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एनआरसी को लेकर बांग्लादेश में क्यों है चर्चा

<figure> <img alt="असम में नागरिकता रजिस्टर" src="https://c.files.bbci.co.uk/6430/production/_108384652_50566f81-3709-440a-8c23-07e05e7d6b11.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>31 अगस्त को नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजेंस (एनआरसी) की अंतिम सूची जारी होने वाली है. असम के क़रीब 41 लाख लोग भारतीय नागरिकों की इस सूची से बाहर हैं.</p><p>सरकार का दावा है कि अधिकतर लोग जो इस सूची से बाहर हैं, वो बांग्लादेशी हैं […]

<figure> <img alt="असम में नागरिकता रजिस्टर" src="https://c.files.bbci.co.uk/6430/production/_108384652_50566f81-3709-440a-8c23-07e05e7d6b11.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>31 अगस्त को नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजेंस (एनआरसी) की अंतिम सूची जारी होने वाली है. असम के क़रीब 41 लाख लोग भारतीय नागरिकों की इस सूची से बाहर हैं.</p><p>सरकार का दावा है कि अधिकतर लोग जो इस सूची से बाहर हैं, वो बांग्लादेशी हैं और इनमें बड़ी संख्या में मुसलसमान हैं.</p><p>इस तरह की चर्चा है कि असम में जारी एनआरसी प्रक्रिया से भारत का पड़ोसी बांग्लादेश सबसे अधिक प्रभावित हो सकता है और इस कारण बांग्लादेश में भी इस पर काफ़ी चर्चा हो रही है.</p><p>बांग्लादेश स्थित अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था बार्क के प्रवासन विभाग के प्रमुख शरीफ़ हसन कहते हैं, &quot;स्थिति अभी पूरी तरह तय नहीं है. राजनीतिक टीम बताती है कि भारत में एनआरसी का राष्ट्रीयकरण किया जा रहा है और ये उनकी सरकार की एक प्रक्रिया है.&quot;</p><p>वो कहते हैं, &quot;अगर भारत सरकार एक सूची बनाती है, और इसमें बंगाली या मुसलमान लोग भी शामिल हैं, तो इस तरह की प्रक्रिया का हमेशा कुछ विरोध होता है. इन 40 लाख लोगों में क़रीब 4 लाख लोगों के पास अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कोई काग़ज़ात नहीं हैं. ये लोग कहां जाएंगे? आख़िर उनकी पहचान क्या है? इस मामले में विरोध बढ़ने की पूरी संभावना है.&quot;</p><p>बांग्लादेश में काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकार एम अबुल कलाम आज़ाद इस नागरिकता सूची की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हैं.</p><p>वो कहते हैं, &quot;ये बात अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि जो इस लिस्ट में शामिल न हों वो उन्हें बाहर निकालेंगे या नहीं. मैंने सुना है कि इसके लिए कुछ शिविर भी बनाए जा रहे हैं.&quot;</p><p>वो कहते हैं, &quot;जिस तरह से भारत में राष्ट्रवाद का उदय हो रहा है और वो उग्र होता जा रहा है, हो सकता है कि यहां भी लोगों को सीमित कर दिया जाए. और अब लगता है कि कश्मीर के बाद भारत सरकार का अगला एजेंडा असम का मुद्दा हो सकता है.&quot;</p><figure> <img alt="असम में नागरिकता रजिस्टर" src="https://c.files.bbci.co.uk/B250/production/_108384654_4b66c37f-c39c-45b5-8583-359b8379ec8a.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP/Getty Images</footer> </figure><p>असम में 1951 में एनआरसी बनाया गया था ताकि ये तय किया जा सके कि कौन इस राज्य में पैदा हुआ है और भारतीय है और कौन पड़ोसी मुस्लिम बहुल बांग्लादेश ( उस समय ये पूर्वी पाकिस्तान था) से आया हुआ हो सकता है.</p><p>सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम को अवैध बांग्लादेशी नागरिकों से मुक्त कराने के लिए एनआरसी लिस्ट का काम चल रहा है. </p><p>हालांकि नागरिकता रजिस्टर के मामले पर भारत सरकार की आलोचना भी की गई है कि कई नागरिकों को इससे बाहर कर दिया गया है. अभी तक एनआरसी के तहत असम में ऐसे 41 लाख लोगों की पहचान की गई है जो नागरिकता साबित नहीं कर पाए हैं.</p><p>भारत का कहना है कि ये उसका आंतरिक मामला है. मंगलवार को बंग्लादेश दौरे पर गए भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पत्रकारों के पूछे सवालों के जवाब में सिर्फ़ इतना कहा कि एनआरसी भारत का आंतरिक मुद्दा है. </p><figure> <img alt="असम में नागरिकता रजिस्टर" src="https://c.files.bbci.co.uk/10070/production/_108384656_ed0f8370-a5b8-4d58-86c2-4e0d8956685e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP/Getty Images</footer> </figure><p><strong>क्या कह रहे हैं बांग्लादेश</strong><strong> के लोग</strong><strong>?</strong></p><p>बांग्लादेश के एक विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले दिलशाद हुसैन दोदुल कहते हैं कि असम में चल रही प्रक्रिया से स्पष्ट है कि भारत सरकार उन लोगों के ख़िलाफ़ क़दम उठा रही है जो 1971 में मुक्ति संग्राम के दौरान असम आ कर बस गए थे.</p><p>&quot;लेकिन अब तक वो कूटनीतिक तरीक़े से उन्हें बाहर नहीं निकाल सके. बांग्लादेश भी एक मज़बूत राजनयिक भूमिका निभाएगा. मुझे लगता है कि असम में आज जो पीढ़ी है वो यहां आकर बसे लोगों की दूसरी पीढ़ी है.&quot;</p><p>वो कहते हैं, &quot;वो आज बांग्लादेश का हिस्सा नहीं हैं, और बांग्लादेश को सभी सवालों का जवाब बेबाकी से देना चाहिए.&quot;</p><p>बांग्लादेश में विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहीं केडब्ल्यू एथेना कहती हैं, &quot;अगर असम के लोगों का नाम रजिस्टर में नहीं है और उन्हें भारत से बाहर निकाल दिया जाता है, तो बांग्लादेश के साथ तनाव बढ़ने की पूरी संभावना है. लेकिन ये प्रक्रिया बहुत धीमी और कूटनीतिक है और स्थिति किसी भी क्षण विस्फोटक बन सकती है. लेकिन फ़िलहाल अब तक तो बांग्लादेश का इससे कोई लेना-देना नहीं है.&quot;</p><figure> <img alt="असम में नागरिकता रजिस्टर" src="https://c.files.bbci.co.uk/12780/production/_108384657_216a69be-5f71-470c-b57b-cee1a8bbaea2.jpg" height="549" width="976" /> <footer>DILIP SHARMA/BBC</footer> </figure><p><strong>क्या कह रही हैं बांग्लादेशी</strong><strong> सरकार</strong><strong>?</strong></p><p>बांग्लादेश के गृह मंत्री असदुज्ज़मान ख़ान कमल कहते हैं, &quot;एनआरसी भारत सरकार का मुद्दा है, अपनी इच्छा के अनुसार वो कोई भी सूची बना सकते हैं. लेकिन अगर कोई विवाद होता है, तो बांग्लादेश भारत से आने वाले लोगों का ध्यान नहीं रखेगा.&quot; </p><p>वो कहते हैं, &quot;भारत को ये फ़ैसला करना है कि वो उन लोगों का क्या करे जो सूची में नहीं हैं.&quot;</p><p>लेकिन आने वाले समय में एनआरसी को लेकर भारत के रुख़ पर ही ये तय होगा कि बांग्लादेश की प्रतिक्रिया क्या होगी.</p><figure> <img alt="एनआरसी" src="https://c.files.bbci.co.uk/117E/production/_108387440_09de013f-1742-4f5a-ae2b-09bda7bd4f5a.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><h1>क्या है पूरा मामला</h1><p>असम में 30 जुलाई को जारी किए गए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के अंतिम मसौदे में 2 करोड़ 89 लाख 83 हज़ार 677 लोगों को भारत का वैध नागरिक माना गया था.</p><p>आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक़ यहां कुल 3 करोड़ 29 लाख 91 हज़ार 384 लोगों ने एनआरसी के लिए आवेदन किया था. इस तरह 40 लाख से ज़्यादा लोग इस सूची से बाहर हो गए हैं और भारत की नागरिकता के अयोग्य ठहराये जा चुके हैं.</p><p>असम में एनआरसी की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पूरी हो रही है. इसके अनुसार, एनआरसी में मार्च 1971 के पहले से असम में रह रहे लोगों का नाम दर्ज किया गया है, जबकि उसके बाद आए लोगों की नागरिकता को संदिग्ध माना गया है.</p><p>ये शर्तें 15 अगस्त, 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और असम आंदोलन का नेतृत्व कर रही असम गण परिषद (एजीपी) के बीच हुए असम समझौते के अनुरूप हैं.</p><p>ये मसला लंबे समय बाद फिर उठा है और अब सरकार द्वारा बनया गया एनआरसी का मसौदा विवादों में घिर गया है.</p><p>इसमें सरकार की मंशा से लेकर और सूची से बाहर हो चुके लोगों के भविष्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं.</p><p>वहीं, एक सच ये भी है कि जैसे की एनआरसी की सूची में शामिल सभी लोग असम के मूल निवासी नहीं हैं उसी तरह सूची से बाहर रखे गए सभी 40 लाख से ज़्यादा लोग बाहरी नहीं हैं.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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