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चाय श्रमिकों का आरोप. बागान मालिक कर रहे खाद्य सुरक्षा कानून का दुरुपयोग, राशन देना किया बंद

सिलीगुड़ी. खाद्य सुरक्षा कानून की आड़ में चाय बागान मालिकों ने चाय श्रमिकों को अपनी ओर से राशन देना बंद कर दिया है. नियमानुसार बागान मजदूरों को मजदूरी के साथ ही राशन में चाय, गेहूं आदि कम कीमत पर बागान मालिकों द्वारा दिया जाना चाहिए. खाद्य सुरक्षा कानून का फायदा उठाते हुए डुवार्स तथा तराई […]

सिलीगुड़ी. खाद्य सुरक्षा कानून की आड़ में चाय बागान मालिकों ने चाय श्रमिकों को अपनी ओर से राशन देना बंद कर दिया है. नियमानुसार बागान मजदूरों को मजदूरी के साथ ही राशन में चाय, गेहूं आदि कम कीमत पर बागान मालिकों द्वारा दिया जाना चाहिए. खाद्य सुरक्षा कानून का फायदा उठाते हुए डुवार्स तथा तराई के कई चाय बागानों में राशन नहीं दिये जाने की शिकायतें मिल रही हैं. इसको लेकर दो दिनों पहले डुवार्स के डायना चाय बागान में चाय श्रमिकों ने जमकर हंगामा किया. प्राप्त जानकारी के अनुसार, खाद्य सुरक्षा कानून के तहत राज्य सरकार दो रुपये किलो की दर पर गेहूं और चावल चाय श्रमिकों को उपलब्ध करवा रही है. चाय बागानों में इसकी डीलरशिप मालिकों को ही दे दी गई है.

आरोप है कि चाय बागान मालिक इस योजना को अपना बताकर चाय श्रमिकों का शोषण कर रहे हैं. अपनी ओर से चाय बागान मालिक जो राशन देते थे उसे बंद कर दिया गया है. मुद्दे पर प्रोग्रेसिव प्लांटेशन वर्कर्स यूनियन (पीपीडब्ल्यूयू) के अध्यक्ष किरण कुमार कालिंदी ने कहा कि बागान मालिक चाय श्रमिकों के शोषण का कोई भी मौका अपने हाथ से नहीं जाने देते. यदि चाय बागान मालिक सरकारी राशन देकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं तो उन्हें राशन मद में अलग से नगद राशि का भुगतान चाय श्रमिकों को करना चाहिए. श्री कालिंदी ने कहा कि इस मुद्दे को लेकर कई बार चाय बागान मालिकों से बातचीत की गई, लेकिन उन्होंने कोई कदम नहीं उठाया. राशन के मद में प्रति महीने छह सौ रुपये अलग से भुगतान करने की मांग श्री कालिंदी ने की. इसको लेकर उन्होंने राज्य सरकार की भी आलोचना की. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार तथा श्रम अधिकारियों की उदासीनता की वजह से ही चाय बागानों में तमाम नियम कानूनों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं. प्लांटेशन लेबर एक्ट 1951 का पूरी तरह से उल्लंघन हो रहा है.

श्री कालिंदी ने इस कानून में संशोधन की मांग की. उन्होंने कहा कि इसके तहत यदि कोई चाय बागान मालिक कानून तोड़ते हैं तो उन्हें मात्र पांच सौ रुपये का जुर्माना भरना पड़ता है. बागान मालिक जानते हैं कि वह मात्र पांच सौ रुपये जुर्माना देकर चाय श्रमिकों का शोषण कर सकते हैं. वर्ष 1951 में जब यह कानून बना होगा, तब पांच सौ रुपये की रकम बड़ी रही होगी. आज ऐसी स्थिति नहीं है.

उन्होंने जुर्माने की रकम पांच सौ के बदले पांच लाख रुपये करने की मांग की. उन्होंने कहा कि चाय बागानों की स्थिति अचानक खराब नहीं हुई है. बागान मालिक काफी वर्षों से श्रमिकों के बकाये का भुगतान नहीं कर रहे हैं. अब बकाये की रकम काफी बड़ी हो गई है. शुरू में ही यदि बागान मालिकों के खिलाफ कार्रवाई कर ली जाती, तो आज स्थिति यहां तक नहीं पहुंचती. श्री कालिंदी ने बागान मालिकों के हाथों राशन डीलरशिप सौंपने का भी विरोध किया.

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