पवन कुमार बिलटोरिया पश्चिमी दिल्ली के मायापुरी इलाक़े में एक विशाल से पड़े के साये में अपना टूटा फूटा सा गराज चलाते हैं.
50 वर्षीय पवन की आँखों पर दशकों तक इस्तेमाल में लाए गए रासायनिक रंगों का असर देखा जा सकता है. लेकिन उन्हें इस बात की फिक्र नहीं है. पुरानी मोटरसाइकिलों को स्प्रे पेंट से रंगने का उनका काम और जिस तरीक़े से वे इसे करते हैं दोनों ही अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही हैं.
लेकिन अब उनके ग्राहक बदल गए हैं. अब उनके पास नौजवान हिंदुस्तानियों की एक नई नस्ल आ रही है जो ख़ास तरह की मोटरसाइकिलों के जरिए अपनी छवि गढ़ना चाह रहे हैं. क्रोमियम चढ़ी हुई चमकती प्लेटें, आग के शेड वाले लाल रंग या फिर ब्रितानी फैशन वाला हरा रंग इन नौजवानों का अलग ही किरदार पेश करता है.
इन ग्राहकों के पास या तो अधिक ताक़तवर इंजन वाली बाइक ख़रीदने का विकल्प है या फिर पुरानी मशीन को अपनी पसंद के मुताबिक कसवा लेने का. इनके सपने भारत की सड़कों पर चलने वाली ज्यादातर 125 सीसी के मोटरसाइकिलों के मालिकों से अलग हैं जिनकी तादाद तक़रीबन एक करोड़ होगी.
महँगी मोटरसाइकिलें
इन मोटरसाइकिलों की क़ीमत 31 लाख रुपए तक हैं और उनके लिए ये विलासिता, शान और शौक़ का प्रतीक है. इन महँगी गाड़ियों पर पैसा लुटाने वाले भारतीयों की तादाद तेज़ी से बढ़ रही है और दुनिया भर में इस तरह की महँगी मोटरसाइकिलें बनाने वाली कंपनियां इस बाज़ार में जगह बनाने के लिए तैयार हैं.
अमरीकी ब्रांड ‘इंडियन मोटरसाइकिल’ ने हाल ही में गुड़गाँव में अपना पहला शोरूम खोला है. ब्रितानी ब्रांड ‘ट्रायम्फ़’ ने जनवरी में बंगलौर में अपना पहला डीलरशिप स्टोर खोला था. इतालवी कंपनी ‘डुकाटी’ ने इस साल भारतीय बाज़ार में उतरने की घोषणा कर दी है.
पुरानी बात नहीं है जब 2007 में भारतीय बाज़ार में 1000 सीसी की सुपरबाइक ‘आर-वन’ उतारने वाली यामाहा पहली कंपनी थी. इसके अगले साल ही सुज़ुकी ने 1300 सीसी की ‘हायाबुसा’ उतारी और 2009 में होंडा ने ‘सीबीआर1000आरआर’ उतारी थी. लेकिन वो ‘हार्ले डेविडसन’ थी जिसने 2010 में भारत में पहला शोरूम खोला.
हार्ले डेविडसन
और उसके साथ ही भारत में महँगी सुपरबाइकों का बाज़ार तय हो गया. उसने बिक्री के बाद की सेवाओं और ‘इंडिया बाइक वीक’ जैसे सालाना कार्यक्रमों के ज़रिए लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. ‘इंडिया बाइक वीक’ की दूसरी कड़ी का आयोजन इस साल जनवरी में किया गया था.
2007 में उसने 200 सुपरबाइक बेची थी जबकि बिक्री का ये आंकड़ा अब बढ़कर 400 बाइक सालाना पर पहुँच गया है. हालांकि भारत में हर महीने बिकने वाले आठ लाख मोटरसाइकिलों की तुलना में ये आंकड़े बेहद मामूली से लगते हैं लेकिन हार्ले डेविडसन की सालाना बिक्री दो अंकों में बढ़ रही है और भारत की सड़कों पर इसकी चार हज़ार मोटरसाइकिलें मौजूद हैं.
हार्ले डेविडसन इंडिया के अनूप प्रकाश कहते हैं, "यहाँ का बाज़ार उम्मीदें जगाने वाला है. ग्लोबल ब्रांड्स के लिए लोग चाहत रखते हैं. कारोबार और मौज मस्ती दोनों के लिहाज से ही यहाँ सुविधाएँ बढ़ रही हैं और तेजी से तरक्की हो रही है. भारत और चीन दुपहिया वाहनों के मामले में दुनिया के दो बड़े बाज़ार हैं और मोटरसाइकिलों के मामले में तो भारत कहीं आगे है. इसलिए हम यहाँ मजबूती से टिके हुए हैं."
ट्रायम्फ़
हार्ले डेविडसन ने इस साल भारतीय बाज़ार में ‘स्ट्रीट-750’ उतारी जो पाँच लाख रुपये से कम क़ीमत की थी. कंपनी का इरादा शहरी नौजवानों को अपनी ओर खींचने का था. ट्रायम्फ ग्राहकों को डिज़ाइन, रंग और फीचर्स चुनने का मौका दे रहा है.
ट्रायम्फ के प्रबंध निदेशक विमल सम्बली कहते हैं कि इन महँगी मोटरसाइकिलों के ज़्यादातर ख़रीददारों की उम्र 25 से 40 साल के बीच है और वे बड़े शहरों में रहते हैं. उन्होंने अभी तक 200 ट्रायम्फ बाइक्स की बुकिंग कराई है जिनमें 50 मोटरसाइकिलें भारतीय सड़कों पर उतर भी गई हैं.
इंडियन मोटरसाइकिल 40 साल की उम्र पार कर चुके ख़रीददारों से फासला बना अपनी रणनीति तय कर रहा है. नतीजतन इसमें कोई शक़ नहीं कि उसकी क़ीमतें 40 हज़ार अमरीकी डॉलर या तकरीबन 23 लाख रुपये से ज़्यादा की हैं.
चढ़ता बाज़ार
कंपनी के अधिकारी पंकज दुबे कहते हैं, "बाज़ार के इस आखिरी सिरे पर हर साल शायद 200 बाइक्स बेची जाती हैं. हमें बाज़ार के 10 से 15 फ़ीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है."
हालांकि 23 लाख रुपये ख़र्च करने के लिए ज़्यादातर ग्राहकों के पास पैसा नहीं होगा लेकिन महंगी मोटरसाइकिलों के चढ़ते बाज़ार ने मायापुरी जैसी जगहों में छोटे छोटे स्तरों पर फलते फूलते कारोबार को भी सहारा दिया है.
पुरानी बुलेट की रिपेयर करने वाली ‘ओल्ड दिल्ली मोटर साइकिल्स’ के मालिक बॉबी सिंह कहते हैं कि उनके पास ग्राहकों की पसंद के मुताबिक डिजाइन बनवाने वाले लोगों का आना लगातार बढ़ता जा रहा है.
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