लेकिन अचानक केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले से यहां स्टॉल लगाने वाले कारोबारियों का सर चकरा गया है.शुक्रवार से ही यहां मेले की शुरूआत हो गयी है. नोटबंदी के इस दौर में कितनी अच्छी बिक्री होगी,इसको लेकर कारोबारी संकित हैं.यहां उल्लेखनीय है कि कूचबिहार के रासमेला के बाद यहां आयोजित बोल्ला काली मेला उत्तर बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा मेला है.यहां सिर्फ इसी जिले से नहीं बल्कि राज्य के अन्य जिलों से भी लोग आते हैं.
इसके अलावा पड़ोसी देश बांग्लादेश से भी भारी संख्या में ना केवल श्रद्धालु बल्कि कारोबारी भी आते हैं.बालुरघाट थाने के पास बोल्ला इलाके में अस्सी फीट के मंदिर में मां काली की प्रतिमा स्थापित है.मां काली की प्रतिमा को 12 किलो सोने के गहने से सजाया गया है.माना जा रहा है कि मेले के दौरान करीब 6000 बकरे की बलि भी दी जायेगी.मेला कमेटी द्वारा मिली जानकारी के अनुसार चार दिनों तक चलने वाले इस मेले के दौरान सैकड़ों स्टॉल लगाये गए हैं. करीब चार सौ साल से यहां इस मेले का आयोजन हो रहा है.मेला एक तरह से बांग्लादेश और भारतीय नागरिकों के बीच महा मिलन का भी काम करता है. इस इलाके में काफी ऐसे परिवार हैं जिनके कोइ ना कोइ सदस्य बांग्लादेश में हैं. ऐसे परिवारों के रिश्तेदार मेले में आते हैं और एक दूसरे से मिलकर लौट जाते हैं.इस मेले को देखते हुए सुरक्षा के भी तगड़े इंतजाम किये गए हैं.
सैकड़ों की तादाद में पुलिस बल की तैनाती की गयी है और विभिन्न स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं.यहां 24 घंटे पुलिस कंट्रोल रूम की भी स्थापना की गयी है.बालुरघाट-मालदा राष्ट्रीय राजमार्ग से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर बोल्ला काली मंदिर स्थित है.स्थानीय लोगों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार किसी जमाने में बल्लभ मुखर्जी यहां के जमिंदार थे. उन्होंने ही यहां काली मंदिर की स्थापना की थी और उनके नाम पर ही मंदिर को बोल्ला काली मंदिर कहा जाता है.इस्ट इंडिया कंपनी के दस्तावेजों में भी इस मंदिर और मेले का उल्लेख है. अंग्रेजों के जमाने भी यहां नियमित रूप से मेले का आयोजन होता रहा.इस साल भी मेले में काफी दुकाने लगायी गयी हैं. मनोरंजन के भी तमाम साधन हैं. झूला से लेकर नौटंकी तक का आनंद लोग उठा सकते हैं.यहां कारोबारियों ने अपनी दुकानें तो लगा दी है,लेकिन अब उन्हें कम बिक्री का सामना करना पड़ रहा है. हजार तथा पांच सौ के नोट रद्द होने के बाद लोगों के पास नगदी की कमी हो गयी है और इसका सीधा असर मेले में बिक्री पर पड़ा है. आमलोग अभी भी रद्द नोटों को लेकर ही मेले में आ रहे हैं.मालदा के हबिबपुर से आये एक रेस्टोरेंट कारोबारी निर्मल महतो ने बताया है कि हर साल की तरह इस साल भी उन्होंने मेले में अपनी दुकान लगायी है,लेकिन बिक्री नहीं के बराबर है.
आमलोगों के पास पैसे और खासकर खुदरा पैसे की काफी कमी देखी जा रही है.नवद्वीप से पत्थर की सामग्रियों की बिक्री करने आये एक दुकानदार नंद कुमार महंत ने बताया कि पिछले साल उन्होंने चार दिनों में 40 से 50 हजार रूपये की बिक्री की थी. इस साल हालत खराब है. मेले के दूसरे दिन दोपहर होने को है बिक्री नहीं के बराबर है.रायगंज से आये कारोबारी सूरज घोष ने भी कुछ इसी प्रकार की बातें कही.जो लोग मेले में घुमने आये हैं वह भी हिसाब से ही खर्च कर रहे हैं.
इनका कहना है कि पैसे कम हैं,इसलिए सावधानी बरतनी जरूरी है.ऐसे नोटबंदी का फायदा मेले में आये कारोबारियों को भले ही न हो रहा हो लेकिन मंदिर के दानपेटी में हजार तथा पांच सौ के नोट खूब चढ़ रहे हैं. मेला कमेटी के अध्यक्ष मिलन सरकार ने कहा है कि हर साल ही लाखों रूपये का चढ़ावा मिलता है. इस साल ही चढ़ावा चढ़ रहा है. खुदरा पैसे के कारण आमलोगों को चढ़ावा देने में परेशानी ना हो इसलिए दानपेटी में हजार तथा पांच सौ रूपये के नोट भी लेने का निर्णय लिया गया है. बाद में सभी पैसे मंदिर के बैंक खाते में जमा करा देंगे.