<figure> <img alt="जम्मू कश्मीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/1534B/production/_108195868_54552c01-4ae0-45ae-9477-b465529f1f8a.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP/getty images</footer> </figure><p>जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को ख़त्म करने की घोषणा केंद्र सरकार ने कर दी है. </p><p>माना जा रहा है कि इसके बाद अब देश के दूसरे राज्यों के लोगों को भी यहां ज़मीन ख़रीदने के मौक़े मिल सकेंगे. </p><p>अब तक क़ानूनी तौर पर जम्मू और कश्मीर में केवल ‘पर्मानेंट रेज़िडेंट’ यानी ‘राज्य में स्थायी तौर पर रहने वाले लोग’ ही वहां ज़मीन ख़रीद सकते थे.</p><p>लेकिन अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाने से 35-ए भी अपने आप ख़त्म हो जाता है जिसके तहत दूसरे राज्य के लोगों के यहां ज़मीन खरीदने पर रोक थी. </p><p><strong>अब </strong><strong>कितना आसान </strong><strong>होगा राज्य में </strong><strong>ज़मीन ख़रीदना?</strong></p><p>जम्मू चेंबर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष राकेश गुप्ता कहते हैं, "अब निवेशकों के लिए यहां ज़मीन खरीदना काफी आसान हो जाएगा. जैसे भारत के दूसरे हिस्सों में कोई व्यक्ति घर के लिए या फिर व्यवसाय के लिए ज़मीन खरीदता है ठीक वैसे ही वो यहां भी ज़मीन खरीद सकेगा."</p><p>वो कहते हैं, "यहां न तो बड़ी कंपनियां आती थीं, न बड़े होटल, न बड़े अस्पताल, न डॉक्टर आते थे. वो लोग जिन्होंने यहां सालों नौकरियां की हैं या फिर वो यहां आ कर बस गए हैं, वो यदि यहीं बसना चाहें तो उन्हें यहां रहने के लिए अपना घर तक नहीं मिलता था."</p><p>राकेश गुप्ता इस बात की ओर इशारा करते हैं कि 35-ए के तहत जम्मू कश्मीर में सरकारी नौकरियों में केवल वहां के ‘परमानेंट रेज़िडेंट’ को ही जगह मिलती थी. लेकिन अब दूसरे लोग भी इसके लिए बेहिचक आवेदन कर पाएंगे.</p><p>हालांकि राकेश गुप्ता कहते हैं कि जिस तरह के क़ानून मैदानी इलाक़ों में होते हैं ठीक वैसे क़ानून पहाड़ी इलाकों में नहीं होते. उन्हें उम्मीद है कि सरकार पर्यावरण का ध्यान रख कर रियासत के हित में फ़ैसला लेगी.</p><figure> <img alt="जम्मू कश्मीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/1EB3/production/_108195870_c7837b0a-6b00-4d6a-96c0-6be74f181e34.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> </figure><p>संविधान विशेषज्ञ कुमार मिहिर ने बीबीसी संवाददाता विनीत खरे को बताया, "ये उन कंपनियों और निवेशकों को लिए बड़ी समस्या थी जो यहां पैसा लगाना चाहते थे. ऐसे में एक तरह की मजबूरी थी कि यहां बड़े निवेश के साथ व्यवसाय करना हो तो किसी परमानेंट रेज़िडेंट के नाम से ज़मीन खरीदनी होगी. लेकिन अब इसमें बदलाव आएगा."</p><p>वो कहते हैं, "भारत में कुछ आदिवासी बहुल इलाकों और कुछ अन्य राज्यों (उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पूर्वी भारत के कुछ इलाकों) में इस तरह के प्रावधान हैं कि अन्य राज्य के व्यक्ति वहां सीमित मात्रा में ही ज़मीन खरीद सकते हैं. लेकिन जम्मू कश्मीर में अब आपके हर कोई ज़मीन खरीद सकेगा. उन्हें परमानेंट रेज़िडेंट न होने के कारण इससे वंचित नहीं किया जाएगा."</p><h3>ज़मीन खरीद को लेकर दूसरे राज्यों में क्या हैं क़ानून?</h3><p>जम्मू-कश्मीर के अलावा कई और राज्यों में भी ऐसे प्रावधान हैं जिनके तहत ग़ैर-रेज़िडेंट को ज़मीन हस्तांतरित नहीं की जा सकती.</p><p>दूसरे प्रदेश के लोगों के लिए उत्तराखंड में ज़मीन खरीदना आसान नहीं है. वो व्यक्ति जो राज्य का परमानेंट रेज़िडेंट नहीं है, वो केवल 1800 वर्गफ़ीट तक ज़मीन खरीद सकता है.</p><p>हिमाचल प्रदेश में एक विशेष प्रावधान के तहत गैर-कृषकों को ज़मीन हस्तांतरित करने पर रोक है. यानी अन्य राज्यों के निवासियों के साथ-साथ ग़ैर कृषक हिमाचली भी सीधे ज़मीन नहीं ख़रीद सकते. हिमाचली डोमिसाइल प्रमाण पत्र रखने वाले भी सरकार की अनुमति से ही शहरी इलाक़ों में ही आवास बनाने या कारोबार के लिए सीमित ज़मीन ख़रीद सकते हैं. </p><p>वहीं 5वीं अनुसूची और वनाधिकार क़ानून के अनुसार, आदिवासी की ज़मीन ग़ैर आदिवासी को हस्तांतरित की ही नहीं जा सकती. </p><figure> <img alt="जम्मू कश्मीर" src="https://c.files.bbci.co.uk/6CD3/production/_108195872_4f6bfdc9-6e79-44c2-990b-37a336ee0e69.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p><strong>जम्मू कश्मीर की </strong><strong>महिलाओं के खाते क्या आएगा?</strong></p><p>यदि जम्मू कश्मीर की ‘परमानेंट महिला रेज़िडेंट’ दूसरे राज्य के पुरुष से शादी करती है तो 35-ए के तहत उसका और उसकी संतानों का परमानेंट रेज़िडेंट का दर्जा छिन जाएगा. हालांकि यही नियम ‘परमानेंट पुरुष रेज़िडेंट’ पर लागू नहीं होता. </p><p>इसका मतलब ये कि ऐसी महिलाओं और उनकी संतानों का महिला के माता-पिता या पूर्वजों की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं रह जाएगा. खुद महिला अपने नाम पर राज्य में कोई ज़मीन नहीं ख़रीद सकती.</p><p>इस मुद्दे को लेकर कुछ महिलाओं ने साल 2002 में <a href="https://indiankanoon.org/doc/1409240/">जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट</a> का दरवाज़ा खटखटाया. उनकी दलील थी कि परमानेंट रेज़िडेंट के दर्जे को लेकर महिलाओं के साथ भेदभाव का रवैया अपनाया जा रहा था जो संविधान की धारा 14 (जिसके अनुसार क़ानून के सामने सभी को समानता का अधिकार है) का उल्लंघन है.</p><p>कोर्ट ने अपने फ़ैसले में महिलाओं के अधिकार तो सुरक्षित कर दिए लेकिन उनके बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित नहीं किया गया.</p><p>सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील चारू वली खन्ना सवाल करती हैं, "एक परिवार एक ईकाई नहीं है क्या? और अगर मैं मर गई तो मेरी संपत्ति क्या मेरे पति और बच्चों को न मिल कर सरकार को मिलेगी."</p><p>इस मुद्दे को लेकर आगे बढ़ते हुए चारू वली खन्ना ने अनुच्छेद 35-ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी. </p><p>वो कहती हैं, "इस कारण आपको भारत सरकार की स्कॉलरशिप योजना का फ़ायदा नहीं मिलता, आपको पढ़ाई के लिए मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं मिलता, सरकारी नौकरियां नहीं मिलती. आप संसद के लिए वोट कर सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर की विधानसभा के लिए वोट नहीं कर सकते."</p><p>वो कहती हैं कि इस क़ानून ने जम्मू कश्मीर की महिलाओं के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं क्योंकि वहां पले-बढ़े होने के बावजूद सिर्फ़ राज्य बाहर के किसी व्यक्ति के शादी करने की वजह से वो अपने सभी हक़ खो देतीं थीं.</p><p>370 के ख़त्म होने पर चारू वली खन्ना खुश हैं. वो कहती हैं "मुझे लगता है कि मेरी लड़ाई सफल हो गई क्योंकि हमें बिना मतलब के लिए लड़ना पड़ा." </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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अब जम्मू कश्मीर में ज़मीन ख़रीदना कितना आसान
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