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चुनावी चंदे पर बहस : इलेक्टोरल बांड पारदर्शिता या चंदे की हेराफेरी
राजीव कुमार, राज्य समन्वयक एडीआर राजनीतिक चंदे के लिए कर चोरी से अर्जित धन राशि के इस्तेमाल पर रोक लगाना जरूरी लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. ऐसे में चुनावी चंदे पर बहस शुरू हो गयी है. 1951 के जनप्रतिनिधि कानून की धारा 29 (सी) के तहत 20 हजार रुपया से ज्यादा के चंदे […]
राजीव कुमार, राज्य समन्वयक एडीआर
राजनीतिक चंदे के लिए कर चोरी से अर्जित धन राशि के इस्तेमाल पर रोक लगाना जरूरी
लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. ऐसे में चुनावी चंदे पर बहस शुरू हो गयी है. 1951 के जनप्रतिनिधि कानून की धारा 29 (सी) के तहत 20 हजार रुपया से ज्यादा के चंदे का ब्योरा देना जरूरी है. 20 हजार से अधिक का चंदा चेक के माध्यम से दिया जाना है. इससे कम राशि की चंदा बिना किसी रसीद के दी जा सकती हे. राजनैतिक दल इस प्रावधान का भरपूर लाभ उठाते रहे हैं. उनका अधिकांश पैसा बिना रसीद के ही आता है. इससे वे हिसाब देने से बच जाते हैं. बिना रसीद के लिये-दिये गये पैसे वस्तुत: काला धन ही होते हैं.
जिनके पास काला धन है, वे ही चंदा अपने स्वार्थ के लिए देते हैं. यह राजनैतिक दल के पास पहुचंकर स्वयं एक काला धन का निर्माण करता है. यदि काला धन मिटाना है तो राजनैतिक चंदे की प्रणाली को पारदर्शी बनाना होगा. आयोग ने इसी बीस हजार की सीमा को घटा कर दो हजार रुपये करने की सिफारिश की है. दूसरा बड़ा सवाल पार्टियों को आयकर में छूट नहीं दिये जाने को लेकर है. तीसरा सवाल कूपन द्वारा चंदे के ब्योरे दिए जाने का है. चुनावी चंदे में पारर्दर्शिता के लिए सरकार चुनावी (इलेक्टोरल) बांड योजना लेकर आयी है.
केंद्र सरकार ने चुनाव में राजनैतिक दलों के चंदों को लेकर चुनावी बांड की योजना का ऐलान किया है. सरकार का यह मानना है कि इस योजना से काला धन समाप्त हो जाएगा और चंदे की प्रक्रिया पारदर्शी हो जायेगी. बांड खरीदने बाले व्यक्ति की पहचान गोपनीय रखी जायेगी. इस योजना के तहत चंदा देने वाला व्यक्ति केवल चेक और डिजिटल भुगतान के जरिये निर्धारित बैंकों से बांड खरीद सकता है. ये बांड पंजीकृत राजनीतिक दल के निर्धारित बैंक खाते में ही भुनाए जा सकते हैं.
इसके पीछे सरकार की दलील है कि नाम उजागर करने पर दान देने वाले विपक्ष के निशाने पर आ जाते हैं. वर्तमान सरकार का दावा है कि इससे राजनीतिक चंदे के लिए कर चोरी द्वारा अर्जित धन राशि के इस्तेमाल पर रोक लग सकेगी. जाहिर है कि यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि गोपनीय होने की वजह से जनता आखिर कैसे समझ पायेगी कि कौन किसे लाभ पहुंचा रहा है, और इसके बदले वह सरकार से कैसा लाभ ले रहा है.
जिसे पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों उसे ही बांड दिया जा सकेगा. उसके बाद राजनीतिक दल अपने निर्धारित खाते में उसे जमा करेगा. यहां महत्वपूर्ण यह है कि कंपनीज एक्ट के तहत कोई भी कंपनी अपना पूरा मुनाफा किसी भी पार्टी को दे सकती है. कोई भी कंपनी कहीं से भी पैसा लाये अपने खाते में जमा कर दे और फिर चुनावी बांड खरीदकर किसी को भी दे दे. यह काले धन सफेद करने का महज जरिया बनकर रह जायेगी.
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