अजित राव, संपादक, रंग प्रसंग, एनउसडी
माइकेल हेनेके (ऑस्ट्रिया) अपनी विश्व प्रसिद्ध फिल्म ‘अमोर’ (2012) के पांच साल बाद सिनेमा की दुनिया में लौटे हैं. उनकी नयी फिल्म ‘हैपी एंड’ इन दिनों चर्चा में है. ‘फनी गेम्स’ (1997) और ‘द ह्वाॅइट रिबन’ (2009) के बाद यह उनका ताजा मास्टर स्ट्रोक है. उन्हें आज विश्व के महान फिल्मकारों में निर्विवाद रूप से माना जाता है. ‘अमोर’ को कान फिल्म समारोह में बेस्ट फिल्म का ‘पॉम डि ओर’ तो मिला ही , विदेशी भाषा में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर अवाॅर्ड भी मिला. इसने सिनेमा में प्रेम की परिभाषा ही बदल दी.
छिहत्तर वर्षीय इस मास्टर फिल्मकार ने पांच साल में जो फिल्म बनायी है, उसे उन्होंने ‘हमारी दुनिया में एक यूरोपीय पूंजीपति परिवार के जीवन का स्नैपशॉट’ कहा है, जिसके हर सदस्य की आत्मा खो गयी है. भय, चिंता, असुरक्षा के बीच हर कोई बदलते समय से तालमेल बिठाने में बेहाल है. इस अर्थ में फिल्म का शीर्षक व्यंग्यात्मक है, जिसे हम ब्लैक कॉमेडी कह सकते हैं.
उत्तरी फ्रांस के शहर क्ले में खानदानी उद्योगपति पचासी वर्षीय जॉर्ज लॉरेन हैं, जो शुरुआती पागलपन (डाइमेंसिया) के शिकार है और बार-बार ह्वील चेयर पर अकेले ही कहीं चल देते है. ज्यां लूई ट्रिंटिनान (अमोर के नायक की भूमिका से चर्चित) जॉर्ज लॉरेन की भूमिका में अपनी भंगिमाओं से बहुत कुछ कह जाते हैं. उनकी तलाकशुदा बेटी ऐन लॉरेन (इजाबेल हपर) अपने ब्रिटिश मंगेतर लॉरेंस (टोबी जोंस) के साथ भवन निर्माण और ट्रांसपोर्ट का बिजनेस हथियाने में लगी है.
उसके शराबी बेटे पियरे लॉरेन पर लापरवाही के कारण धनहानि का मुकद्दमा चल रहा है. जॉर्ज लॉरेन का बेटा मैथ्यू लॉरेन अपनी पूर्व पत्नी से जन्मी 12 साल की आत्ममुग्ध कंप्यूटर एडिक्ट बेटी ईव की देखभाल में परेशान है, जिसकी मां नशे के ओवरडोज के कारण अस्पताल में है. उसकी दूसरी पत्नी अन्ना की अलग समस्याएं हैं. मोरक्को से लाये गये नौकर राशिद और उसकी पत्नी इन किरदारों के बीच धागे की तरह हैं. शहर में ढेर सारे शरणार्थी सुरंग में अगले हमले की तैयारी में घूम रहे हैं.
फिल्म की शुरुआत और अंत में ईव को मोबाईल के कैमरे से रिकार्डिंग करते हुए दिखाया गया है. मतलब भावहीन सोशल मीडिया और यूट्यूब में उलझे हमारे समय का सबसे बड़ा पाखंड यही है कि हम दूसरों से जो चाहते हैं, उसे अपने आचरण में नहीं अपनाते.
अंतिम दृश्य विस्मयकारी है. समुद्र किनारे एक भव्य रिजोर्ट में संगीत संध्या के बाद जॉर्ज लॉरेन का 85वें जन्मदिन का जश्न चल रहा है. भोज शुरू होते ही जॉर्ज लॉरेन का शराबी नाती पियरे लॉरेन कुछ मुस्लिम शरणार्थियों को लेकर अंदर घुसना चाहता है. वह अपनी मां और मामा से भिड़ जाता है. इसी हंगामे में जॉर्ज अपनी पोती से कहता है कि उसके ह्वील चेयर को समुद्र किनारे ले चले.
वह ह्वील चेयर पर समुद्र के भीतर जाते हुए दिखता है, मानो उसने जल समाधि का फैसला कर लिया हो. तभी पीछे से परिवार के लोग पापा-पापा चिल्लाते-दौड़ते हुए आते हैं. हेनेके का अंतिम शॉट खुशी को संभावना में बदल देता है.
हेनेके कहते हैं कि उन्हें क्लोज शॉट में हिंसा दिखाना पसंद नहीं है. मृत्यु का हॉरर असली मृत्यु से ज्यादा भयानक होता है. उन्होंने लंबे-लंबे शाॅट्स में मनुष्य की साधारण गतियों को असाधारण विन्यास दिया है. उन्हें कला में राजनीतिक वक्तव्य भी ठीक नहीं लगता. यूरोप में सामंतवाद के अंत के बाद यूरोप में आयी औद्योगिक क्रांति और लोकतंत्र नयी अर्थव्यवस्था में कहीं धुंधले पड़ गये थे.
पिछले बीस साल में दुनिया ऐसी बदली कि नवधनाढ्यों का साम्राज्य भी बिखरने लगा. ‘हैपी एंड’ इसी सच की छवियों से भरी हुई है. उस समाज में गहरे दमित अपराधबोध की स्वीकारोक्ति तो महज एक लक्षण भर है. माइकेल हेनेके की ‘हैपी एंड’ को यूरोपीय पूंजीवाद के ऑपरेशन के रूप में और उससे आगे खुशी की संभावना के रूप में भी देखा जा सकता है. यदि आपने गलती से भी इसे हेनेके का राजनीतिक वक्तव्य कहा, तो वे सख्त नाराज हो सकते हैं.