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West Singhbhum: आस्था का केंद्र है पाउड़ी मंदिर, चैत्र मेले का हो रहा आयोजन, भक्त दिखाएंगे हठभक्ति

पश्चिमी सिंहभूम में पाउड़ी मंदिर आस्था का केंद्र है. हर साल की तरह इस साल भी यहां चैत्र मेले का आयोजन हो रहा है. जहां भक्त दहकते अंगारों पर चलकर और कांटों पर लेटकर हठभक्ति दिखाएंगे. पाउड़ी मंदिर का इतिहास कई सालों पुराना है. मां पाउड़ी को राजपुरुषों की कुलदेवी भी कहा जाता है.

पश्चिमी सिंहभूम, रवि मोहंती. पश्चिमी सिंहभूम में संजय नदी किनारे पुरानी बस्ती स्थित मां पाउड़ी पर सदियों से लोगों की अटूट आस्था रही है. जिसके दर्शन को दूर दराज से भक्त पहुंचते हैं. इतना ही नहीं प्रत्येक गुरुवार को मंदिर में विशेष पूजा भी होती है. वहीं, महीने के अंतिम गुरुवार को श्रद्धालुओं में खिचड़ी के भोग वितरण किया जाता है.

राजपुरुषों की कुलदेवी कही जाती हैं मां पाउड़ी

कहते हैं कि यहा मां के आर्शीवाद से भक्तों की सभी मन्नतें पूर्ण होती हैं. जिस कारण मां पाउड़ी मंदिर आस्था का केंद्र बना हुआ है. बता दें कि लगभग 1260 में सिंहभूम के राजा और भुईयां समुदाय के लोगों ने राजघराने की स्थापना के साथ ही मां पाउड़ी की पूजा अर्चना आरंभ की थी. मां पाउड़ी को राजपुरुषों की कुलदेवी कहा जाता है.

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सिंहभूम के राजा ने की थी मां पाउड़ी की मूर्ति की स्थापना

सिंहभूम के राजा ने मां पाउड़ी की मूर्ति की स्थापना शक्ति की अधिष्ठात्री देवी के रुप में की थी. जिसके बाद राजा अच्युता सिंह ने पोड़ाहाट में मां पाउड़ी की मूर्ति स्थापित की. पोड़ाहाट में सबसे पहले राज परिवार द्वारा बांसकाटा डैम के समीप मां पाउड़ी की पूजा की जाती थी. कालान्तर में पोड़ाहाट राजघराने की राजधानी चक्रधरपुर बनाई गई.

सरायकेला राजघराने के कुंवर ने कर ली थी मूर्ति की चोरी

इससे पहले 1802 ईस्वी में सरायकेला राजघराने के कुंवर विक्रम सिंह एक रात पोड़ाहाट से राजघराने की इष्ट देवी की मूर्ति चुराकर भाग निकले, लेकिन इस दौरान चक्रधरपुर के बलिया घाट के समीप ईष्ट देवी पाउड़ी मां का आसन पाट पीढ़ा गिर पड़ा. तत्कालीन राजा ने माता के इस आसन को अपने राजबाड़ी के समीप स्थापित करवाया.

1971 में बना मां पाउड़ी मंदिर

पुरानी बस्ती से सटे संजय नदी के किनारे स्थित पाउड़ी स्थल में 1971 में माता की प्रतिमा के रूप में शिला स्थापित की गई. इसके पहले यह झाड़ियों और पेड़ों से घिरा वीरान क्षेत्र था. दरअसल, 1969 में समाजसेवी सह पाउड़ी माता के भक्त मन्मथ कुमार सिंह को माता ने स्वप्न में मंदिर निर्माण कर प्रचार-प्रसार करने का निर्देश दिया था. बताया जाता है कि मन्मथ कुमार सिंह को माता के आदेश को पूरा करने में पूरे दो साल लगे थे. पुरानी बस्ती के निवासियों के सहयोग से और पूर्व सांसद स्वर्गीय रुद्र प्रताप षाड़ंगी के साथ 1971 में मां पाउड़ी मंदिर की स्थापना हुई.

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बिना प्रतिमा के दो सालों तक पूजा गया शिला

बिना प्रतिमा के शिला को दो वर्षों तक पूजा जाता रहा. 1973 में कंसरा के घने जंगल के कुईतुका खदान से लाए गए पत्थर से प्रतिमा का निर्माण किया गया. मूर्तिकार कन्हैया साहू ने प्रतिमा का निर्माण किया. पाउड़ी मां केरा व कंसरा मां की बहन हैं.

हर साल होता है चैत्र मेले का आयोजन

1971 से मां पाउड़ी की पूजा के अवसर पर चैत्र मेले का आयोजन होता रहा है. पाउड़ी स्थल के लिए निकलने वाली घट यात्रा पाट पीढ़ा तक लायी जाती है. कालिका दर्शन के दिन पाट पीढ़ा में बलि भी चढ़ाई जाती है. जिसके बाद घट यात्रा मां पाउड़ी मंदिर पहुंचता है.

13 और 14 अप्रैल को लगेगा मेला

मां पाउड़ी मंदिर में पांच दिनों तक देर शाम को घट यात्रा निकलता है. इस साल 10 अप्रैल की शाम मुक्तिनाथ धाम घाट से शुभ घटयात्रा, 11 अप्रैल को यात्रा घट, 12 अप्रैल को वृंदावन घाट निकला. जबकि 13 अप्रैल को सुबह मंदिर में मेडू (जलाभिषेक), शाम को गरियाभार एवं रात्रि में मंदिर परिसर में छऊ नृत्य और 14 अप्रैल की सुबह कालिका घट निकलेगा. वहीं मंदिर परिसर में मेला का आयोजन होगा.

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