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दुर्गा रूप में होती है देवी चौधरानी की पूजा

जलपाईगुड़ी. बैकुंठपुर के राजा दर्पदेव रायकत के जमाने में देवी मंथनी के मंदिर की स्थापना हुई थी. मंथनी देवी असल में मंथना एस्टेट (वर्तमान में बांग्लादेश के रंगपुर में स्थित) की जमींदार जयदुर्गा देवी चौधरानी थीं. जमींदार जयदुर्गा देवी चौधरानी ने संन्यासियों को साथ लेकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध किया था. मंथनी एस्टेट की जमींदार […]

जलपाईगुड़ी. बैकुंठपुर के राजा दर्पदेव रायकत के जमाने में देवी मंथनी के मंदिर की स्थापना हुई थी. मंथनी देवी असल में मंथना एस्टेट (वर्तमान में बांग्लादेश के रंगपुर में स्थित) की जमींदार जयदुर्गा देवी चौधरानी थीं. जमींदार जयदुर्गा देवी चौधरानी ने संन्यासियों को साथ लेकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध किया था. मंथनी एस्टेट की जमींदार बहुत दयालु और प्रजा का ध्यान रखने वाली थीं.

इसीलिए उनकी मृत्यु के बाद उनकी प्रतिमा बनायी और मां दुर्गा के रूप में मंथनी देवी नाम से उनकी पूजा शुरू की. जलपाईगुड़ी शहर से रंधामाली होते हुए जयपुर चाय बागान पार करने के बाद मंथनी हाट है. वहीं पर मां मंथनी देवी का मंदिर है. मंथनी पूजा कमेटी के सदस्य श्यामल ने बताया कि मंथनी देवी इलाके की ग्राम देवी हैं.

पूजा से खुश होकर वह गांव की रक्षा करती हैं. देवी चौधरानी और भवानी पाठक दोनों ही काली के उपासक थे. इसीलिए मां मंथनी देवी के मंदिर के पास काली मंदिर भी है. मंदिर में मां मंथनी दास सिंहासन पर विराजमान हैं. उनके बांये हाथ में फूल हैं और दाहिना हाथ आशीर्वाद मुद्रा में है. देवी लाल पाड़ की सफेद साड़ी धारण करती हैं. उन्हें भोग में दूध-चीनी और खीर चढ़ाई जाती है. मंदिर के पुरोहित सोदुरू राय ने बताया कि दुर्गा पूजा में मंथनी मां के पास बगल में दुर्गा प्रतिमा की स्थापना की जाती है. दुर्गा पूजा से पहले मंदिर और मां मंथनी की प्रतिमा को नया रंग चढ़ाया जाता है.


दुर्गा पूजा के चार दिन षष्ठी से लेकर नवमी तक मंथनी देवी की पूजा मां दुर्गा के रूप में होती है. पहले मां मंथनी देवी की पूजा होती है. इसके बाद दुर्गा प्रतिमा की पूजा शुरू की जाती है. पूजा के चार दिन उन्हें खिचड़ी का भोग चढ़ाया जाता है. चाय बागान के लोग और ग्रामवासी इस पूजा के दौरान आनंद में डूबे रहते हैं. पूजा कमेटी की ओर से मेला भी लगाया जाता है. इस पूजा को देखने के लिए दूर-दूर से ग्रामीण आते हैं. ग्रामवासियों का विश्वास है कि ममतामयी मां जयदुर्गा देवी चौधरानी सभी विपत्तियों से उनकी रक्षा करेंगी.

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