<figure> <img alt="रमज़ान" src="https://c.files.bbci.co.uk/DAFD/production/_107216065_photo-2019-06-02-10-39-41.jpg" height="360" width="640" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>नाज़िया इरम (बाईं और से दूसरी) ने इस मुहिम की शुरुआत की थी.</figcaption> </figure><p>भारत में पिछले तीन बरसों से कुछ मुसलमान महिलाएं मिल कर रमज़ान में उन गैर-मुसलमान महिलाओं को अपने घर इफ़्तार की दावत देती हैं, जिन्होंने कभी मुसलमानों के साथ खाना नहीं खाया या दोस्ती नहीं की. </p><p>इफ़्तार की इन दावतों के ज़रिये वे मुसलमानों के बारे में पूर्वाग्रहों को तोड़ने की कोशिश कर रही हैं. उनके इस मिशन की शुरुआत की कहानी दिलचस्प है.</p><p>लेखिका नाज़िया इरम की किताब ‘मदरिंग ए मुस्लिम’ तब तक प्रकाशित नहीं हुई थी. उसी किताब के सिलसिले में वह रिसर्च कर रही थीं तो उन्होंने कहीं पढ़ा कि भारत में केवल 33 प्रतिशत गैर मुसलमान ही, मुसलमानों को अपना दोस्त समझते हैं. </p><p>नाज़िया ने बीबीसी को बताया कि उस समय उनके मन में जो पहला सवाल खड़ा हुआ वह यह था कि भारत में कितने लोग मुसलमान परिवारों से परिचित हैं? क्या वे मुसलमानों को जानते भी हैं?</p><figure> <img alt="इफ़्तार" src="https://c.files.bbci.co.uk/7CC5/production/_107214913_c88bf134-4974-4f53-9b67-f930e38a7a35.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>ऐसी इफ़्तार पार्टियों में ग़ैर-मुसलमानों को इस्लामी संस्कृति से परिचित करवाया जाता है.</figcaption> </figure><p>नाज़िया ने तभी तय कर लिया कि वह उन लोगों को मुसलमानों के घरों में दावत देंगी जो मुस्लिम परिवारों से ख़ास परिचय नहीं रखते हैं. </p><p>उन्होंने तय किया कि इस तरह उनके मन में मुसलमानों के रहन सहन, खान-पान और उनकी जीवन शैली के बारे में जो भ्रम हैं, उन्हें तोड़ना होगा. और इसलिये उन्होंने गैर मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम महिलाओं के घर इफ़्तार पर बुलाने का फ़ैसला किया. </p><p>उनके इस मकसद के बारे में जान कर कुछ और महिलाएं भी उनके साथ आ गईं. </p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-48172376?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">रमज़ान का चांद और कुछ सवालः वुसअत का ब्लॉग</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44168440?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">रमज़ान में रोज़ा रखने से शरीर पर क्या पड़ता है असर?</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48173117?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">रमज़ान में मतदान का टाइम बदलने से चुनाव आयोग का इनकार</a></p><p>शहला अहमद, रुख़सार सलीम, हीना ख़ान और लेखिका राना सफ़वी भी उनके इस मिशन में शामिल हो गईं. </p><p>विभिन्न क्षेत्रों से संबंध रखने वाली इन महिलाओं का कहना है कि इस मिशन का किसी राजनीतिक सोच से कोई संबंध नहीं, यह केवल भारत में गैर मुस्लिम और मुस्लिम परिवारों के बीच दूरियां कम करने की एक बुनियादी कोशिश है.</p><figure> <img alt="इफ़्तार" src="https://c.files.bbci.co.uk/69B5/production/_107216072_roohafza.jpg" height="360" width="640" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>इस कोशिश के नतीजे में गैर मुस्लिम परिवारों में मुसलमानों के बारे में जिस तरह के पूर्वानुमान या धारणाएं हैं वे भी सामने आईं. उनमें यह भी शामिल था कि मुसलमानों के घर खाना नहीं खाना चाहिए. </p><p>पिछले साल ऐसे ही एक इफ़्तार में शामिल होने वाली महिलाओं से कहा गया कि वे मुसलमानों के बारे में क्या सोचती है, एक पर्ची में बग़ैर अपना नाम बताए लिख दें. </p><p>नाज़िया ने बताया कि उनमें से कुछ पर तो यकीन करना ही मुमकिन नहीं था. </p><figure> <img alt="रमज़ान" src="https://c.files.bbci.co.uk/14015/production/_107214918_ff97b77b-ac9a-4c88-910e-9b39fee90ce0.jpg" height="549" width="549" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>दिल्ली से शुरू होने वाला ‘इंटर फ़ेथ इफ़्तार’ अब भारत के विभिन्न शहरों में हर साल आयोजित हो रहा है जिनमें मुंबई, पुणे, बंगलूरू, भोपाल और गुवाहाटी शामिल हैं. </p><p>इन शहरों में भी कई महिलाएं मिलकर इफ़्तार का इंतज़ाम करती हैं ताकि इसमें शामिल होने वाली महिलाओं को रोज़े का मतलब समझाया जा सके और मुसलमानों की जीवन शैली के बारे में चले आ रहे भ्रम तोड़े जा सकें. </p><p>पांच महिलाओं की कोशिश से शुरू होने वाला यह सिलसिला दिल्ली में ही अब लगभग बीस महिलाओं तक पहुंच चुका है. ये महिलाएं इफ़्तार के प्रबंध की ज़िम्मेदारी आपस में बांट लेती हैं. </p><p>नाज़िया इरम और उनकी साथियों को विश्वास है कि नफ़रत और फ़ासलों से लड़ने का सबसे बेहतर तरीका प्रेम है. उनका मानना है कि छोटे छोटे क़दम लेकर ही लम्बी दूरियां तय की जा सकती हैं. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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ऐसी इफ़्तार पार्टी जहाँ आते हैं अनजान मेहमान
<figure> <img alt="रमज़ान" src="https://c.files.bbci.co.uk/DAFD/production/_107216065_photo-2019-06-02-10-39-41.jpg" height="360" width="640" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>नाज़िया इरम (बाईं और से दूसरी) ने इस मुहिम की शुरुआत की थी.</figcaption> </figure><p>भारत में पिछले तीन बरसों से कुछ मुसलमान महिलाएं मिल कर रमज़ान में उन गैर-मुसलमान महिलाओं को अपने घर इफ़्तार की दावत देती हैं, जिन्होंने कभी मुसलमानों के साथ खाना नहीं खाया या दोस्ती […]
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