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जीएम क्रॉप्स को वैज्ञानिकों ने दी हरी झंडी

कोलकाता: जेनेटिक्ली मोडिफाइड (जीएम) क्रॉप्स यानी अनुवांशिक रूप से संशोधित फसले जैसे बीटी ब्रिंजल, बीटी कॉटन, बीटी मस्टर्ड, गोल्डेन राइस आदि को लेकर पूरे देश में बहस चल रही है. गुरुवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आइआइएमसी), नयी दिल्ली की ओर से कलकत्ता विश्वविद्यालय के पत्रकारिता व जन संचार विभाग के सहयोग से आयोजित विज्ञान […]

कोलकाता: जेनेटिक्ली मोडिफाइड (जीएम) क्रॉप्स यानी अनुवांशिक रूप से संशोधित फसले जैसे बीटी ब्रिंजल, बीटी कॉटन, बीटी मस्टर्ड, गोल्डेन राइस आदि को लेकर पूरे देश में बहस चल रही है. गुरुवार को भारतीय जन संचार संस्थान (आइआइएमसी), नयी दिल्ली की ओर से कलकत्ता विश्वविद्यालय के पत्रकारिता व जन संचार विभाग के सहयोग से आयोजित विज्ञान संचार और जैव सुरक्षा क्षेत्रीय कार्यशाला में कोलकाता के कृषि वैज्ञानिकों ने जमकर जीएम क्रॉप्स की वकालत की.

केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रलय, यूनाइटेड नेशंस इनवायरमेंट प्रोग्राम व ग्लोबल इनवायरमेंट फैसिलिटी के अधीन आयोजित कार्यशाला में विश्वभारती विश्वविद्यालय के सह उपकुलपति प्रोफेसर स्वपन कुमार दत्ता ने कहा कि जीएम क्रॉप्स सुरक्षित हैं. इनका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं है. भारत की जनसंख्या बढ़ रही है. जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात में फसलों के उत्पादन में वृद्धि करने की जरूरत है. बीटी को लेकर 100 वर्षो से शोध हो रहे हैं. प्रयोगशालाओं व खुले मैदान में भी प्रयोग हुए हैं. कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं दिखा है.

बांग्लादेश के मार्फत कोलकाता के बाजार में भी बीटी ब्रिंजल (अनुवांशिक रूप से संशोधित बैंगन) उपलब्ध हैं. जूट में अनुवांशिक रूप से संशोधन के माध्यम से ज्यादा उत्पादन किया जा सकता है. बीटी कॉटन से उत्पादन बढ़ा है. जीएम बोस इंस्टीच्यूट की प्रोफसर शंपा दास ने कहा कि 2025 तक जैव प्रौद्योगिकी का बाजार 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का होगा. इसमें प्रत्येक वर्ष 30 फीसदी की वृद्धि हो रही है. उन्होंने जीएम क्रॉप्स का पक्ष लिया, लेकिन सतर्क किया कि इन फसलों की सुरक्षा पहलुओं को भी देखने की जरूरत है. खासकर खाद्य पदार्थो में यह देखना होगा कि इनसे फूड एलर्जी तो नहीं हो रही. इनमें इस्तेमाल होनेवाले कीटनाशक कहीं इम्यून सिस्टम को प्रभावित तो नहीं कर रहे. पूरे मामले में विश्व स्वास्थ्य संघ के दिशा-निर्देशों का पालन होना चाहिए. उन्होंने कहा कि भविष्य विज्ञान का ही है. इसका अंध विरोध नहीं किया जाना चाहिए.

कलकत्ता विश्वविद्यालय के सह उपकुलपति प्रो ध्रुवज्योति चट्टोपाध्याय ने कहा कि जैव सुरक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है . साउथ एशियन फोरम फॉर इनवायरमेंट के डॉ दिपायन दे ने जीएम क्रॉप्स के मामले में किसानों को भी जागरूक करने पर जोर दिया. किसानों को इसकी जानकारी होनी चाहिए कि इन फसलों में किस मात्र में उर्वरक या पानी का इस्तेमाल होना चाहिए.
कलकत्ता विश्वविद्यालय के पत्रकारिता और संचार विभाग की डॉ तापती बसु ने भी प्रदूषण व ग्लोबल वार्मिग जैसे मुद्दों को उठाते हुए आमलोगों को सचेत करने की आवश्यकता पर जोर दिया. दूरदर्शन के वरिष्ठ पत्रकार स्नेहाशीष सूर ने वीडियो फिल्म के माध्यम से देश और समाज पर ग्लोबल वार्मिग के कुप्रभाव को रेखांकित किया. आइआइएमसी की प्रिंसिपल समन्वयक प्रोफेसर गीता बम्जइ ने विज्ञान व जैव सुरक्षा से संबंधित पहलुओं की कवरेज में सतर्कता बरतने की अपील करते हुए कहा कि मीडिया को सभी पहलुओं पर दृष्टि डालनी चाहिए तथा जैव सुरक्षा के प्रति लोगों में जागरूकता पैदा किये जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इसी उद्देश्य से देश के विभिन्न शहरों में कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं. दिल्ली और मुंबई में कार्यशाला के आयोजन के बाद अब बेंगलुरु, भोपाल, अहमदाबाद और चंडीगढ़ में कार्यशालाएं आयोजित होंगी.
आइआइएमसी के प्रोफेसर आनंद प्रधान ने कहा कि इस तरह के कार्यशाला के आयोजन का उद्देश्य विज्ञान और जैव सुरक्षा से संबंधित पहलुओं पर गैप को भरना है.
गौरतलब है कि संप्रग सरकार के पूर्व मंत्री जयराम रमेश ने भी बीटी ब्रिंजल को मंजूरी दिलाने का मन बनाया था. इस बारे में लोगों की राय भी ली गयी थी, लेकिन एनजीओ व लोगों के विरोध को देखते हुए इसे टाल दिया गया था. आरोप लगाया गया था कि कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनी के लोगों को लाभ दिलाने के लिए इसकी अनुमति दी जा रही है. अब मोदी सरकार का एक खेमा जीएम क्रॉप्स को बाजार में उतारने के पक्ष में लगा है. हालांकि भाजपा का स्वदेशी खेमा इसका विरोधी है.

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