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बीएचयू: पुरानी गठिया के इलाज में अमृतादि चूर्ण ज्यादा कारगर, आयुर्वेद संकाय के शोध में हुआ साबित

बीएचयू में आयुर्वेद संकाय के काय चिकित्सा विभाग की ओर से किए गए एक शोध में यह परिणाम सामने आया है कि गठिया के इलाज में एलोपैथी दवाओं से ज्यादा कारगर अमृतादि चूर्ण है.

गठिया एक ऐसी समस्या है जो इंसान को चलने-फिरने में भी लाचार कर देती है. इसमें जोड़ों में दर्द सूजन, हाथ-पैरों में अकड़न की समस्या हो जाती है. गठिया रोग से पीड़ित मरीजों के लिए अच्छी खबर है. बीएचयू में आयुर्वेद संकाय के काय चिकित्सा विभाग की ओर से किए गए एक शोध में यह परिणाम सामने आया है कि गठिया के इलाज में एलोपैथी दवाओं से ज्यादा कारगर अमृतादि चूर्ण है.

इस शोध कार्य का प्रकाशन एनल्स आफ आयुर्वैदिक मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित किया गया है. प्रो.राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि जो पुराने गठिया के मरीज हैं उनको बीमारी से राहत के लिए बिना किसी साइड इफेक्ट के उसके लक्षणों को नियंत्रित करने में आयुर्वेदिक औषधि अमृतादि चूर्ण अत्यंत लाभकारी है.

60 मरीजों पर हुआ शोध

दरअसल, काय चिकित्सा विभाग में प्रो. राजेंद्र प्रसाद, प्रो. ज्योति शंकर त्रिपाठी की अगुवाई में शोधार्थी डॉ. खुशबू अग्रवाल ने यह शोध किया है. इसके तहत गठिया के 60 मरीजों को शामिल किया गया था. मरीजों को 20-20 की संख्या के तीन समूह बनाए गए. पहले समूह के मरीजों को केवल गिलोय, गोक्षुर, सोंठ, गोरखमुंडी और वरुण से बना अमृतादि चूर्ण दिया गया.

अमृतादि चूर्ण का सेवन करने वाले मरीजों को ज्यादा हुआ लाभ

दूसरे समूह के मरीजों को अमृतादि चूर्ण के साथ-साथ अन्य दवाइयां भी दी गईं. तीसरे समूह के मरीजों को एक एलोपैथिक दवा दी गई. मरीजों का तीन महीने तक इलाज किया गया. इसके बाद जो लक्षण आए, उनका अध्ययन किया. यह निष्कर्ष निकला कि अमृतादि चूर्ण लेने वाले पहले समूह के मरीजों को बीमारी ठीक करने में सबसे ज्यादा लाभ मिला. तीसरे समूह को केवल एलोपैथिक दवा दी गई थी उनको तात्कालिक रूप से दर्द में ज्यादा आराम हुआ, लेकिन आगे चलकर अन्य कई समस्याएं दवाएं खाने से होने लगी.

प्रो. राजेंद्र प्रसाद के अनुसार विभाग में जो शोध हुआ है, उसमें यह बताया गया है कि एलोपैथिक दवाएं जल्द लाभ तो पहुंचाती हैं लेकिन स्थायी समाधान नहीं निकल पाता है. लंबे समय तक ये दवाएं लेने से लिवर, गुर्दे, आंत आदि को नुकसान भी पहुंचा सकती हैं.

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किशोर की छाती में फंसा 10 का सिक्का, डॉक्टर ने बिना ऑपरेशन निकाला

सोनभद्र में खेल-खेल में किशोर ने 10 रुपये का सिक्का निगल लिया. वह सिक्का उसके गर्दन के नीचे छाती में जाकर अटक गया. आनन-फानन परिजन उसे लेकर हिंडाल्को अस्पताल पहुंचे. वहां डॉक्टरों ने कड़ी मशक्कत के बाद बिना ऑपरेशन सिक्के को बाहर निकालने में सफलता पाई. इसके बाद किशोर के परिजनों ने राहत की सांस ली.

दरअसल, अनपरा निवासी धर्मजीत सिंह का पुत्र अविनाश (13) ने गुरुवार खेलने के दौरान दस रुपये का सिक्का निगल लिया. इस वजह से उसकी गर्दन व छाती में गंभीर दर्द हो रहा था. आनन-फानन परिजन किशोर को लेकर हिंडाल्को अस्पताल में पहुंचे. ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. शोभित श्रीवास्तव की तरफ से की गई प्रारंभिक जांच में बच्चे के गले में कोई सिक्का नहीं दिखा.

डॉक्टर को यह समझने में देर नहीं लगी कि सिक्का नीचे खिसक कर छाती या पेट में जा सकता है. हिंडाल्को हॉस्पिटल के सीएमओ डॉ. भास्कर दत्ता के निर्देशन में डॉ. शोभित श्रीवास्तव ने बच्चे की छाती का एक्स-रे किया. एक्स-रे की रिपोर्ट में छाती के नीचे की ओर 10 रुपये का सिक्का स्पष्ट रूप से फंसा हुआ दिख रहा था.

दूरबीन विधि के जरिये सिक्का बाहर निकाला

डॉक्टर की सूझ-बूझ का ही नतीजा था कि उन्होंने बिना देर किए बच्चे को बेहोश कर सिक्का निकालने का निर्णय लिया. डॉक्टर ने बिना ऑपरेशन के दूरबीन विधि के जरिये सिक्का बाहर निकाल दिया, जिससे न केवल बच्चे ने बल्कि उनके परिजनों ने भी चैन की सांस ली. बच्चे को सकुशल कुछ ही देर में घर भी भेज दिया गया.

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