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भारत के भरत वटवाणी और सोनम वांगचुक को रेमन मैगसेसे पुरस्कार, जानिये…

मनीला : दो भारतीय नागरिकों भरत वटवाणी और सोनम वांगचुक का नाम इस साल के रेमन मैगसेसे पुरस्कार के विजेताओं में शामिल है. वटवाणी मानसिक रोग चिकित्सक हैं, जो मानसिक रूप से बीमार बेसहारा व्यक्तियों के लिए काम करते हैं. वहीं, वांगचुक ने आर्थिक प्रगति के लिए विज्ञान और संस्कृति का इस्तेमाल करने की पहल […]

मनीला : दो भारतीय नागरिकों भरत वटवाणी और सोनम वांगचुक का नाम इस साल के रेमन मैगसेसे पुरस्कार के विजेताओं में शामिल है. वटवाणी मानसिक रोग चिकित्सक हैं, जो मानसिक रूप से बीमार बेसहारा व्यक्तियों के लिए काम करते हैं. वहीं, वांगचुक ने आर्थिक प्रगति के लिए विज्ञान और संस्कृति का इस्तेमाल करने की पहल ने लद्दाखी युवकों के जीवन में सुधार किया.

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भरत वटवाणी और सोनम वांगचुक उन छह लोगों में शामिल हैं. इन्हें आज इस पुरस्कार के विजेता घोषित किया गया, जिसे एशिया का नोबेल पुरस्कार माना जाता है. रेमन मैगसेसे अवॉर्ड फाउंडेशन ने कहा कि वटवाणी की यह पहचान भारत के मानसिक रूप से पीड़ित निराश्रितों को सहयोग एवं उपचार मुहैया कराने में उनके साहस और करुणा तथा समाज द्वारा नजरंदाज किये गये व्यक्तियों की गरिमा को बहाल करने के कार्य के प्रति उनके दृढ़ और उदार समर्पण के लिए की गयी है.

वटवाणी मुंबई में रहते हैं और उनकी पत्नी ने मानसिक रूप से पीड़ित बेसहारा लोगों को इलाज के लिए उनके निजी क्लीनिक लाना शुरू किया. इससे दोनों ने 1988 में श्रद्धा रिहैबिलिटेशन फाउंडेशन की स्थापना की. इसका उद्देश्य सड़क पर रहने वाले मानसिक रूप से बीमार लोगों को मुफ्त आश्रय, भोजन और मनोरोग उपचार मुहैया कराना तथा उन्हें उनके परिवारों से मिलाना है.

वांगचुक (51) को यह पहचान उत्तर भारत के दूरदराज के क्षेत्रों में ‘शिक्षा की विशिष्ट व्यवस्थित, सहयोगी और समुदाय संचालित सुधार प्रणाली के लिए की गयी है, जिससे लद्दाखी युवाओं के जीवन के अवसरों में सुधार हुआ. इसके साथ ही, उनकी यह पहचान आर्थिक प्रगति के वास्ते विज्ञान एवं संस्कृति का उपयोग करने को लेकर रचनात्मक रूप से स्थानीय समाज के सभी क्षेत्रों को सकारात्मक रूप से लगाने के उनके कार्य के लिए की गयी है. उनके इस कार्य से विश्व में अल्पसंख्यक लोगों के लिए एक उदाहरण बना.

वांगचुक श्रीनगर में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में 19 वर्षीय इंजीनियरिंग के छात्र थे, जब उन्होंने अपनी शिक्षा के वित्तपोषण के लिए ट्यूशन शुरू की और उन्होंने बिना तैयारी के छात्रों को मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने में मदद की. 1988 में इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने के बाद वांगचुक ने ‘स्टूडेंट्स एजुकेशन एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख’ (एसईसीएमओएल) की स्थापना की और लद्दाखी छात्रों को कोचिंग देना शुरू किया. इसमें से 95 प्रतिशत सरकारी परीक्षाओं में असफल हो जाते थे.

1994 में वांगचुक के नेतृत्व में ‘ऑपरेशन न्यू होप’ शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य साझेदारी संचालित शैक्षिक सुधार कार्यक्रम को विस्तारित करना और उसे समेकित करना था. इसके साथ ही, इस पुरस्कार के अन्य विजेताओं में युक चांग (कंबोडिया), मारिया डी लोर्ड्स मार्टिंस क्रूज (पूर्वी तिमोर), होवर्ड डी (फिलिपिन) और वी टी होआंग येन रोम (वियतनाम) शामिल हैं.

रेमन मैगसायसाय अवॉर्ड फाउंडेशन अध्यक्ष कारमेनसिता एबेला ने कहा कि विजेता स्पष्ट रूप से एशिया की उम्मीद के नायक हैं, जिन्होंने अपने प्रयासों से समाज को आगे बढ़ाया. उन्होंने कहा कि वंचित और हाशिये पर रहने वाले लोगों के साथ वास्तव में एकजुटता दिखाते हुए इनमें से प्रत्येक ने वास्तविक और जटिल मुद्दों का साहसी, रचनात्मकता और व्यावहारिक कदमों से समाधान किया है, जिससे अन्य वैसा ही करने में लगे.

रेमन मैगसेसे पुरस्कार एशिया का सबसे बड़ा पुरस्कार है. इसकी स्थापना 1957 में फिलिपिन के तीसरे राष्ट्रपति की स्मृति में की गयी थी और इस पुरस्कार का नाम उनके नाम पर रखा गया है. यह पुरस्कार औपचारिक रूप से 31 अगस्त, 2018 को फिलिपिन के सांस्कृतिक केंद्र में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रदान किया जायेगा.

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