11.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Somnath Temple: कण-कण में दिव्यता, 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे पहला है या मंदिर

Somnath Temple: किंवदंती है कि चंद्रमा भगवान द्वारा मंदिर बनाये जाने के बाद रावण ने चांदी का मंदिर बनाया था. द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने सोमनाथ में लकड़ी का मंदिर बनवाया था. इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंभा) है, इसे ‘बाणस्तंभ’ कहा जाता है.

Somnath Temple: किंवदंती है कि चंद्रमा भगवान द्वारा मंदिर बनाये जाने के बाद रावण ने चांदी का मंदिर बनाया था. द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने सोमनाथ में लकड़ी का मंदिर बनवाया था. इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंभा) है, इसे ‘बाणस्तंभ’ कहा जाता है. यह एक दिशादर्शक स्तंभ है, जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है. इस बाणस्तंभ पर संस्कृत में लिखा है कि ‘इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं है.’

10 किलोमीटर में फैला है मंदिर

जरात स्थित सोमनाथ मंदिर की भव्यता और महिमा का एहसास मंदिर में प्रवेश करने से पहले ही हो जाता है. मंदिर में सबसे पहले शिव के वाहन नंदी के दर्शन होते हैं, मानो नंदी हर भक्त का स्वागत कर रहे हों. भारत के पश्चिमी तट पर सौराष्ट्र के वेरावल के पास प्रभास पाटन में स्थित हिंदू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक सोमनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला है. मंदिर नगर के 10 किलोमीटर में फैला है और इसमें 42 मंदिर हैं. माना जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है. यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने यहीं देह त्याग किया था. शिल्प, भव्यता और विस्तार- वहां पहुंचने पर मन में पहला ख्याल यही आया. एक तरफ जहां आस्था का बहाव आंदोलित कर रहा था, वहीं दूसरी ओर उसकी बनावट, उसके पत्थरों और दीवारों पर उकेरी गयी आकृतियां और पूरे मंदिर का वास्तुशिल्प प्रभावित कर रहा था.

मंदिर में प्रवेश

अंदर प्रवेश करने से पहले सुरक्षा जांच के बाद भी एक लंबा रास्ता पार करना पड़ता है और जहां स्वर्ण के शिव विराजमान हैं, वहां भी जाने के लिए कतार में खड़ा होना पड़ता है. उस विराट शिव के सौंदर्य को निहार सकते हैं, जिनकी प्रार्थना करने के लिए यह विशाल मंदिर गर्व से खड़ा है. चांदी की दीवारें सी जड़ी हैं आसपास. फूलों का श्रृंगार शिव के रूप को और आलोकित कर रहा था. मस्तक पर चंद्रमा को धारण किये महादेव का सबसे पंचामृत स्नान कराया जाता है. फिर उनका अलौकिक श्रृंगार किया जाता है. शिवलिंग पर चदंन से ऊं अंकित किया जाता है और फिर बेलपत्र अर्पित किया जाता है. भगवान सोमनाथ की पूजा के बाद मंदिर के पुजारी भगवान के हर रूप की आराधना करते हैं. अंत में उस महासागर की आरती उतारी जाती है, जो सुबह सबसे पहले उठकर अपनी लहरों से भगवान के चरणों का अभिषेक करता है. मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित प्राचीन मंदिर के विषय में मान्यता है कि यह पार्वती जी का मंदिर है. बाहर निकलते ही हरियाली का विस्तार मन को छू लेता है. एकदम स्वच्छ वातावरण घेर लेता है और सांसों में दिव्यता घुलने लगती है. सामने समुद्र का फैलाव बांहें पसारे स्वागत कर रहा होता है और सूर्यास्त देखने के लिए मैं भी जाकर खड़ी हो गयी.

मंदिर के अलग-अलग भाग हैं

शिखर, गर्भगृह, सभा मंडप व नृत्य मंडप. मंदिर पर लगा त्रिकोणीय ध्वज हवा में उड़ रहा था, जो 27 फीट ऊंचा है. मंदिर के शिखर पर स्थित जो कलश है, उसका वजन 10 टन है. कुछ सफेद हंस नीले पानी के ऊपर उड़ रहे थे. सूरज धीरे-धीरे मंदिर के पीछे अस्त हो रहा था, उसकी किरणें समुद्र की उठती-गिरती लहरों पर इंद्रधनुषी आकृतियां बना रही थीं. लग रहा था कि सोमनाथ मंदिर शांति के आवरण से ढक गया है. यहां समुद्र अपनी गूंज और ऊंची-ऊंची लहरों से साथ सदैव शिव के चरण वंदन करता प्रतीत होता है. यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है. इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है.

प्राचीन हिंदू ग्रंथों के अनुसार जानें

प्राचीन हिंदू ग्रंथों के अनुसार सोम यानी चंद्र ने दक्ष प्रजापति राजा की 27 कन्याओं से विवाह किया था. लेकिन वे अपनी पत्नी रोहिणी से अधिक प्यार करते थे. इस कारण अन्य दक्ष कन्याएं उदास रहती थीं. उन्होंने इसकी शिकायत अपने पिता से की. दक्षराज ने चंद्रमा को समझाया, लेकिन उन्होंने जब ध्यान नहीं दिया, तो दक्ष ने चंद्रमा को ‘क्षयी’ होने का शाप दे दिया कि अब से हर दिन उसका तेज क्षीण होता रहेगा. शाप से विचलित और दुखी सोम ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी. भगवान शिव ने उन्हें आश्वस्त किया कि शाप के फलस्वरूप कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होती जायेगी, लेकिन शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से एक-एक कला बढ़ती जायेगी और प्रत्येक पूर्णिमा को तुम पूर्ण चंद्र हो जाओगे. चंद्रमा शिव के वचनों से गदगद हो गये और शिव से हमेशा के लिए वहीं बसने का आग्रह किया. चंद्र देव एवं अन्य देवताओं की प्रार्थना स्वीकार कर भगवान शंकर भवानी सहित यहां ज्योतिर्लिंग के रूप में निवास करने लगे. इसीलिए यह जगह कहलायी सोमनाथ यानी सोम के ईश्वर का स्थान.

चंद्रमा ने स्वर्ण मंदिर का निर्माण किया

पुराणों में लिखा है कि चंद्रमा ने एक स्वर्ण मंदिर का निर्माण किया था और मंदिर की पूजा और रख-रखाव का काम सोमपुरा ब्राह्मणों को सौंपा था. आज भी सोमनाथ में यह समुदाय रहता है, जो स्वयं को चंद्रमा का वंशज मानता है. जब स्वतंत्रता के बाद सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था, तो इसे आकार देने वाले राजमिस्त्री और कलाकार सोमपुरा सलत समुदाय से थे, जो सोमपुरा ब्राह्मण समुदाय की एक शाखा है और अपने स्थापत्य एवं कलात्मक कौशल के लिए जाना जाता है. किंवदंती है कि चंद्रमा भगवान द्वारा मंदिर बनाये जाने के बाद रावण ने चांदी का मंदिर बनाया था. द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने सोमनाथ में लकड़ी का मंदिर बनवाया था. इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंभा) है, इसे ‘बाणस्तंभ’ कहा जाता है. यह एक दिशादर्शक स्तंभ है, जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है. इस बाणस्तंभ पर संस्कृत में लिखा है कि ‘इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं है.’ यानी इस समूची दूरी में जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं है! सोचकर अचरज हुआ कि यह ज्ञान इतने वर्षों पहले हम भारतीयों को था?

सुमन बाजपेयी, टिप्पणीकार

Prabhat Khabar News Desk
Prabhat Khabar News Desk
यह प्रभात खबर का न्यूज डेस्क है। इसमें बिहार-झारखंड-ओडिशा-दिल्‍ली समेत प्रभात खबर के विशाल ग्राउंड नेटवर्क के रिपोर्ट्स के जरिए भेजी खबरों का प्रकाशन होता है।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel