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एनआरसी से हिंदुओं के लिए बंद दरवाज़े खोलेगा नागरिकता संशोधन विधेयक?

<p>केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में अपने पूर्वोत्तर दौरे के दौरान कहा था कि नागरिकता संशोधन विधेयक को फिर से संसद में पेश किया जाएगा.</p><p>ये विधेयक नागरिकता क़ानून 1995 के प्रावधानों को बदल देगा और अगर यह क़ानून बन गया तो अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत में आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, […]

<p>केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में अपने पूर्वोत्तर दौरे के दौरान कहा था कि नागरिकता संशोधन विधेयक को फिर से संसद में पेश किया जाएगा.</p><p>ये विधेयक नागरिकता क़ानून 1995 के प्रावधानों को बदल देगा और अगर यह क़ानून बन गया तो अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भारत में आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई अवैध प्रवासियों को नागरिकता मिलने का रास्ता खुल जाएगा.</p><p>मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है. विधेयक में प्रावधान है कि ग़ैर-मुस्लिम समुदायों के लोग अगर भारत में छह साल गुज़ार लेते हैं तो वे आसानी से नागरिकता हासिल कर पाएंगे. पहले ये अवधि 11 साल थी.</p><p>मौजूदा क़ानून के तहत भारत में अवैध तरीक़े से दाख़िल होने वाले लोगों को नागरिकता नहीं मिल सकती है और उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने के प्रावधान हैं.</p><p>इस प्रस्तावित विधेयक में धर्म के आधार पर अवैध प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान है जिससे भारतीय संविधान के सभी को बराबरी देने वाले अनुच्छेद 14 के उल्लंघन का सवाल भी उठा है.</p><p>मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये प्रस्तावित विधेयक भारत के मूल सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है. सेंटर फ़ॉर इक्वालिटी के निदेशक हर्ष मंदर कहते हैं, &quot;ये विधेयक अगर पारित हो गया तो भारत का संवैधानिक विचार ही मूल रूप से बदल जाएगा. भारत और पाकिस्तान जब दो देश बने तो पाकिस्तान मुसलमानों का देश बना था लेकिन हिंदुस्तान की कल्पना ये थी कि ये सभी धर्मों, जाति के लोगों के लिए बराबरी का देश होगा. ये देश मुसलमानों का भी उतना ही होगा जितना हिंदुओं का होगा.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49636811?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’सरकार एनआरसी की त्रुटियों को जल्द ठीक करे’ </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49633376?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एनआरसी: नागरिकता की चक्की में पिसते असम के बच्चे – बीबीसी विशेष</a></li> </ul><p>लेकिन भारतीय जनता पार्टी इसे एक ज़रूरी नैतिक और सैद्धांतिक क़दम बता रही है. </p><p>आरएसएस विचारक और भाजपा के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा कहते हैं, &quot;जिन लोगों का धार्मिक आधार पर उत्पीड़न हो रहा है, संपत्तियां ज़ब्त की जा रही हैं, पूजा-पाठ पर हमले किए जा रहे हैं, महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है उन्हें सहज सरल तरीक़े से नागरिकता देना ही इस प्रस्तावित विधेयक का उद्देश्य है.&quot;</p><p>वो कहते हैं, &quot;इसे सांप्रदायिक दृष्टिकोण से देखना बंद किया जाना चाहिए. घुसपैठिए, घुसपैठिए होते हैं, उनमें जो लोग उत्पीड़न के कारण आते हैं, उनमें अंतर करना हमारा नैतिक और संवैधानिक कर्तव्य बनता है.&quot;</p><h1>एनआरसी से बाहर हिंदुओं के लिए लाया जा रहा है नागरिकता संशोधन विधेयक?</h1><p>असम में 31 अगस्त को प्रकाशित राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर से 19 लाख से अधिक लोग बाहर हैं. इन लोगों की नागरिकता अब सवालों में है. अनुमानों के मुताबिक़ नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी से बाहर रखे गए लोगों में हिंदुओं और मुसलमानों की तादाद लगभग बराबर है और इनमें अधिकतर बांग्लादेशी मूल के हैं.</p><p>प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक के क़ानून बनने पर हिंदू अवैध प्रवासियों को तो भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता खुल जाएगा लेकिन मुसलमान इसके दायरे से बाहर रहेंगे. मानवाधिकार कार्यकर्ता सवाल करते हैं कि इससे मुसलमानों की एक बड़ी आबादी स्टेटलेस हो जाएगी. </p><p>हर्ष मंदर कहते हैं, &quot;असम में एनआरसी की प्रक्रिया के दौरान हमने ये देखा है कि भाजपा की छटपटाहट की वजह ये है कि अवैध प्रवासियों में हिंदुओं की संख्या अधिक है. अब जो विधेयक लाया जा रहा है वो शरणार्थी और अवैध प्रवासियों की स्थिति में बदलाव करेगा. अब मुसलमानों के अलावा किसी भी अन्य धर्म के लोगों को शरणार्थी माना जाएगा और नागरिकता दी जाएगी. लेकिन मुसलमान अवैध प्रवासियों को नागरिकता का हक़ नहीं मिलेगा.&quot;</p><p>वो कहते हैं, &quot;अगर मां-बाप में से एक भी अवैध प्रवासी घोषित हुआ तो उनके बच्चों को भी नागरिकता नहीं मिलेगी. अगर ये पूरा खाता दोबारा खोला जाएगा तो कितनी दूर तक ये बात जाएगी, इसके क्या परिणाम होंगे, इस बारे में नहीं सोचा जा रहा है.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49520943?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एनआरसी जारी होने से पहले असम में तनाव</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49484172?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">असम में एनआरसी की गाज गिरी स्कूलों पर</a></li> </ul><h1>धर्म के आधार पर भेदभाव का आरोप</h1><p>वहीं राकेश सिन्हा कहते हैं, &quot;जो भी हो रहा है सर्वोच्च न्यायलय के अधीनस्थ और तय पैमानों के आधार पर हो रहा है. एनआरसी में शामिल होने के लिए पैमाने तय हैं, जो इनके दायरे में आएगा उसका नाम आएगा. इसमें हिंदू, मुसलमान या किसी और धर्म या जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है. भारतीय जनता पार्टी पर राजनीति का आरोप वही लोग लगा रहे हैं जिनके निहित स्वार्थ इससे जुड़े हैं, निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय दृष्टिकोण से ये काम किया जा रहा है.&quot;</p><p>हर्ष मंदर का कहना है कि बांग्ला मूल के हिंदुओं को नागरिकता से बाहर रखना भाजपा के लिए राजनीतिक आत्महत्या जैसा होगा. </p><p>वो कहते हैं, &quot;अगर असम के दस लाख हिंदुओं की नागरिकता समाप्त हो जाए तो भाजपा के लिए ये एक राजनीतिक आत्महत्या जैसी होगी. भाजपा के लिए बिना नागरिकता संशोधन विधेयक के एनआरसी लागू करना संभव नहीं है. इसके बिना वो यहां अपनी राजनीति चला ही नहीं सकते हैं.&quot;</p><p>वहीं असमिया अधिकारों के लिए लड़ रहे संगठन इस प्रस्तावित विधेयक का विरोध कर रहे हैं. ऑल असम स्टूडेंट एसोसिएशन से जुड़े दिवाकर नाथ कहते हैं, &quot;हम नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहे हैं क्योंकि ये धर्म के आधार पर भेदभाव करता है.&quot;</p><p>वो कहते हैं, &quot;असम के समाज में स्वदेशी हिंदू भी हैं और मुसलमान भी हैं. ये विधेयक असम के समाज के लिए ठीक नहीं है. हमारा समुदाय हिंदू मुसलमान में बंटा हुआ नहीं है लेकिन ये विधेयक धर्म के आधार पर भेदभाव करता है.&quot;</p><p>वहीं बारपेटा ज़िले की सारूखेत्री सीट से कांग्रेस के विधायक ज़ाकिर हुसैन सिकदर का मानना है कि नागरिकता संशोधन विधेयक आने से असम में नया संकट पैदा हो सकता है.</p><p>सिकदर कहते हैं, &quot;असम आंदोलन के बाद ये तय हुआ था कि जो लोग 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं वो भारतीय नागरिक हैं उसके बाद से आए लोग विदेशी हैं. एनआरसी भी इसी आधार पर किया जा रहा है. लेकिन अब नागरिकता संशोधन विधेयक लाने की बात की जा रही है. इससे असम का माहौल ख़राब होगा. इससे यहां नया संकट पैदा होगा.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49497187?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">असम के ‘एनआरसी’ के बारे में कितना जानते हैं </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-49409296?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एनआरसी को लेकर बांग्लादेश में क्यों है चर्चा</a></li> </ul><h1>’हिंदुओं को ख़ुश करने की राजनीति'</h1><p>वो कहते हैं, &quot;अगर बांग्लादेश, पाकिस्तान या अफ़ग़ानिस्तान में हिंदुओं या अन्य अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हो रहा है तो ये मुद्दा हमारी सरकार को वहां की सरकार के साथ उठाना चाहिए. बांग्लादेश में तो अभी माहौल अच्छा है फिर वहां से आए हिंदुओं को नागरिकता देने की बात क्यों कही जा रही है?&quot;</p><p>सिकदर सवाल करते हैं, &quot;एक ओर तो हमारे यहां एनआरसी तैयार किया जा रहा है ताकि असम में रह रहे विदेशी लोगों को बाहर निकाला जा सके. एनआरसी पर इतना पैसा ख़र्च किया जा रहा. दूसरी ओर नागरिकता संशोधन विधेयक लाया जा रहा है तो फिर एनआरसी का फ़ायदा क्या है?&quot; </p><p>वो कहते हैं, &quot;दरअसल इस विधेयक के ज़रिए बीजेपी अपने हिंदू वोट बैंक को मज़बूत करना चाहती है. वो हिंदुओं को दिखाना चाहती है कि देखो हम ये विधेयक आपके लिए ला रहे हैं. बांग्लादेश, पाकिस्तान या अफ़ग़ानिस्तान से भले ही आगे कोई आए या ना आए, असली बात ये है कि ये एनआरसी में रिजेक्ट हिंदुओं को नागरिकता देने के लिए ये विधेयक लाया जा रहा है.&quot;</p><p>वहीं आल असम माईनॉरिटी स्टूडेंट एसोसिएशन से जुड़े रियाजुल करीम हसकर भी ऐसे ही सवाल उठाते हैं. असम में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए काम कर रहा उनका संगठन भी प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध कर रहा है. </p><p>वो कहते हैं, &quot;1971 के बाद जो भी असम में आया है वो विदेशी है, भले ही हिंदू हो या मुसलमान हो और इसमें कोई बदलाव नहीं होना चाहिए.&quot;</p><p>हसकर कहते हैं, &quot;असम आंदोलन के बाद जो असम अकॉर्ड हुआ उसमें अल्पसंख्यकों के साथ कई तरह से अन्याय हुआ. उसे भूलकर भी हमने अकॉर्ड को मान लिया. हमारी मांग है कि जो लोग विदेशी पाए जा रहे हैं उनमें अब धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन एनआरसी के बाद सीएबी लाया ही इसलिए जा रहा है कि एनआरसी से बाहर हिंदुओं को नागरिकता दे दी जाए. हम इसका विरोध करते हैं.&quot; </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49710170?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">हरियाणा में NRC लागू करेंगे: मनोहर लाल खट्टर</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49185265?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एनआरसी से जुड़ा तनाव लोगों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर रहा है?- बीबीसी विशेष</a></li> </ul><figure> <img alt="पूर्वोत्तर में नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध हुआ है" src="https://c.files.bbci.co.uk/112D3/production/_108855307_f9bc250d-b71f-4c82-a612-5c7a6ed13795.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>नागरिकता संशोधन विधेयक</h1><p>वो कहते हैं, &quot;असम में धार्मिक, भाषाई और जातीय अल्पसंख्यकों का नागरिकता के नाम पर और विदेशी होने के मुद्दे पर यहां अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न हो रहा है. ये एक धर्मनिरपेक्ष देश है, धर्मनिरपेक्ष संविधान है, इस देश में विदेशी की पहचान में धर्म मुद्दा होना ही नहीं चाहिए.&quot;</p><p>हसकर सवाल करते हैं, &quot;एक ओर तो अमित शाह कहते हैं कि बांग्लादेशी मूल के विदेशियों को भारत से जाना होगा और दूसरी ओर वो नागरिकता संशोधन विधेयक लाने की बात करते हैं. ये असम में हिंदू मुसलमान की राजनीति करने की कोशिश नहीं है तो क्या है?&quot;</p><p>वहीं हर्ष मंदर कहते हैं, &quot;जहां तक असम मूवमेंट का सवाल है, उनका मूल मुद्दा असमिया राष्ट्रवाद था, लेकिन ये कभी भी सांप्रदायिक नहीं था. उनका बंगाली मूल के हिंदू-मुसलमानों के ख़िलाफ़ बराबर विरोध था.&quot;</p><p>नागरिकता संशोधन विधेयक आने के बाद एनआरसी से बाहर हिंदुओं के लिए तो भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता खुलेगा लेकिन असम में रह रहे उन मुसलमानों का क्या होगा जो एनआरसी से बाहर रहेंगे इसका जवाब अभी नहीं मिल पा रहा है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48800545?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">नागरिकता छिनने के डर से बढ़ रही आत्महत्याएं?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44999876?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">असम में अवैध माने गए 40 लाख लोगों के पास रास्ता क्या</a></li> </ul><h1>स्टेटलेस नागरिक</h1><p>हर्ष मंदर कहते हैं, &quot;सबसे ख़तरनाक बात ये है कि सरकार इसका जवाब नहीं दे रही है कि जो लोग नागरिकता के दायरे से बाहर रहेंगे उनका क्या किया जाएगा. राजनीतिक भाषणों में तो कहा जा रहा है कि इन लोगों को देश के बाहर भेजा जाएगा. अमित शाह ने गृहमंत्री के पद पर रहते हुए संसद में कहा है कि अवैध प्रवासियों को डिपोर्ट किया जाएगा. लेकिन ये नहीं बताया गया है कि उन्हें भेजा कहां जाएगा. बांग्लादेश सरकार तो उन्हें स्वीकार नहीं करेगी. अगर ये लोग बांग्लादेश नहीं जाएंगे तो एक विकल्प ये है कि इन्हें हिरासत केंद्रों में रखा जाएगा. और अगर रखा जाएगा तो कब तक रखा जाएगा. ये भी नहीं बताया जा रहा है.&quot;</p><p>वो सवाल करते हैं, &quot;तो क्या हम कई लाख लोगों को और उनके बच्चों को आजीवन हिरासत केंद्रों में रखेंगे? उनके बच्चों का क्या किया जाएगा?&quot; </p><p>मंदर कहते हैं, &quot;एक विकल्प ये हो सकता है कि ये लोग देश में रहेंगे तो लेकिन उनके पास नागरिकता से जुड़ा कोई अधिकार नहीं होगा. वो न ज़मीन ख़रीद पाएंगे और ना ही सार्वजनिक सेवाओं का फ़ायदा उठा पाएंगे. ना वोट डाल पाएंगे और ना ही कोई अन्य अधिकार उनके पास होगा. सबसे बड़ी बात ये है कि ये नागरिकताविहीन लोग सिर्फ़ मुसलमान होंगे.&quot; </p><p>&quot;ये म्यांमार के रोहिंग्या लोगों जैसी स्थिति होगी. आप हैं भी लेकिन नहीं भी हैं. आप जिएंगे तो लेकिन आपके पास कोई अधिकार नहीं होंगे. ऐसी स्थिति में शोषण के कई रास्ते खुल जाएंगे.&quot;</p><p>वहीं राकेश सिन्हा सांप्रदायिकता के सवाल को सिरे से ख़ारिज़ करते हुए कहते हैं, &quot;जब हम पूरे देश भर में एनआरसी की बात करते हैं तो उसका उद्देश्य क्या है? इसका उद्देश्य अनैतिक और अवैधानिक तौर पर देश में आए लोगों की पहचान करना और चिन्हित करना है. इसमे सांप्रदायिकता कहां से आई गई?&quot; </p><p>सिन्हा कहते हैं, &quot;भारत में 1951 की जनगणना में मुसलमानों की संख्या 9 फ़ीसदी थी जो 2011 में बढ़कर 14 फ़ीसदी हो गई. जातीय या धर्म के आधार पर भेदभाव करना भारत के स्वभाव में है ही नहीं है.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-45040780?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एनआरसी में नाम न होने से ग़ुस्से में हैं सैकड़ों हिंदीभाषी</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48996969?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एनआरसी के डर से मूल निवासियों का रजिस्टर बना रहा है नगालैंड?</a></li> </ul><figure> <img alt="नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध" src="https://c.files.bbci.co.uk/139E3/production/_108855308_14e86516-62c8-4df8-a4c0-4b0ae3c4daf0.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>जनसंख्या बढ़ने के तर्क</h1><p>सिन्हा तर्क देते हैं कि पड़ोसी देशों में जिन अल्पसंख्यकों का धर्म के आधार पर उत्पीड़न हो रहा है उन्हें ये प्रस्तावित विधेयक न्याय देगा. </p><p>वो कहते हैं, &quot;बांग्लादेश से एक करोड़ दस लाख हिंदू ग़ायब हैं, उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है, अगर ऐसी स्थिति में, धार्मिक उत्पीड़न का शिकार लोगों को अगर नागरिकता दी जा रही है तो इसमें सांप्रदायिकता कहां हैं? बांग्लादेश और पाकिस्तान की जनगणना के आधार पर ये स्थापित सत्य है कि वहां हिंदू और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों का उत्पीड़न हुआ है. बंटवारे के बाद दोनों ही देशों में हिंदुओं की संख्या घटी है.&quot;</p><p>पूरे देश में एनआरसी की वकालत करते हुए सिन्हा कहते हैं, &quot;बिहार के सीमांचल में, ख़ासकर पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगज़ ज़िलों में जनसंख्या का अनुपात 1971 के बाद से बढ़ा है उसे सामान्य नहीं कहा जा सकता. ये जनसंख्या सामान्य फ़र्टिलिटी रेट के आधार पर नहीं बढ़ी है, ये घुसपैठियों के आधार पर बढ़ी है. एनआरसी जितना ज़रूरी असम में है उतना ही सीमांचल में भी है.&quot; </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49536038?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">NRC: पत्नी के बाद पूरा परिवार लिस्ट से गायब</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49533526?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">असम में NRC की फ़ाइनल लिस्ट जारी, 19 लाख से अधिक लोग बाहर</a></li> </ul><h1>नागरिकता देने का बोझ</h1><p>सिन्हा कहते हैं, &quot;पाकिस्तान में सिर्फ़ हिंदुओं ही नहीं बल्कि ईसाइयों और सिखों पर भी हमले हो रहे हैं. जिन लोगों के धार्मिक मूल्यों और सम्मान पर हमला हो रहा है, नरेंद्र मोदी सरकार उन्हें भारत की नागरिकता देगी. इसमें हिंदू ही नहीं बल्कि बौद्ध, सिख, ईसाई, जैन आदि भी शामिल होंगे. </p><p>पाकिस्तान में लगातार ईसाइयों पर आक्रमण हो रहा है, नरेंद्र मोदी सरकार ने नेहरू-लियाक़त पैक्ट से अलग हटकर उत्पीड़न के शिकार लोगों को नागरिकता देने का एक नया रास्ता निकाला है. </p><p>लेकिन क्या बड़ी तादाद में विदेशी प्रवासियों को नागरिकता देना से भारत पर बोझ नहीं बढ़ेगा. </p><p>सिन्हा कहते हैं, &quot;जहां नैतिक और संवैधानिक कर्तव्य और सभ्यता का दायित्व आ जाता है वहां पर आपको संकट झेलने में साझेदारी करनी पड़ती है. हम अपनी आंखों के सामने उन लोगों को जलते, मरते या धर्मांतरण करते नहीं देख सकते हैं जो लोग इस भारत भूमि के हिस्से थे और सिर्फ़ धर्म के कारण जिन पर अत्याचार हो रहा है. उन्हें भारत में सम्मानित स्थान देना हमारा नैतिक, संवैधानिक और सभ्यता का दायित्व है और अगर इसके निर्वाहन में कुछ कठिनाइयां आती हैं तो ये हमें झेलनी होंगी.&quot;</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/social-49578090?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">ट्विटर पर ओवैसी और हिमंत बिस्वा सरमा की ज़ुबानी जंग </a></p><h1>पूर्वोत्तर राज्य में चिंताएं</h1><p>बीजेपी ने नागरिकता संशोधन विधेयक को पिछली लोकसभा से पारित भी करवा लिया था लेकिन ये विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं हो सका था. तब असम में बीजेपी की सहयोगी पार्टी असम गण परिषद ने भी इसका विरोध किया था. पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इस विधेयक को लेकर विरोध प्रदर्शन भी हुए थे.</p><p>इसके अलावा पूर्वोत्तर के कई राज्यों, जिनमें बीजेपी समर्थित सरकारें हैं, ने भी इस प्रस्तावित विधेयक का विरोध किया है. इन राज्यों में आशंका है कि सीएबी के पारित होने के बाद वहां की जनसंख्या का स्वरूप बदल जाएगा.</p><p>मेघालय के मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा ने अमित शाह से अपील की है कि वो ये विधेयक लाने से पहले पूर्वोत्तर राज्यों को विश्वास में लें. </p><p>उन्होंने सवाल किया, &quot;सीएबी के बाद क्या होगा? क्या बांग्लादेश से लोग आते रहेंगे? क्या इसकी कोई समयसीमा होगी या वो बस यूं ही आते रहेंगे. हम पूर्वोत्तर के लोगों के मन में कई तरह के डर हैं.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49534047?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’मेरे पति असम आंदोलन की भेंट चढ़े, फिर हम विदेशी कैसे'</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49684054?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सोनिया गांधी का ये फॉर्मूला फूंक पाएगा कांग्रेस में जान?</a></li> </ul><p>वहीं बीजेपी के सहयोगी और नगालैंड के मुख्यमंत्री नीफ्यू रियो ने भी इस विधेयक का विरोध किया है. उन्होंने एक सार्वजनिक बयान में इस विधेयक के बारे में कहा है, &quot;यदि केंद्र सरकार विवादित सीएबी को लागू करेगी तो इससे पूर्वोत्तर की जनसंख्या का स्वरूप बदल जाएगा.&quot;</p><p>वहीं मिज़ोरम के मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने अमित शाह से गुज़ारिश की है कि वो पूर्वोत्तर को सीएबी के दायरे से ही बाहर कर दें. उन्होंने कहा है कि सीएबी पूर्वोत्तर में एक बेहद विवादित और संवेदनशील मुद्दा है और इसका समर्थन करना राजनीतिक आत्महत्या जैसा है. </p><p>वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि ‘हम ये सुनिश्चित करेंगे कि नागरिकता संशोधन विधेयक लागू होने के बाद भी पूर्वोत्तर के राज्यों के मौजूदा क़ानून बरक़रार रहें. हमारा इन क़ानूनों में बदलाव का कोई इरादा नहीं है.'</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a 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