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उपेक्षित हैं उत्तर बंगाल के आदिवासी  : मंडल

सिलीगुड़ी: हिमालयन अध्यन केंद्र के अध्यापक प्रो रहीम मंडल ने उत्तर बंगाल के आदिवासियों की उपेक्षा का आरोप लगाया है. वह यहां उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित पुनश्चर्या कार्यक्रम में अपने व्याख्यान दे रहे थे. उन्होंने वैश्वीकरण और विमर्श की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि वैश्वीकरण में वर्चस्व की संस्कृति का विकास हुआ है. […]

सिलीगुड़ी: हिमालयन अध्यन केंद्र के अध्यापक प्रो रहीम मंडल ने उत्तर बंगाल के आदिवासियों की उपेक्षा का आरोप लगाया है. वह यहां उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित पुनश्चर्या कार्यक्रम में अपने व्याख्यान दे रहे थे. उन्होंने वैश्वीकरण और विमर्श की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा कि वैश्वीकरण में वर्चस्व की संस्कृति का विकास हुआ है.

जब वर्चस्व की संस्कृति का विकास होता है, तो दूसरों को हाशिये पर धकेलने का काम भी तेज हो जाता है. इसलिए हाशिए के विमर्श की जरूरत और भी बढ़ जाती है. आदिवासी विमर्श की ओर ध्यान खींचते हुए उन्होंने कहा कि इस विमर्श में हर आदिवासी समुदाय की ओर अभी भी लोगों का ध्यान नहीं गया है.

जैसे उत्तर बंगाल के आदिवासी समुदायों में मुंडा, संताली पर ध्यान गया है, पर टोटो, मेज, रावा आदि समुदायों पर साहित्य में कोई काम नहीं हुआ है. इस पहलू पर ध्यान देने की जरूरत है. इसी तरह पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी विमर्श का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि जैसे हम परिवार में रहते हैं और परिवार को रखते हैं, उसी तरह प्रकृति के बीच रहते हुए प्रकृति को संभालना-सहेजना जरूरी है.

आज के समाज में प्रकृति के प्रति लापरवाही विकास नहीं, खोखला विकास है. इस अवसर पर महिला अध्ययन केन्द्र की निदेशक डॉ सुषमा रोहतगी ने लिंगानुपात और स्त्री विमर्श के विविध आयाम विषय पर अपनी बात रखते हुए विभिन्न आंकड़ों के विश्लेषण द्वारा यह चिंता व्यक्त की कि विश्व में महिलाओं की घटती संख्या चिंताजनक है.

न केवल गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या का शिकार बनती है, बल्कि अनदेखी और जांच की वजह से भी बहुत महिलाएं मर जाती हैं. विकास और संतुलन के लिए लिंगानुपात का सही होना आवश्यक है.साहित्य में रचना के स्तर पर इन सब समस्याओं की ओर गंभीरता से ध्यान ले जाना होगा. नए समय में नई सभ्यता सामने आ रही है, साथ ही जीवन की जटिलताएं भी खूब बढ़ी हैं.

इन्हीं जटिलताओं में कोख और गर्भधारण संबंधित विषय पर ध्यान खींचता है. डॉ ज्योतिष चन्द्र बसाक ने किराए की कोख विषय पर अपने विचार रखे. आज के साहित्य में ऐसे मुद्दे उठने शुरू हो गये हैं, क्योंकि साहित्य समय और सभ्यता के गर्भ से ही पैदा होता है. दिल्ली विवि के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो हरिमोहन शर्मा का कहना था कि उत्तर आधुनिक सिद्धान्तों में समुदाय, पर्यावरण और एनजीओ को काफी महत्व मिला है. आधुनिकता का दर्शन है कि सबकी मुक्ति जरूरी है, जबकि उत्तर आधुनिकता विखंडतावाद में विश्वास करती है. आधुनिकता की विचारधारा होती है, जबकि उत्तर आधुनिकता का सिर्फ प्रबंधन (मैनेजमेंट) होता है, विचारधारा नहीं. उत्तर आधुनिकता अस्मिता बोध की बात करती है. दलित-अस्मिता, स्त्री-अस्तित्व आदि समस्याएं अब केवल बोध के स्तर पर ही न रहकर विमर्श का रूप धारण कर चुकी है. आज विमर्श के विविध रूप हैं, पर सभी विमर्शो में सबसे बड़ा विमर्श सत्ता विमर्श है, क्योंकि सारी अस्मिताएं सत्ता में हिस्सेदारी चाहती है. इन विमर्शो के विविध रूप हिन्दी साहित्य में दिखाई पड़ते हैं.

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