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रेलवे के निजीकरण से इनकार, पर कैसे पूरा होगा विनिवेश का लक्ष्य?

<p>ऐसे समय जब देशभर में लाखों रेल कर्मचारी कंपनी के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं रेल मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में भारतीय रेल के निजीकरण के किसी प्रस्ताव की बात से इंकार किया है.</p><p>पीयूष गोयल ने बुधवार को लोकसभा में कहा, &quot;अभी तक किसी भी पैसेंजर ट्रेन को निजी हाथों में देने की […]

<p>ऐसे समय जब देशभर में लाखों रेल कर्मचारी कंपनी के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं रेल मंत्री पीयूष गोयल ने संसद में भारतीय रेल के निजीकरण के किसी प्रस्ताव की बात से इंकार किया है.</p><p>पीयूष गोयल ने बुधवार को लोकसभा में कहा, &quot;अभी तक किसी भी पैसेंजर ट्रेन को निजी हाथों में देने की कोई पहल नहीं हुई है.&quot;</p><p>चंद दिनों पहले ख़बर आई थी कि लखनऊ से दिल्ली को प्रस्तावित तेजस एक्सप्रेस को निजी हाथों में देने की तैयारी पूरी हो गई है.</p><p>मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में रेलवे के विस्तार के लिए सरकारी और निजी कंपनियों के बीच भागीदारी की बात कही थी.</p><p>दुनिया की सबसे बड़ी रेल सेवाओं में से एक भारतीय रेलवे 1853 में अपनी स्थापना के समय से सरकार के हाथों में रही है.</p><p>हालांकि पिछले कुछ सालों में अलग-अलग सरकारें इसके कुछ कामों जैसे कैटरिंग, ट्रेनों के भीतर की सेवाएं और कुछ दूसरे कामों को निजी कंपनियों को सौंपती रही हैं.</p><figure> <img alt="पीयूष गोयल" src="https://c.files.bbci.co.uk/1653F/production/_107855419_608b6d30-bce7-4701-8417-d15c3a16cfc7.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>दूसरी कंपनियों का निजीकरण</h3><p>रेलवे सिर्फ एक ही सरकारी कंपनी नहीं है जिसका निजीकरण हाल की सरकारों के हाथों होता रहा है.</p><p>1990-91 के समय से सरकारी कंपनियों को निजी कंपनियों को बेचने की शुरु हुई प्रक्रिया कांग्रेस, बीजेपी और दूसरी सरकारों के समय में भी जारी रही है और इन सालों के भीतर टेलीफ़ोन कंपनी एमटीएनएल, हिंदुस्तान ज़िंक, भारत अल्युमिनियम और सेंटोर होटल जैसी सरकारी कंपनियों को निजी कंपनियों के हाथों बेचा गया है.</p><p>विनिवेश की प्रक्रिया को वैश्वीकरण से भी जोड़कर देखा जाता है.</p><p>इस वित्तीय वर्ष (2019-20) में सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये विनिवेश के माध्यम से उगाहने का लक्ष्य रखा है.</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48482189?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">रफ़्तार से दौड़ रही अर्थव्यवस्था पटरी से उतरी, अब क्या</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48865147?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">आर्थिक सर्वेक्षण में देश को 5 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी बनाने का लक्ष्य</a></p><figure> <img alt="बजट 2019-20" src="https://c.files.bbci.co.uk/08D8/production/_107846220_gettyimages-1153800738.jpg" height="668" width="1024" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>कितना मुश्किल-आसान</h3><p>आर्थिक विश्लेषक प्रंजॉय गुहा ठाकुरता एक लाख करोड़ रुपये से अधिक के टारगेट को ‘बहुत महत्वाकांक्षी’ मानते हैं और कहते हैं कि इस मामले में भी वहीं होगा जोकि पिछली मोदी सरकार या उसके पहले की कांग्रेस-नेतृत्व वाली सरकारों में होता रहा था जहां एक सरकारी कंपनी को दूसरे का शेयर ख़रीदने को बाध्य किया गया जिसके बलबूते सरकार ने अपना विनिवेश का लक्ष्य पूरा होता दिखा दिया.</p><p>प्रंजॉय गुहा ठकुरता कहते हैं कि इस बार के विनिवेश में जो एक बात अलग है वो है वित्त मंत्री का ये कहना कि सरकारी कंपनियों में हुकूमत की साझेदारी को 51 फ़ीसद से भी कम कर दिया जाएगा.</p><p>51 फ़ीसद से कम यानी कंपनी में मालिकाना हक़ को कम कर देना. </p><p>लेकिन प्रंजॉय का कहना है कि शेयर बाज़ार के ख़स्ता हालात और बदहाल अर्थव्यवस्था में इतना बड़ा विनिवेश आसान नहीं होगा.</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48874702?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">बजट 2019: कॉर्पोरेट और आम लोगों के बीच संतुलन साधने की चुनौती</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48880016?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">बजट में महिलाओं और युवाओं को क्या मिला?</a></p><figure> <img alt="मुंबई लोकल" src="https://c.files.bbci.co.uk/B761/production/_107854964_274fc6c0-82dd-4891-a2f8-c16f22b03c8e.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>एक जेब से दूसरे में</h3><p>आर्थिक और व्यवसाय जगत के एक बड़े वर्ग का मानना है कि पिछले 30 या 29 सालों में जिस तरह से सरकारी कंपनियों को बेचा गया है वो विनिवेश था ही नहीं, बल्कि एक सरकारी कंपनी के शेयर्स दूसरी सरकारी कंपनी ने ख़रीदे हैं.</p><p>आर्थिक जगत के वरिष्ठ पत्रकार आलम श्रीनिवास कहते हैं, &quot;ये उसी तरह था कि आप एक जेब से पैसे निकालकर दूसरे में डाले लें.&quot;</p><p>आलम कहते हैं इससे सरकार का बजट घाटा तो कम हो जाता है लेकिन न तो इससे कंपनी के शेयर होल्डिंग में बहुत फ़र्क़ पड़ता है, न ही कंपनी के काम-काज के तरीक़े बदलकर बेहतर होते हैं.</p><p>विनिवेश या डिसइन्वेस्टमेंट के पक्ष में तर्क ये था कि सरकारी कंपनियों में कामकाज का तरीक़ा प्रोफेशनल नहीं रह गया है और उस वजह से बहुत सारी सरकारी कंपनियां घाटे में चल रही हैं, इसलिए उनका निजीकरण किया जाना चाहिए जिससे काम-काज के तरीक़े में बदलाव होगा और कंपनी को प्राइवेट हाथों में बेचने से जो पैसा आएगा उसे जनता के लिए बेहतर सेवाएं मुहैया करवाने के काम में लगाया जा सकेगा.</p><p>लेकिन इसका कोई आंकड़ा मौजूद नहीं कि जो पैसे सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने से आए थे उनमें से कितने आम लोगों की जीवन की बेहतरी में लगाये गए – जैसे शिक्षा स्वास्थ्य या मूलभूत सुविधाओं को बेहतर करने के लिए.</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48891117?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">ज़ीरो बजट खेती जिसका ज़िक्र वित्तमंत्री ने बजट के दौरान किया</a></p><figure> <img alt="कोयला" src="https://c.files.bbci.co.uk/6941/production/_107854962_gettyimages-1135000496.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>सरकार का घाटा कम</h3><p>आलम श्रीनिवास कहते हैं, &quot;तक़रीबन सभी दलों की हुकूमतों ने इन पैसों का इस्तेमाल अपने बजट घाटे को कम करने के लिए किया है लेकिन उस प्रक्रिया में कई मुनाफ़े कमा रही कंपनी बीमारू होने की कगार पर पहुंच गई है.&quot;</p><p>इस बार के बजट में ही सरकार को जो आमदनी होनी है उसमें एक लाख करोड़ रुपया उस फंड से आएगा जो सरकारी कंपनियां हूकूमत को अपने मुनाफ़े के हिस्से से देती है. इसे डिविडेंड कहते हैं.</p><p>एक लाख करोड़ रुपये विनिवेश यानी सरकारी कंपनियों में सरकारी हिस्सेदारी को बेचकर आएगी.</p><p>मुश्किल ये है कि एक तरफ़ तो सरकार उस तरह की स्कीम चालू कर देती है, जैसे किसानों के खाते में 6000 रुपये सालाना, या खास तबक़े को मुफ़्त बिजली वग़ैरह लेकिन उसके लिए फिर पैसे कहां से आए?</p><p>अर्थव्यवस्था में बेहतरी हो नहीं रही, टैक्स से आनेवाला फंड उस अनुपात में बढ़ नहीं रहा तो सरकारी कंपनियों के विनिवेश से ये पैसे उगाहे जाते हैं और वो भी एक सरकारी कंपनी के शेयर दूसरे को बेचकर.</p><figure> <img alt="तेल टैंकर" src="https://c.files.bbci.co.uk/10581/production/_107854966_60fa020c-616c-460e-bb4f-7e4cba37e2f1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>बिकेंगी तेल कंपनियां भी </h3><p>कभी कैश-रिच मानीजाने वाली कंपनी ओएनजीसी का उदाहरण सामने है जिसे क़र्ज़ में डूबी गुजरात पेट्रोलियम कार्पोरेशन के शेयर ख़रीदने पड़े. साथ ही उसे हिंदुस्तान पेट्रोलियम में सरकार की हिस्सेदारी भी ख़रीदनी पड़ी.</p><p>नतीजा ये हुआ कि कभी कैश-रिच कंपनी ओएनजीसी को हाल में क़र्ज़ लेना पड़ा है.</p><p>आलम श्रीनिवास कहते हैं, &quot;इस तरह से सरकारों ने अपना बजट घाटा कम करने के नाम पर तो ख़ूब वाहवाही लूटी लेकिन नतीजे में मुनाफ़ा कमा रही कंपनियों को घाटे में पहुंचा दिया गया या उनकी वित्तीय स्थिति पतली हो गई.&quot;</p><p>सरकार की ऊर्जा क्षेत्र (तेल-बिजली) की कंपनियों में हिस्सेदारी को बेचने की योजना को लेकर भी कई तरह के संशय जताए जा रहे हैं.</p><p>एक मत है कि तेल जिसके लिए भारत को आयात पर निर्भर रहना पड़ता है, उस क्षेत्र की कंपनी को बेचने की बजाए सरकार को उसके माध्यम से भारत के बाहर इस क्षेत्र से जुड़े हुए सौदे करने चाहिए – यानी तेल का कुंआ ख़रीदना या फिर किसी विदेशी कंपनी में हिस्सेदारी लेना.</p><p>इससे न सिर्फ़ भारत की निर्भरता तेल आयात पर कम होगी बल्कि विदेशी मुद्रा की भी भारी बचत होगी.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर 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