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Navratri 2022: इस दिन से शुरू हो रही है नवरात्रि, यहां जानें मां दुर्गा के नौ रूपों के बारे में

Navratri 2022: नवरात्रि 26 सितंबर से शुरू होकर 5 अक्टूबर तक चलेगी. 3 अक्टूबर को अष्टमी व्रत रखा जाएगा. 4 अक्टूबर को नवमी तिथि का व्रत रखा जाएगा. वहीं 5 अक्टूबर को धूमधाम के साथ विजयदशमी यानी दशहरा मनाया जाएगा.

Navratri 2022:    प्रतिपदा को कलश स्थापना के बाद देवी पूजन होता है और जौ बोए जाते हैं. नवरात्र के पहले दिन भगवती के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है. इस साल नवरात्रि की शुरुआत 26 सितंबर से होने जा रही है. नवरात्रि 26 सितंबर से शुरू होकर 5 अक्टूबर तक चलेगी. 3 अक्टूबर को अष्टमी व्रत रखा जाएगा. 4 अक्टूबर को नवमी तिथि का व्रत रखा जाएगा. वहीं 5 अक्टूबर को धूमधाम के साथ विजयदशमी यानी दशहरा मनाया जाएगा.

मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा

कैसे पड़े माता के ये नौ नाम
1. शैलपुत्री: देवी पार्वती को शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है. शैल का शाब्दिक अर्थ पर्वत होता है. पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया. इनका पूजन मंत्र है-
            वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम.
            वृषारूढ़ां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम..

2.  मां ब्रह्मचारिणी

यह मां दुर्गा का दूसरा रूप है. यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है. शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानि तप का आचरण करने वाली बताया गया है. मां ब्रह्मचारिणी के एक हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में कमंडल है. भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने वर्षों तक कठिन तपस्या की और अंत में उनकी तपस्या सफल हुई. मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से सिद्धी की प्राप्ति होती है. तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि के लिए देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती है.  इनका पूजन मंत्र है-
  दधाना करपाद्माभ्याम, अक्षमालाकमण्डलु.
               देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा..

3. चंद्रघंटा

देवी के मस्तक पर अर्ध चंद्र के आकार का तिलक विराजमान है इसीलिए इनको चंद्रघंटा के नाम से भी जाना जाता है.दुष्टों का नाश  करने वाली देवी की अराधना के लिए मंत्र है-
             पिंडजप्रवरारूढ़ा, चंडकोपास्त्रकैर्युता.
             प्रसादं तनुते मह्मं, चंद्रघंटेति विश्रुता..

4. कूष्मांडा

4. यह मां दुर्गा का चौथा रूप है. कूष्मांडा शब्द दो शब्दों यानि कुसुम मतलब फूलों के समान हंसी और आण्ड का अर्थ है ब्रह्मांड. अर्थात वो देवी जिन्होनें अपनी फूलों सी मंद मुस्कान से पूरे ब्रह्मांड को अपने गर्भ में उत्पन्न किया है. देवी कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं. साथ ही हाथ में अमृत कलश भी है. मां की पूजा करने से यश, आयु और आरोग्य की वृद्धि होती है. मां कूष्मांडा की पूजा करने के लिए मंत्र है-
              सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च.
              दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्मांडा शुभदास्तु मे.

5. स्कंदमाता:

माता पार्वती कार्तिकेय की मां हैं. कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है. इस तरह स्कंद की माता यानी स्कंदमाता कहलाती हैं.  मां स्कंदमाता की अराधना का मंत्र है-
        सिंहासनगता नित्यं, पद्माश्रितकरद्वया.
        शुभदास्तु सदा देवी, स्कंदमाता यशस्विनी.

6. कात्यायिनी

माता दुर्गा का छठा रूप है मां कात्यायनी का. कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में जन्म लेने से इनका नाम कात्यायनी पड़ा. स्वर्ण से चमकीले रंग वाली देवी की चार भुजाएं हैं. इनका वाहन सिंह है. इनकी पूजा करने से चारों पुरुषार्थों यानि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है. मां की पूजा के लिए मंत्र है-
         चंद्रहासोज्जवलकरा, शार्दूलवरवाहना.
         कात्यायनी शुभं दद्यात्, देवी दानवघातिनी..

7. कालरात्रि

यह मां दुर्गा का सातवां रूप है. मां कालरात्रि असुरों का नाश करने वाली हैं. इनके तीन नेत्र और चार भुजाएं हैं. इनका वाहन गधा है. इनका पूजन मंत्र है-
          एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता.
          लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी..
          वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा.
          वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी..

8. महागौरी

कहा जाता है कि जब भगवान शिव को पाने के लिए माता ने इतना कठोर तप किया था कि वे काली पड़ गई थीं. जब महादेव उनकी तप से प्रसन्न हुए और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया, तब भोलेनाथ ने उनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से धोया था. इसके बाद माता का शरीर विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा था. इसके स्वरूप को महागौरी के नाम से जाना गया.इनके पूजन का मंत्र है-
          श्र्वेते वृषे समारूढा, श्र्वेतांबरधरा शुचि:.
          महागौरी शुभं दद्यात्, महादेवप्रमोददाद..

9. सिद्धिदात्री

यह मां दुर्गा का नवां रूप है. यह सिद्धियों को देने वाली देवी हैं. कमल पिष्प पर विराजमान देवी सिद्धिदात्री की चार भुजाएं हैं. शास्त्रों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व नाम की आठ सिद्धियां बताई गई हें. इन सभी सिद्धियों को मां सिद्धिदात्री की पूजा से प्राप्त किया जा सकता है. इनका पूजन मंत्र है-
         सिद्धंगधर्वयक्षाद्यै:, असुरैरमरैरपि.
         सेव्यमाना सदा भूयात्, सिद्धिदा सिद्धिदायिनी..

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