अगले माह होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को कर्नाटक से बड़ी उम्मीदें हैं. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-लोद गठबंधन और कांग्रेस के साथ इस गठबंधन की बन रही मजबूत समझ से पैदा होने वाली चुनौतियों की भरपाई भाजपा दक्षिण के जिन राज्यों से करना चाहेगी, उनमें कर्नाटक भी हैं. यहां लोकसभा की 28 सीटें हैं. 2014 के चुनाव में भाजपा ने इनमें से 17 सीटें जीती थीं.
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कर्नाटक : 2014 के चुनाव में मोदी लहर के बावजूद हुआ था नुकसान, भाजपा के लिए खुद के रिकॉर्ड से आगे निकलने की अहम चुनौती
अगले माह होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को कर्नाटक से बड़ी उम्मीदें हैं. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-लोद गठबंधन और कांग्रेस के साथ इस गठबंधन की बन रही मजबूत समझ से पैदा होने वाली चुनौतियों की भरपाई भाजपा दक्षिण के जिन राज्यों से करना चाहेगी, उनमें कर्नाटक भी हैं. यहां लोकसभा की 28 सीटें हैं. […]
हालांकि मोदी लहर में उसका यहां 17 सीटें जीतना बड़ी कामयाबी नहीं थी. वजह कि इसी राज्य में भाजपा की उसके पहले 2004 में 18 और 2009 में 19 सीटें थीं. इस लिहाज से उसे 2014 के चुनाव में तमाम लहर के बावजूद नुकसान ही हुआ था. भाजपा ने इस राज्य से लोकसभा का सफर 1984 में शुरू किया था, जब उसे 04 सीटें मिली थीं.
तब यहां कांग्रेस का बोलबाला था. उसने 28 में से 24 सीटें जीती थीं. 1989 भाजपा का यहां से सफाया हो गया था. उसे लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली थी.
उसकी जीती हुईं चार में दो सीटें कांग्रेस ने ले ली और दो सीटें जनता दल के खाते में चली गयी थीं. हालांकि 1991 के चुनाव में भाजपा ने फिर चार सीटें जीतीं और वहां से उसने आगे बढ़ना शुरू किया.
1996 के लोकसभा चुनाव में उसकी तीन सीटें बढ़ीं और उसने सात का अंक हासिल किया. यह वह दौर था, जब कर्नाटक में कांग्रेस कमजोर हुई थी और 23 से सीधा पांच सीट पर उतर गयी थी. कांग्रेस की जगह जनता दल ने उभार लिया उसने अचानक से एक साट से 16 सीट पर छलांग लगायी थी.
1998 का लोकसभा चुनाव ऐसा था, जिसमें भाजपा इस प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी. इस चुनाव में उसने लोकशक्ति पार्टी के साथ गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था. यह गठबंधन एनडीए घटक के रूप में था, जिसमें इस गठबंधन को 16 सीटें मिलीं, जिनमें से 13 सीटें अकेले भाजपा की थीं.
लोक शक्ति ने तीन सीटें जीती थीं. इस चुनाव में कांग्रेस को उसने नौ सीटों पर रोक दिया था, मगर 1999 के तेरहवें लोकसभा चुनाव में भाजपा अपनी इस पकड़ को मजबूत नहीं रख सकी. वोटरों ने फिर से कांग्र्रेस के प्रति नरम रुख अख्तियार किया और उसे 18 सीटें दे दीं.
भाजपा बड़ी मुश्किल से सात सीटें ला पायी थी, मगर 2004 में यह तस्वीर लगभग उलट गयी. भाजपा की झोली में 18 और कांग्रेस की झोली में आठ सीटें जा गिरीं. 2009 में भाजपा एक पायदान और ऊपर चढ़ी और उसके इस राज्य से सांसदों की संख्या 19 पर पहुंच गयी. कांग्रेस को उसने दो अंक नीचे ढकेल दिया और उसके खातेे में छह सीट से ज्यादा जाने नहीं दी.
जदस को भी तीन सीट तक समेटे रखा, 2014 के लोकसभा चुनाव में, पूरे देश में भाजपा और नरेंद्र मोदी की लहर चल रही थी, इस प्रदेश में भाजपा की दो सीट घट कर 17 हो गयी. उसके दो सीटों के नुकसान का लाभ कांग्रेस ने लिया. उसने एक सीट जदएस की भी छीनी और नौ पर जा पहुंची.
2019 के लोकसभा चुनाव में उसे अपने ही पुराने आंकड़े काे पाटने की चुनौती तो होगी ही, उससे आगे निकलने का भी लक्ष्य रखना होगा. उत्तर भारत और खास कर उत्तर प्रदेश में सीटों के नुकसान के अनुमान के मद्देनजर भाजपा के लिए यह बड़ा टास्क होगा.
सारी सीटें एक ही दल को देेने का कर्नाटक का रहा है इतिहास
कर्नाटक में एक ही दल को सारी लोकसभा सीटें जिता देने का इतिहास रहा है. भाजपा इसके कितने करीब पहुंच पाती है, यह देखने वाली बात होगी. हालांकि सारी सीटें एक ही गठबंधन को दे देने का रिकॉर्ड बिहार, पंजाब, दिल्ली और यूपी के भी नाम रहा है, मगर यह तब कि बात है, जब आपातकाल के बाद उपजे आक्रोश का चुनावी साल था.
1971 में कर्नाटक की सभी 27 लोस सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. 1977 में इमर्जेंसी के बाद के चुनाव में भी कर्नाटक में उसने 28 में से 26 सीटें जीत ली थीं.
भाजपा को रोकेंगे: कांग्रेस-जदस
राज्य में एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली जेडीएस -कांग्रेस गठबंधन की सरकार है. लोस चुनाव में दोनों साथ-साथ लड़ेंगे. कांग्रेस 28 में से 20 सीटों पर,जेडीएस आठ लड़ेगी. जेडीएस प्रवक्ता रमेश बाबू का दावा, हमें धर्मनिरपेक्ष वोटों का बिखराव को रोकने और भाजपा को मात देने में सक्षम है.
गठबंधन कागज पर : भाजपा
भाजपा राज्य प्रवक्ता मधुसूदन का दावा है कि कांग्रेस-जेडीएस का समझौता सिर्फ कागजों पर है. दोनों कार्यकर्ता एक-दूसरे के साथ नहीं खड़े होते. दोनों के बीच की अंदरूनी कलह से भाजपा को ज्यादा सीटें जीतने में मदद मिलेगी.
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