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उपवास का स्वादिष्ट भोजन

पुष्पेश पंत अगर किसी भोजनालय के स्वामी प्रबंधक से पूछें, तो वह बेहिचक स्वीकार करेगा कि अगर कारोबार जारी रखना है, तो मेनू में बदलाव लाये बिना काम नहीं चल सकता. यह बात ‘नवरात्रि के जायके’ वाली खास थाली में भी देखने को मिलती है और पश्चिम से आयात किये गये पित्जा जैसे व्यंजनों में […]

पुष्पेश पंत
अगर किसी भोजनालय के स्वामी प्रबंधक से पूछें, तो वह बेहिचक स्वीकार करेगा कि अगर कारोबार जारी रखना है, तो मेनू में बदलाव लाये बिना काम नहीं चल सकता. यह बात ‘नवरात्रि के जायके’ वाली खास थाली में भी देखने को मिलती है और पश्चिम से आयात किये गये पित्जा जैसे व्यंजनों में भी. व्रत-उपवास के स्वादिष्ट भोजनों के बारे में बता रहे हैं व्यंजनों के माहिर प्रोफेसर पुष्पेश पंत…
वर्षा ऋतु के अंत तक व्रत-उपवास का मौसम आ पहुंचता है. आजकल बहुत सारे लोग पितृपक्ष अर्थात श्राद्ध या इसके तत्काल बाद वाले पखवाड़े में नवरात्र के लिए निर्धारित खान पान संबंधी पारंपरिक निषेधों-प्रतिबंधों का पालन कट्टरता से नहीं करते, पर तब भी कुछ अवचेतन मन की आशंका और कुछ लोकलाज के डर से ही सही अचानक शाकाहारी बन जाते हैं. अगर किसी भोजनालय के स्वामी प्रबंधक से पूछें, तो वह बेहिचक स्वीकार करेगा कि अगर कारोबार जारी रखना है, तो मेनू में बदलाव लाये बिना काम नहीं चल सकता.
यह बात ‘नवरात्रि के जायके’ वाली खास थाली में भी देखने को मिलती है और पश्चिम से आयात किये गये पित्जा जैसे व्यंजनों में भी. कोटू, सिंघाड़े का आटा, शकरकंद, अरबी, मखाने और साबूदाने, दूध तथा दूध से बने पदार्थ, मेवे, समक के चावल, ताजा तथा सूखे फल तरह-तरह के रंग रूप में अपने स्वाद के साथ अवतरित होने लगते हैं.
उपवास में कुछ लोग अपने लिए कड़ा अनुशासन स्वयं निर्धारित कर लेते हैं कि नमक कतई नहीं खायेंगे या उन सब्जियों का प्रयोग नहीं करेंगे, जो मध्यकाल में पुर्तगालियों के साथ आयीं, अथवा जिन्हें तामसिक समझा जाता है.
इस सूची में लहसुन और प्याज ही नहीं टमाटर, मिर्ची भी शामिल किये जाते हैं. इसलिए चुनौती जटिल हो जाती है भोजन को षडरस बनाने की. इसके साथ ही समस्या बची रहती है हर रोज नया कुछ पकाने और खिलाने की, ताकि एकरसता तोड़ी जा सके.
यही दिन हैं अपने पाक कौशल के प्रदर्शन के और देश के विभिन्न प्रांतों के खान-पान से प्रेरित होने तथा ‘पराये’ व्यंजनों को अपनाने के! खीर को ही लें- आम तौर पर इसे चावलों से तैयार के मेवों से सजाया जाता है.
कभी यह बादामी बन जाती है, तो कभी केसरिया बन जाता है. आखिर क्यों आप मखाने के बाद केरल के ‘प्रथमन’ या बंगाल की ‘छेना पायष’ को इस थाली में स्थान नहीं दे सकते? एक मित्र ने पिछले वर्ष हमें इन्हीं दिनों शकरकंद की खीर से चकित-मुग्ध कर दिया था.
कुछ लोग यह भ्रांति पाले रहते हैं कि सेवइयों की खीर वर्जित है, क्योंकि उसमें अनाज होता है. पर तब आपत्ति कैसे हो सकती है, जब सेवइयां भी उसी आटे से तैयार की गयी हों, जिसका उपयोग पूरी या पुए बनाने कि लिए किया जाता है? अभी फलों तथा सब्जियों की खीर का जिक्र बाकी है! वह फिर कभी.
यह बात सिर्फ मिठास पर ही लागू नहीं होती. मूंगफली और साबूदाने की जुगलबंदी सिर्फ मराठी साबूदाने की खिचड़ी में ही नहीं आनंददायक होती है और यह भी जरूरी नहीं कि आप इसे नमकीन ही पेश करें.
भूना जीरा हो, सूखा पुदीना, अनारदाना, सौंठ और अामचूर, काली मिर्च, दालचीनी, लौंग, सौंफ और सौंठ आदि यह सब अपनी अलग खास मौजूदगी दर्ज करा सकते हैं व्रत-उपवास के खाने में. तीखा, कड़वा, कसैला, खट्टा सभी रस इनकी मदद से नवरात्र वाले व्यंजनों को तृप्तिदायक बनाते हैं, उनके लिए भी जो कभी उपवास नहीं करते. जिन मसालों का जिक्र यहां किया जा रहा है, उनके जायके रेडीमेड गरम मसाले जैसे मिश्रण में बरसों से गुम हो गये हैं या फिर उनके दर्शन चाट के पत्तल में पलभर के लिए ही होते हैं.
केले, कटहल और जिमीकंद के चिप्स, नमकीन ही नहीं मीठे और सादे भी, दक्षिण भारत में लोकप्रिय हैं. और अन्यत्र भी यह दुर्लभ नहीं. इनका कुरकुरापन उपवास के खाने के आनंद को दोगुना कर देता है.

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