रण को स्वीकार भी कर लिया था. </p><p>पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने इस समिट में इमरान ख़ान के जाने को लेकर आपत्ति जताई थी. क़ुरैशी ने कहा कि दोनों देश इस बात को लेकर चिंतित थे कि इस समिट से इस्लामिक दुनिया में विभाजन बढ़ेगा और किसी भी नए संगठन के निर्माण से सऊदी अरब के प्रभुत्व वाले ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के अस्तित्व पर सवाल उठेगा. </p><p>महातिर ने मंगलवार को पत्रकारों से कहा था कि सऊदी अरब के किंग सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ इसे लेकर अनिच्छुक थे कि कुलालालंपुर समिट में इस्लामिक मुद्दों पर चर्चा हो. सऊदी अरब का मानना है कि इस्लामिक दुनिया के हितों और समस्या पर ओआईसी के मंच पर ही बात हो न कि कोई और समानांतर संगठन खड़ा किया जाए. </p><p>शाह महमूद क़ुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान पहले सऊदी और कुआलालंपुर के बीच संबंधों को ठीक कराएगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो पाकिस्तान इस समिट में नहीं जाएगा. </p><figure> <img alt="मलेशिया पाकिस्तान" src="https://c.files.bbci.co.uk/134D/production/_110214940_gettyimages-71885678.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>मलेशिया बनाम सऊदी </h3><p>क़ुरैशी ने कहा कि वो कोशिश कर रहे हैं कि महातिर मोहम्मद सऊदी अरब का दौरा करें. क़ुरैशी ने कहा कि यह दौरा सऊदी के आमंत्रण पर या महातिर ख़ुद भी जा सकते हैं. हालांकि महातिर के सऊदी दौरे की कोई तारीख़ निर्धारित नहीं हो पाई है. </p><p>इस समिट से पाकिस्तान के हटने की ख़बर पाकिस्तानी मीडिया में छाई हुई है. कई अख़बारों ने इसे इमरान ख़ान की ख़राब रणनीति का नतीजा बताया है. </p><p>पाकिस्तान के चर्चित अख़बार डॉन ने इस पर संपादकीय प्रकाशित किया है. संपादकीय में डॉन ने लिखा है, ”इमरान ख़ान ने पीएम बनने के बाद कई यू-टर्न लिए हैं और उनमें से आमंत्रण स्वीकार करने के बाद कुआलालंपुर समिट में नहीं जाना सबसे अहम यू-टर्न है. महमूद क़ुरैशी ने कहा है कि इमरान ख़ान को सऊदी और यूएई के कारण यू-टर्न लेना पड़ा. क़ुरैशी का कहना है कि समय कम था और सऊदी की चिंताओं का समाधान नहीं किया जा सका इसलिए दौरे से पीछे हटना पड़ा.” </p><p>क्या वाक़ई इमरान ख़ान के इस समिट में जाने से इस्लामिक दुनिया में विभाजन बढ़ता? क्या कुआलालंपुर समिट में ओआईसी के समानांतर कोई संगठन बनाने की तैयारी थी? क़ुरैशी का कहना है कि पाकिस्तान मलेशिया और सऊदी के बीच सेतु बनाने की कोशिश करेगा. डॉन ने लिखा है कि पाकिस्तान ने इस समिट में नहीं जाने का फ़ैसला कर ख़ुद को बैकफुट पर ला दिया है. </p><figure> <img alt="पाकिस्तान" src="https://c.files.bbci.co.uk/616D/production/_110214942_gettyimages-1063953262.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>पाकिस्तानी मीडिया में तीखी टिप्पणी</h3><p>डॉन ने लिखा है कि इस्लामिक दुनिया में विभाजन कोई नई बात नहीं है. संपादकीय में लिखा है, ”अगर इमरान ख़ान सोचते हैं कि वो सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के साथ मलेशिया और तुर्की को भी साध सकते हैं तो उन्हें उसी रणनीति के साथ आना होगा. इमरान ख़ान ने जल्दीबाजी में अर्दोआन और महातिर के साथ कई मोर्चों पर सहयोग और एक चैनल खोलने की बात कर ली थी. इमरान ख़ान को इस बात का अंदाज़ा क्यों नहीं था कि सऊदी आपत्ति जताएगा? प्रधानमंत्री ने महातिर के आमंत्रण को स्वीकार क्यों किया था? क्या उन्हें सऊदी और यूएई की प्रतिक्रिया का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था? इस मामले में पाकिस्तान और इमरान ख़ान ने रणनीति के स्तर पर अनाड़ीपन का परिचय दिया है.”</p><p>डॉन ने अपनी संपादकीय में लिखा है कि यह एक रणनीतिक चूक है और इससे सबक़ लेने की ज़रूरत है. </p><p>यह भी कहा जाता है कि इस समिट का आइडिया इमरान ख़ान ने ही महातिर और अर्दोआन के साथ रखा था. पीएम महातिर और तुर्की के राष्ट्रपति रेचेपा तैय्यप अर्दोआन ने इमरान ख़ान के प्रस्ताव पर सहमति जताई थी.</p><p>पिछले हफ़्ते शनिवार को इमरान ख़ान सऊदी अरब के दौरे पर गए थे. पाकिस्तानी मीडिया में कहा जा रहा है कि इमरान ख़ान सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को आश्वस्त करने गए थे कि उनके समिट में जाने से सऊदी के हितों से समझौता नहीं होगा.</p><p>क़र्ज़ के जाल में उलझे पाकिस्तान को सऊदी अरब ने डिफॉल्टर होने से बचाया है. सऊदी ने कई बार मुश्किल घड़ी में पाकिस्तान की मदद की है. 2018 में आम चुनाव के बाद जब इमरान ख़ान सत्ता में आए तब पाकिस्तान आर्थिक बदहाली से जूझ रहा था और सऊदी अरब ने पाकिस्तान को 6 अरब डॉलर की मदद की थी. अगर सऊदी ये मदद नहीं करता तो पाकिस्तान डिफॉल्टर हो सकता था.</p><figure> <img alt="पाकिस्तान" src="https://c.files.bbci.co.uk/AF8D/production/_110214944_gettyimages-1170531335.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>सऊदी-पाकिस्तान की दोस्ती</h3><p>इसके अलवा 27 लाख पाकिस्तानी सऊदी अरब में काम करते हैं और वहां से आने वाली विदेशी मुद्रा का पाकिस्तान के फॉरेक्स में बड़ा योगदान है. ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के बारे में कहा जा रहा है कि यह निष्क्रिय हो गया है, इसलिए मुस्लिम देशों को एक नए मंच की ज़रूरत है. </p><p>सऊदी की आपत्ति के बाद इमरान ख़ान के लिए बहुत विकट स्थिति हो गई थी.</p><p>कश्मीर मामले में तुर्की और मलेशिया खुलकर सामने आए थे जबकि सऊदी ने भारत का विरोध नहीं किया था. इसके अलावा एनएसजी में भी पाकिस्तान की सदस्यता का तुर्की और मलेशिया समर्थन करते रहे हैं.</p><p>इमरान ख़ान पिछले साल अगस्त में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने और नवंबर में मलेशिया के दौरे पर गए.</p><p>इमरान ख़ान से तीन महीने पहले 2018 में ही 92 साल के महातिर मोहम्मद फिर से मलेशिया के प्रधानमंत्री बने थे. इमरान और महातिर के चुनावी कैंपेन में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा था. इसके साथ ही दोनों देशों पर चीन का क़र्ज़ भी बेशुमार बढ़ रहा था.</p><p>महातिर राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं. वो 1981 से 2003 तक इससे पहले सत्ता में रह चुके थे. वहीं इमरान ख़ान इससे पहले केवल क्रिकेट के खिलाड़ी थे. महातिर ने आते ही चीन के 22 अरब डॉलर की परियोजना को रोक दिया और कहा था कि यह बिल्कुल ग़ैरज़रूरी थी.</p><p>दूसरी तरफ़ इमरान ख़ान ने वन बेल्ट वन रोड के तहत पाकिस्तान में चीन की 60 अरब डॉलर की परियोजना को लेकर उतनी ही बेक़रारी दिखाई जैसी बेक़रारी नवाज़ शरीफ़ की थी.</p><figure> <img alt="पाकिस्तान तुर्की" src="https://c.files.bbci.co.uk/EA93/production/_110215006_gettyimages-1171025269.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>कश्मीर पर समर्थन</h3><p>नवंबर 2018 में जब इमरान ख़ान क्वालालंपुर पहुँचे तो उनका स्वागत किसी रॉकस्टार की तरह किया गया. इमरान ख़ान ने कहा कि मलेशिया और पाकिस्तान दोनों एक पथ पर खड़े हैं. इमरान ख़ान ने कहा था, ”मुझे और महातिर दोनों को जनता ने भ्रष्टाचार से आजिज आकर सत्ता सौंपी है. हम दोनों क़र्ज़ की समस्या से जूझ रहे हैं. हम अपनी समस्याओं से एक साथ आकर निपट सकते हैं. महातिर ने मलेशिया को तरक्की के पथ पर लाया है. हमें उम्मीद है कि महातिर के अनुभव से हम सीखेंगे.” दोनों मुस्लिम बहुल देश हैं.</p><p>इमरान ख़ान और मलेशिया के क़रीबी की यह शुरुआत थी. भारत और पाकिस्तान में जब भी तनाव की स्थिति बनी तो इमरान ख़ान ने महातिर मोहम्मद को फ़ोन किया. कहा जाता है कि इमरान ख़ान के शुरुआती विदेशी दौरे में मलेशिया एकमात्र देश था जिससे इमरान ख़ान ने क़र्ज़ नहीं मांगा.</p><p>महातिर मोहम्मद के शासन काल में पाकिस्तान मलेशिया के सबसे क़रीब आया. पाकिस्तान और मलेशिया के बीच 2007 में इकनॉमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट हुआ था. जब कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में गया तब भी मलेशिया पाकिस्तान के साथ था. यहां तक पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में भी मलेशियाई प्रधानमंत्री ने कश्मीर का मुद्दा उठाया और भारत को घेरा. भारत के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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सऊदी अरब ने इमरान ख़ान को झुकने पर किया मजबूर
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