नयी दिल्ली: ग्रामीण विकास को समर्पित योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के लिए हाल के दिनों में पेशेवरों की मांग बढ़ी है. गांव में लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी, बैंकिंग सिस्टम की जानकारी, तथा कृषि क्षेत्र में घोषित नवीन वैज्ञानिक पद्दतियों की जानकारी देने के लिए कुशल पेशवरों की मांग बढ़ी है जो सरकारी तथा गैरसरकारी संगठनों के साथ मिलकर इस दिशा में लोगों को प्रशिक्षित करने का काम कर रहे हैं.
ग्रामीण विकास से संबंधित पेशेवरों को तैयार करने के लिए सरकार द्वारा कुछ साल पहले कुछ पाठ्यक्रमों की घोषणा की गयी थी जिसमें प्रमुख है इंटीग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट यानी एकीकृत ग्रामीण विकास एंव प्रबंधन. ये दो वर्षीय पीजी लेवल डिप्लोमा कोर्स है. इस कोर्स के लिए अप्लाई करने वाले उम्मीदवार के पास किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय या संस्थान से न्यूनतम 50 फीसदी अंक के साथ स्नातक होना अनिवार्य है.
किसी भी विषय से स्नातक कर सकते हैं आवेदन
उम्मीदवार किसी भी विषय में स्नातक हो सकता है लेकिन उसे कृषि, गांव, अर्थव्यवस्था, भौगोलिक दशाओं (जलवायु, मिट्टी, वातावरण, मौसम) की जानकारी होनी चाहिए. साथ ही इस कोर्स को करने वाले छात्र को सरकार द्वारा ग्रामीण विकास को समर्पित चलाई जा रही योजनाओं की भी बेसिक जानकारी होनी चाहिए. आईए जानते हैं कि एक ग्राम तथा कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाले देश में इस तरह के पेशेवरों की जरुरत क्यों पड़ी?
गांवों की प्रासंगिकता बनी कोर्स की जरूरत
बढ़ते शहरीकरण के बावजूद गांवो की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है. आज भी साठ फीसदी भारतीय जनसंख्या गांवों में निवास करती है. देश की सबसे बड़ी जरूरत भोजन की व्यवस्था ग्रामीण इलाकों से ही होती है क्योंकि किसान उगाता है तो देश खाता है. हाल के वर्षों में गांव से शहरों की तरफ पलायन की समस्या गंभीर हुई है. इसका कारण है महत्वपूर्ण होने के बावजूद ग्रामीण इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव चाहे वो खेती हो, आवास हो, बिजली हो पानी हो या फिर शिक्षा. स्वास्थ्य की दशा तो पूछिए ही मत……
ग्रामीण विकास के बेहतर प्रबंधन के लिए जरूरी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने तो ग्राम स्वराज को ही स्वतंत्र भारत के आर्थिक विकास के केंद्र बिंदु के रूप मं देखा था. महात्मा गांधी का कहना था कि गांव उन्नत होगा तो ही देश का विकास हो पाएगा. क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है. बता दें कि आजादी के समय देश की अधिकांश अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी लेकिन हाल के वर्षों में इसमें गिरावट आ गई. भोजन की आवश्यक्ता की पूर्ति के लिए हम वैसी वस्तुुएं भी आयात करने लगे जो हमारे यहां कभी आसानी से उपलब्ध होती थीं. तो आखिर ऐसे हालात क्यों हो गए. इसी का अध्ययन करने के लिए ग्रामीण विकास और प्रबंधन में डिप्लोमाधारी कुशल पेशेवरों की आवश्यक्ता हुई.
इन योजनाओं के लिए जरूरी है आईआरडीएम
बता दें कि आजादी के बाद ग्रामीण विकास को समर्पित कुछ सरकारी योजनाओं को संचालन किया गया था जिनमें सामुदायिक विकास कार्यक्रम, व्यावहारिक पोषण कार्यक्रम, काम के बदले अनाज कार्यक्रम, संपूर्ण ग्रामीण विकास कार्यक्रम इत्यादि. ये सभी कार्यक्रम सत्तर या अस्सी के दशक में चलाए गए. लेकिन कभी भी इनका अपेक्षित परिणाम नजर नहीं आया और ना ही कोई युगांतकारी परिवर्तन सामाजिक व्यवस्था में दिखा. क्योंकि योजनाओं के संचालन का जिम्मा स्थानीय प्रशासन या फिर अधिकारियों के हाथ था. ग्रामीणों तक इनकी सीधी पहुंच ही नहीं होती थी.
अब कुशल पेशेवर गांवो का दौरा करते हैं. लोगों से मिलते हैं और प्रशिक्षण के दौरान सिखाई गयी बातों और अनुभवों के आधार पर लोगों से संवाद स्थापित करते हैं. इनकी बेहतर संवाद योग्यता इन्हें ग्रामीणों, महिलाओं तथा कृषकों संवाद कायम करने में मदद करती है.
जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार सत्ता में आयी तो पीएम नरेंद्र मोदी ने ग्रामीण विकास के लिए नए पहलुओं पर भी ध्यान दिया. इसके तहत ग्रामीण इलाकों में केवल कृषि विकास पर ही ध्यान नहीं दिया गया बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक उत्थान पर भी ध्यान दिया गया. इसके तहत समाज निर्माण में महिलाओं की भागीदारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, आवास, तथा कृषि के विकास के लिए भी संगठनात्मक पद्दति पर ध्यान दिया गया. इसके बाद से ही लगातार विभिन्न सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों में आईडीआरएम से पढ़े युवाओं की मांग बढ़ी है.
पीएम मोदी ने लाल किले से अपने पहले ही भाषण में गांवों को आदर्श ग्राम में परिवर्तित करने के लिए सासंद आदर्श ग्राम योजना की घोषणा की थी. इसके बाद प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, सोलर चरखा स्कीम, ग्रामविकास योजना, गोबर धन स्कीम, किसान विकास पत्र, दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान, प्रधानमंत्री आवास योजना, सॉयल हेल्थ कार्ड जैसी योजनाओं की घोषणा की गयी. पेशेवर युवक इन योजनाओं का ग्रामीण इलाकों में प्रचार करते हैं और लोगों को नए तरीकों से अवगत कराते हैं.
कहां से करें रूरल डेवलपमेंट की पढ़ाई….
अगर आपकी रूचि ग्रामीण विकास तथा मैनेजमेंट में है तो आप स्नातक के बाद इस कोर्स का हिस्सा बन सकते हैं. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का सोशल साइंस संकाय इसके लिए दो वर्षीय डिप्लोमा कोर्स करवाता है. आप इच्छुक हैं तो स्नातक के बाद इस कोर्स के लिए आयोजित की जाने वाली प्रवेश परीक्षा का हिस्सा बन सकते हैं. प्रवेश परीक्षा में भूगोल, स्थानीय निकाय, अर्थव्यवस्था, सरकारी योजनाओं तथा सामान्य अध्ययन से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. दो वर्षीय पाठ्यक्रम के लिए आपको 60,000 रुपये के शुल्क का भुगतान करना होता है. कोर्स खत्म होने के बाद फाइनल एग्जाम से पहले कई सरकारी और गैरसरकारी संगठन प्लेसमेंट के लिए आती है.
इसके अलावा पश्चिम बंगाल में बोलपुर स्थित शांतिनिकेतन से भी इस कोर्स की पढ़ाई होती है. कुछ निजी संस्थानों में भी इसकी पढ़ाई होती है.
कितना मिल सकता है प्रारंभिक वेतन..
कोर्स पूरा करने के बाद किसी संस्थान से जुड़ने पर आपको शुरुआती तौर 20 से 25 हजार के बीच वेतन मिलता है. इसके बाद कार्यक्षमता और अनुभव के आधार पर वेतन में बढ़ोतरी होती जाती है. आप किसी संस्थान के साथ सलाहकार के तौर भी जुड़ सकते हैं. एक बात याद रखें कि ग्राणीण इलाके में काम करने के लिए आपको कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है इसलिए मानसिक तौर पर भी खुद को तैयार करना होगा.