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‘वो गोरों के साथ घूमती थीं, पर शादी हम जैसों से ही करती थीं’

<figure> <img alt="भाईचंद पटेल" src="https://c.files.bbci.co.uk/5B34/production/_109584332_gettyimages-90556506.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>विपरीत सेक्स में भाईचंद पटेल की शुरू से दिलचस्पी थी, शायद कुछ ज़रूरत से ज़्यादा ही. </p><p>जब वो पचास के दशक में दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स में पढ़ रहे थे तो उनको सबसे बड़ा मलाल था कि उनके पूरे कॉलेज में 800 लड़कों […]

<figure> <img alt="भाईचंद पटेल" src="https://c.files.bbci.co.uk/5B34/production/_109584332_gettyimages-90556506.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>विपरीत सेक्स में भाईचंद पटेल की शुरू से दिलचस्पी थी, शायद कुछ ज़रूरत से ज़्यादा ही. </p><p>जब वो पचास के दशक में दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स में पढ़ रहे थे तो उनको सबसे बड़ा मलाल था कि उनके पूरे कॉलेज में 800 लड़कों के बीच सिर्फ़ एक लड़की पढ़ती थी. तब लड़कियों को ‘डेट’ पर ले जाना तो दूर उनका हाथ पकड़ना भी बहुत बड़ा ‘स्कैंडल’ माना जाता था. </p><p>लड़कों के हॉस्टल में लड़कियों का आना लगभग असंभव था. भाईचंद ने लड़कियों की कमी की भरपाई की जब वो लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ने लंदन गए. </p><figure> <img alt="लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स" src="https://c.files.bbci.co.uk/C132/production/_109585494_gettyimages-3377087.jpg" height="549" width="549" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स</figcaption> </figure><p>उन दिनों का वर्णन करते हुए ‘आई एम अ स्ट्रेंजर हियर माईसेल्फ़’ के लेखक भाई चंद पटेल बताते हैं, &quot;एलएसई की लड़कियां वर्किंग क्लास से आती थीं. वो अपने मेक- अप और कपड़ों पर कुछ ख़ास ध्यान नहीं देती थीं और शायद हफ़्ते में एक बार नहाती थीं. लेकिन जब मैं इनर टैंपिल में क़ानून पढ़ने गया तो मुझे लगा जैसे किसी बच्चे को कैंडी स्टोर में छोड़ दिया गया हो. उस ज़माने में ब्रिटेन में नस्लवाद अपने चरम पर था. लेकिन तब भी इन लड़कियों की माओं को हम जैसे काले लड़कों से इनके मिलने पर कोई आपत्ति नहीं थीं बशर्ते वो गर्भवती नहीं होतीं या हम जैसों से इश्क़ न कर बैठतीं.&quot;</p><h1>भारतीय और पाकिस्तानी लड़कियों को थी सिर्फ़ गोरों में दिलचस्पी</h1><p>भाई चंद पटेल की बेबाकी का नमूना देखिए कि वो स्वीकार करते हैं कि, &quot;उन दिनों हम लोग अपने बटुए में कंडोम रखा करते थे. पता नहीं कब इसकी ज़रूरत पड़ जाए. लेकिन सबसे बड़ी हिम्मत का काम होता था ‘बूट्स’ की दुकान के काउंटर पर जाकर महिला सेल्स गर्ल से कंडोम का पैकेट माँगना. और वो उन दिनों सस्ता भी नहीं आता था.&quot; </p><p>&quot;हम जैसे छात्रों की जेब की पहुंच से बाहर की चीज़ थी. मज़े की बात ये थी कि हमारे साथ पढ़ने वाली भारतीय और पाकिस्तानी लड़कियों को हम में कोई दिलचस्पी नहीं थी जबकि हम लोग उनके साथ के लिए मरे जाते थे. वो गोरों के साथ घूमती थीं लेकिन दिलचस्प बात ये थी कि जब वो अपने देश लौटीं तो उन्होंने हम जैसे लोगों से ही शादियाँ कीं.&quot;</p><h1>अभी भी फ़िजी का पासपोर्ट है भाईचंद के पास</h1><p>प्रशांत महासागर के एक छोटे से देश फ़िजी से अपनी ज़िदगी की शुरुआत करने वाले भाईचंद पटेल को कई प्रधानमंत्रियों, महारानियों, अभिनेत्रियों, हसीन औरतों और दिलचस्प लोगों से मिलने का मौक़ा मिला है. लेखक, पत्रकार और फ़िल्म समालोचक भाईचंद पटेल वकील रह चुके हैं. </p><p>उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में एक बड़े पद पर काम किया है. वो इस समय दिल्ली के चोटी के ‘सोशेलाइट’ हैं और उनकी दी गई दावतों में शामिल होने के लिए दिल्ली के सभ्राँत लोगों में होड़ लगी रहती है. </p><p>मुंबई, लंदन, न्यूयॉर्क, मनीला और काहिरा में रह चुके भाईचंद पटेल पिछले लगभग 20 सालों से दिल्ली में रह रहे हैं, लेकिन उन्होंने अभी भी अपनी फ़िजी की नागरिकता बरकरार रखी है. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/magazine-50101234?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">निरंकुश तानाशाह जो अल्कोहल से धोता था हाथ</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50207921?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">यशवंत सिन्हा की नरेंद्र मोदी से क्यों नहीं बनी?</a></li> </ul><figure> <img alt="भाईचंद पटेल" src="https://c.files.bbci.co.uk/18482/production/_109585499_gettyimages-1144119454.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>भाईचंद पटेल अपनी पार्टियों के लिए मशहूर हैं</figcaption> </figure><p>भाईचंद पटेल बताते हैं, &quot;मैं छोटी उम्र में आया था भारत पढ़ने फ़िजी सरकार की स्कॉलरशिप पर. फिर मैं लंदन पढ़ने गया. पांच साल वहां रहा. सोचा वहीं रह जाऊँ. मैंने तभी तय किया कि मैं फ़िजी का नागरिक हूँ, फ़िजी का ही नागरिक रहूंगा. मैं शायद वहाँ रह नहीं पाऊँगा, क्योंकि वो छोटी सी जगह है. वहाँ की आबादी दस लाख से भी कम है.&quot; </p><p>&quot;लेकिन अब भी मैं हर दूसरे साल वहाँ जाता हूँ. मेरी छोटी बहन अब भी वहाँ रहती है. एक बार कोई फ़िजी जाए तो उसे भूल नहीं सकता. बहुत साफ़ सुथरी जगह है. वहाँ के लोग बहुत ज़िंदादिल हैं. मैं फ़िजी में ही बड़ा हुआ हूँ. हिंदी मैं समझता ज़रूर हूँ. लेकिन हिंदी मेरी मातृ भाषा नहीं है. मेरी भाषा भोजपुरी है. मेरे माता-पिता दोनों गुजरात से आते थे. लेकिन मैं उनसे भी भोजपुरी में बात करता था.&quot;</p><h1>रजनी पटेल के असिस्टेंट बने</h1><p>1966 में भारत आने पर भाईचंद पटेल मुंबई के मशहूर वकील रजनी पटेल के असिस्टेंट हो गए. उस समय वो मार्क्सवादी थे. बाद में वो कांग्रेस के सदस्य बन गए और इंदिरा गाँधी ने उन्हें बंबई कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया. </p><p>भाईचंद बताते हैं, &quot;उस ज़माने में उन्हें मुंबई का दादा कहा जाता था. वो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से भी अधिक ताक़तवर थे. वो बहुत ही नामी और क़ाबिल वकील थे. मैं फ़िजी से आया था और उनको बिल्कुल भी नहीं जानता था. मैं एक शख़्स के पास गया जिनके बारे में मुझे पता था कि वो रजनी पटेल को जानते हैं. उन्होंने उन्हें फ़ोन कर कहा कि फ़िजी से मेरे एक दोस्त आए हैं जो आपके साथ काम करना चाहते हैं.&quot; </p><p>&quot;दूसरे ही दिन उन्होंने मुझे बुलाकर काम दे दिया. दो-तीन साल बाद मैंने उनसे पूछा कि आप अपने साथ मुझे रखने को क्यों राज़ी हो गए. उन्होंने जवाब दिया, आप फ़िजी से आए थे. आप यहाँ किसी को जानते नहीं थे. मेरा फ़र्ज़ बनता था कि मैं आपकी मदद करूँ.&quot; </p><p>रजनी पटेल के साथ काम करने के दौरान ही उनकी मुलाक़ात मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी से हुई थी. उस समय रजनी पटेल उनके पति कमाल अमरोही के ख़िलाफ़ उनका मुक़दमा लड़ रहे थे. </p><p>भाईचंद बताते हैं, &quot;मेरा तजुर्बा है कि जितना बड़ा स्टार हो, उसका बैंक बैलेंस उतना ही मामूली होता है. मीना कुमारी के साथ भी ऐसा ही था. उस वक़्त वो अपने ‘पीक’ से उतर चुकी थीं. उनका जिस्म मोटा हो चला था और उन्हें काम मिलना बंद हो चुका था.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/magazine-49628401?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">बलूचिस्तान ने अब भी किया हुआ है पाकिस्तान की नाक में दम</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49720843?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">रूसी करंजिया को नेहरू की डांट और मोरारजी देसाई से चिढ़ </a></li> </ul><figure> <img alt="मारियो मिरांडा" src="https://c.files.bbci.co.uk/AC88/production/_109586144_gettyimages-838614302.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>कार्टूनिस्ट मारियो मिरांडा</figcaption> </figure><h1>मारियो मिराँडा और आरके लक्ष्मण की प्रतिद्वंद्विता</h1><p>मुंबई के दिनो में ही भाईचंद की दोस्ती मशहूर कार्टूनिस्ट मारियो मिराँडा से हो गई थी. भाईचंद बताते हैं, &quot;आर के लक्ष्मण और मिराँडा दोनों एक ही छत के नीचे टाइम्स ऑफ़ इंडिया में काम करते थे. दोनों में बहुत सख़्त प्रतिद्वंद्विता थी. लक्ष्मण मिराँडा को कतई पसंद नहीं करते थे और उनके लिए हमेशा मुश्किलें खड़ी करते रहते थे.&quot; </p><p>&quot;वो ये भी सुनिश्चित करते थे कि मिराँडा के कार्टून टाइम्स ऑफ़ इंडिया में न छपें. मिराँडा के कार्टून या तो फ़िल्मफेयर में छपा करते थे या खुशवंत सिंह के संपादक बनने के बाद इलेस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया में. मारियो मेरे दोस्त थे. वो अक्सर दावतें करते थे जिसमें मुझको अक्सर बुलाया जाता था. वो ‘प्ले ब्वॉए’ पत्रिका का हर अंक पढ़ते थे जिस पर उस समय भारत में प्रतिबंध लगा हुआ था.&quot;</p><figure> <img alt="राहुल सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/FAA8/production/_109586146_gettyimages-467191301.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>भाईचंद पटेल और राहुल सिंह की दोस्ती आज भी क़ायम है</figcaption> </figure><h1>जब राहुल सिंह डायना बेकर को मोटर साइकिल पर बैठाकर ले उड़े</h1><p>लंदन में पढ़ाई के दौरान पटेल की मुलाक़ात खुशवंत सिंह के बेटे राहुल सिंह से हुई. वो दोस्ती अभी तक बरक़रार है. मुंबई में ये दोनों ‘नाइन आवर्स टू रामा’ की हीरोइन डायना बेकर को ‘डेट’ कर रहे थे. वो ताज होटल के एक रेस्तराँ में बैठे थे. उसी समय भाईचंद बाथरूम गए और जब वो टेबिल पर वापस लौटे तो राहुल सिंह डायना बेकर को अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर नदारत हो चुके थे. राहुल सिंह को वो घटना अभी तक याद है. </p><p>वो बताते हैं, &quot;डायना बेकर बहुत मशहूर फ़िल्म अभिनेत्री थीं. वो मुंबई आई थीं. भाईचंद ने उसे ताज होटल के ‘सी लाउंज’ रेस्तराँ में बुलाया था. मैं भी चला गया. भाईचंद की योजना थी कि वो इसके बाद डायना के साथ निकल जाएगा और उसे मुंबई घुमाएगा.&quot; </p><p>&quot;मेरे पास उस ज़माने में एक रॉयल इनफ़ील्ड मोटर साइकिल हुआ करती थी. जब भाईचंद बाथरूम गया तो डायना ने मुझसे कहा कि मैं भाईचंद के साथ नहीं जाना चाहती हूँ. उसने मुझसे कहा कि क्यों नहीं तुम मुझे मुंबई घुमाते. हम दोनों मोटर साइकिल पर सवार होकर वहाँ से निकल गए.&quot;</p><figure> <img alt="खुशवंत सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/148C8/production/_109586148_gettyimages-479700293.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>खुशवंत सिंह समय के पाबंद थे</figcaption> </figure><h1>खुशवंत सिंह का सोने का वक़्त</h1><p>राहुल सिंह के ज़रिए भाईचंद पटेल की मुलाक़ात खुशवंत सिंह से हुई. वो उनके ताउम्र मुरीद रहे. खुशवंत सिंह का एक सिद्धाँत था. वो लोगों को ठीक 7 बजे ड्रिंक्स पर बुलाते थे. 8 बजे खाना परोसते थे और ठीक 9 बजे सोने चले जाते थे. समय ख़त्म हो जाने के बाद एक बार उन्होंने राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह तक से जाने के लिए कह दिया था. </p><p>भाईचंद पटेल भी राहुल सिंह के 50वें जन्मदिन पर दी गई उस पार्टी में मौजूद थे जिसमें उन्होंने राजीव गाँधी को बुलाया था. राहुल सिंह याद करते हैं, &quot;राजीव गाँधी हमारे यहाँ खाने पर आए थे और क़रीब डेढ़ घंटे तक हमारे यहाँ रुके थे. मेरे पिता खुशवंत सिंह ने कहा था कि हमारे लिए ये बहुत ही भावनात्मक क्षण है कि जिस घर में आपकी माँ और छोटे भाई आए थे, उसमें अब आपके भी क़दम पड़ गए हैं. लेकिन मैं आपके साथ अब और नहीं बैठ सकता, क्योंकि मेरे सोने का वक़्त हो गया है. इसके छह महीने बाद ही राजीव गाँधी एक बम विस्फोट में मारे गए थे.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49449145?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">विवेचना: इंदिरा गांधी को अपनी बहन मानते थे यासिर अराफ़ात</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/magazine-49527379?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">राजकुमारी डायना की ज़िंदगी का आख़िरी दिन</a></li> </ul><p><strong>स्वर्ण सिंह का अपने गिलास में पानी </strong><strong>उड़ेलवाना</strong></p><p>भाईचंद पटेल का आत्म वृताँत इस तरह के कई क़िस्सों से भरा हुआ है उनकी इस किताब की ख़ासियत है उसकी बेबाकी. राहुल सिंह कहते हैं, &quot;ये बहुत पठनीय किताब है. हल्की फ़ुल्की किताब हैं लेकिन इसमें बहुत हास्य है. आप इसे एक बार उठाएं तो इसे नीचे नहीं रख सकते.&quot; </p><p>1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय भाईचंद पटेल संयुक्त राष्ट्र में न्यूयॉर्क में तैनात थे. उस दौरान सुरक्षा परिषद में भारत के प्रतिनिधि समर सेन और पाकिस्तानी प्रतिनिधि आग़ा शाही दिन में तो बहुत तीखी बहस करते थे लेकिन शाम को दोनों बार में एक साथ शराब पीते थे. </p><p>उसी दौरान भाईचंद को भारतीय विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह की एक बात पसंद नहीं आई थी जब उन्होंने भाषण देते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि से अपने गिलास में पानी उड़ेलने के लिए कहा था. </p><figure> <img alt="स्वर्ण सिंह" src="https://c.files.bbci.co.uk/A2C4/production/_109586614_gettyimages-517772066.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>संयुक्त राष्ट्र में स्वर्ण सिंह</figcaption> </figure><p>भाईचंद पटेल याद करते हैं, &quot;ये उसी तरह था जैसे आप अपने घर में नौकर से पानी डालने के लिए कहते हैं. स्वर्ण सिंह भाषण दे रहे थे. उसे हर जगह लाइव दिखाया जा रहा था. तभी वो पीछे मुड़े और उन्होंने भारतीय प्रतिनिधि से अपने गिलास में पानी डालने का इशारा किया, जबकि पानी का जग और गिलास उनके ठीक सामने ही रखा हुआ था और वो ख़ुद अपने हाथ से पानी डाल सकते थे. मुझे इतने बड़े पद पर काम कर रहे स्वर्ण सिंह की इस हरकत पर बहुत शर्म आई.&quot;</p><h1>नायपॉल की कंजूसी</h1><p>भाईचंद पटेल मशहूर लेखक वीएस नायपॉल को भी जानते थे. पटेल बताते हैं, &quot;विनोद मेहता और राहुल सिंह उन्हें शायद मुझसे बेहतर जानते थे. लेकिन जब नायपॉल दिल्ली आए तो मुझे उनकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी दी गई. शायद इसकी वजह ये थी कि मेरे पास बड़ी कार और बेहतरीन रसोइया था.&quot; </p><figure> <img alt="वीएस नायपॉल" src="https://c.files.bbci.co.uk/F0E4/production/_109586616_gettyimages-3246138.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>वीएस नायपॉल</figcaption> </figure><p>&quot;नायपॉल की एक चीज़ मैंने नोट की कि जब भी वो लोगों के साथ किसी रेस्तराँ जाते थे तो कभी भी उनका हाथ अपने बटुए की तरफ़ नहीं जाता था, जबकि वो मेन्यू में सबसे मंहगी वाइन का ऑर्डर दिया करते थे. वो त्रिनिडाड में पैदा हुए थे और ब्रिटिश नागरिक थे. मुझे इस बात पर बहुत हँसी आई की जब उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला तो भारतियों में उन्हें अपना कहने की होड़ लग गई, जबकि उन्हें हिंदी का एक अक्षर भी बोलना नहीं आता था.&quot;</p><h1>अपने को कहते हैं ‘पार्टी एनिमल'</h1><p>भाईचंद पटेल इस समय 83 साल के हैं लेकिन सेक्स में उनकी दिलचस्पी कम नहीं हुई है. लेकिन वो स्वीकार करते हैं कि उनके लिए ‘सेक्स उसी तरह है जैसे रस्सी से बिलियर्ड्स खेलना.’ </p><p>पटेल दिल्ली में अपनी दी गई पार्टियों के लिए मशहूर हैं. उनकी हर साल दी जाने वाली वेलेंटाइंस डे और क्रिसमस पार्टी में 27 से 92 साल की उम्र के दिल्ली के चुनिंदा लोग शरीक होते हैं. </p><figure> <img alt="अपने घर की पार्टी में भाईचंद पटेल" src="https://c.files.bbci.co.uk/13F04/production/_109586618_gettyimages-642249070.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>अपने घर की पार्टी में भाईचंद पटेल</figcaption> </figure><p>पटेल बताते हैं, &quot;दरअसल मैं लोगों से प्यार करता हूँ. मैं दिल्ली में अकेला रहता हूँ. हफ़्ते में तीन-चार बार लोग मुझे खाने पर बुलाते हैं. इसलिए मेरे लिए ज़रूरी है कि मैं भी उन्हें खाने पर बुलाऊँ. छोटी पार्टियों में मैं क़रीब 12 लोगों को बुलाता हूँ, क्योंकि मेरी खाने की मेज़ पर इतने लोग ही बैठ सकते हैं. मेरी बड़ी पार्टी वेलेंटाइंस डे को होती है. मेरा गार्डेन बहुत बड़ा है.&quot; </p><p>&quot;मैं उस दिन क़रीब 150-200 लोगों को आमंत्रित करता हूँ. घर का खाना खिलाता हूँ, क्योंकि मेरा रसोइया बहुत अच्छा है. मैंने आज तक कभी ‘केटरिंग’ का खाना खिलाया ही नहीं किसी को.&quot; </p><p>मैंने भाईचंद से पूछा कि आप अपने मेहमानों का चुनाव किस तरह से करते हैं तो उनका जवाब था, &quot;दिलचस्प लोग. दिल्ली में इतने सालों तक रहने के बाद मुझे इतना तजुर्बा है कि मैं बता सकता हूँ कि दिलचस्प लोग कौन-कौन हैं. मेरी पार्टी में वही लोग आते हैं जिन्हें मैं पसंद करता हूँ.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-40538896?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’जो प्रधानमंत्री होने के बावजूद खेतों में चले जाते थे'</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48730293?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">जब निक्सन ने इंदिरा को कराया 45 मिनट इंतज़ार</a></li> </ul><figure> <img alt="भाईचंद पटेल और रेहान फ़ज़ल बीबीसी स्टूडियो में" src="https://c.files.bbci.co.uk/0A6C/production/_109586620_whatsappimage2019-11-08at20.25.19.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>भाईचंद पटेल और रेहान फ़ज़ल बीबीसी स्टूडियो में</figcaption> </figure><h1>आज के भारत से खुश नहीं</h1><p>लेकिन भाईचंद पटेल को इस बात का मलाल है कि आज का भारत वो भारत नहीं हैं जो उस ज़माने में हुआ करता था जब वो जवान होते थे. </p><p>पटेल कहते हैं, &quot;मैं इस बात से बहुत दुखी हूँ जिस तरफ़ देश जा रहा है. हमारे ज़माने में ये देश सबका देश था. हिंदू, मुसलमान और सिख में कोई फ़र्क नहीं समझा जाता था. अब तो लोगों की धर्म के आधार पर पिटाई की जा रही है.&quot; </p><p>&quot;कोई ये कहे कि ये देश सिर्फ़ हिंदुओं का है, तो मैं इसे कभी नहीं मानूँगा. इस देश को सब लोगों ने मिल कर बनाया है. अगर इस देश में सबको समान अवसर मिले तभी देश आगे बढ़ेगा. अगर हम ये कहें कि इस धर्म वालों को नौकरी नहीं मिलेगी क्योंकि वो ये खाते हैं या वो खाते हैं, तो इससे बड़ी ज़्यादती क्या हो सकती है. हम ये कहने वाले कौन हैं कि आप क्या खाएं.&quot;</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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