21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कितनी फ़िल्मी है ‘फ़िल्मिस्तान’?

कोमल नाहटा वरिष्ठ फ़िल्म समीक्षक रेटिंग : *1/2 ‘फ़िल्मिस्तान’ कहानी है एक बॉलीवुड के दीवाने और एक्टर बनने की चाह रखने वाले सनी अरोड़ा (शारिब हाशमी) की, जिसे पाकिस्तानी चरमपंथी ग़लती से भारत-पाकिस्तान के सरहद के पास से अग़वा कर लेते हैं. सनी को बंदी बनाकर रखने के लिए उन्हें कोई जगह नहीं मिलती तो […]

रेटिंग : *1/2

‘फ़िल्मिस्तान’ कहानी है एक बॉलीवुड के दीवाने और एक्टर बनने की चाह रखने वाले सनी अरोड़ा (शारिब हाशमी) की, जिसे पाकिस्तानी चरमपंथी ग़लती से भारत-पाकिस्तान के सरहद के पास से अग़वा कर लेते हैं.

सनी को बंदी बनाकर रखने के लिए उन्हें कोई जगह नहीं मिलती तो वो उसे पाकिस्तान में एक घर पर क़ैद कर देते हैं.

घर होता है आफ़ताब (इनामुलहक़) का. सनी की दोस्ती आफ़ताब से हो जाती है जो बॉलीवुड फ़िल्मों की पायरेटेड डीवीडी का धंधा करता है.

सनी इस क़ैद से भागने की कोशिश करता है पर दो चरमपंथी महमूद (कुमुद मिश्रा) और जावेद (गोपाल दत्त) उसे पकड़ कर वापस ले आते हैं.

(फ़िल्म रिव्यू: ‘सिटीलाइट्स’ की हलचल)

आफ़ताब, जो अपने पिता (वसीम ख़ान) और छोटे भाई महताब (मास्टर तुषार झा) के साथ घर पर रहता है, उसे पता चलता है कि सनी को बेवजह क़ैद करके रखा गया है और वो सनी से वादा करता है कि वो उसे हिफ़ाज़त के साथ भारत छोड़ देगा.

सनी और आफ़ताब बॉर्डर की तरफ़ निकल जाते हैं ताकि सनी भारत चला जाए. क्या सनी भारत पहुंच पाता है? यही फ़िल्म की कहानी है.

कहानी और पटकथा

निर्देशक नितिन कक्कड़ की कहानी काफ़ी फ़ीकी है और इसकी पटकथा में भी कोई जान नहीं नज़र आती.

(रिव्यू:’द एक्सपोज़े’)

ये बात अटपटी लगती है कि क्यों आफ़ताब सनी की मदद करता है जबकि ऐसा करने से उसके बूढ़े बाप और छोटे भाई की जान को ख़तरा हो सकता है.

सबसे अहम बात उन दोनों के बीच कोई इतना मज़बूत रिश्ता भी नहीं होता जिसकी वजह से आफ़ताब ऐसा करे.

(रिव्यू:’हीरोपंती’)

पटकथा में बिल्कुल भी वज़न नहीं है पर हां, कुछ दृश्य ऐसे हैं जिन्हें देखकर दर्शक बहुत ज़ोर से हंसेंगे और कुछ तो उनके दिल में घर कर जाएंगे.

शारिब हाशमी द्वारा लिखे गए संवाद काफी वास्तविक और मज़ेदार हैं.

अभिनय और निर्देशन

शारिब हाशमी ‘हीरो’ की तरह बिल्कुल नहीं लगते लेकिन उन्होंने सनी का किरदार अच्छा निभाया है.

वो दर्शकों को बॉलीवुड के अभिनेताओं की मिमिक्री करके बहुत प्रभावित करते हैं.

(फ़िल्म रिव्यू: कोचेडियान-द लेजेंड)

इनामुलहक़ ने ‘आफ़ताब’ के किरदार को काफ़ी वास्तविक रूप से निभाया है और दर्शकों पर अपने अभिनय की छाप छोड़ देते हैं.

कुमुद मिश्रा ने ‘महमूद’ का किरदार ठीक ठाक निभाया है और ‘जावेद’ के किरदार को गोपाल दत्त ने काफ़ी अच्छे तरीक़े से निभाया है.

नितिन कक्कड़ का निर्देशन उनकी कहानी और पटकथा की ही तरह काफ़ी सीमित दर्शकों को ही अच्छा लगेगा.

कुछ लोगों को जहां फ़िल्म का ड्रामा और कथन का तरीका पसंद आएगा वहीं कई लोगों को ये बेहद बेकार लगेगा क्योंकि इसमें वो मसाला नहीं है जो एक आम फ़िल्म में दर्शक देखना चाहता है.

अरिजीत दत्ता का संगीत ठीक ठाक है और रविन्द्र रंधावा के गीत बहुत औसत हैं.

कुल मिलाकर फ़िल्मिस्तान समाज के एक सीमित हिस्से को ही पसंद आएगी.

(बीबीसी हिंदी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें