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प्रकृति प्रेम के अनूठे राग का नाम है सुखलाल

प्रकृति पार्क के जरिये दे रहे पर्यावरण संरक्षण का संदेश नागराकाटा : वैसे तो प्रकृति के साथ हर व्यक्ति अपनापन महसूस करता है. लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो प्रकृति के लिये ही जीते हैं मरते हैं. उन्हीं लोगों में शुमार हैं भगतपुर चाय बागान के श्रमिक सुखलाल किन्डो. इनकी छह बीघा जमीन है […]

प्रकृति पार्क के जरिये दे रहे पर्यावरण संरक्षण का संदेश

नागराकाटा : वैसे तो प्रकृति के साथ हर व्यक्ति अपनापन महसूस करता है. लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो प्रकृति के लिये ही जीते हैं मरते हैं. उन्हीं लोगों में शुमार हैं भगतपुर चाय बागान के श्रमिक सुखलाल किन्डो. इनकी छह बीघा जमीन है जिसमें इन्होंने विशाल बाग बनाया है. इन्होंने इस बाग को प्रकृति पार्क का नाम दिया है.
इस बाग में रंग विरंगे फूलों के अलावा विभिन्न किस्मों के फलों के पेड़ हैं. साल और सागौन के पेड़ों के बीच नासपाती और अंगूर की लतायें इस प्रकृति पार्क की शोभा बढ़ा रही हैं. इनके अलावा इस बाग में अनगिनत औषधीय पौधे भी हैं. अपने बाग की देखरेख करने वाले सुखलाल किन्डो की उम्र यही 50 की होगी. इनकी सबसे बड़ी विशेषता है कि ये पेड़-पौधों का अपनी संतान की तरह लालन-पालन करते हैं. इन्होंने विवाह तक नहीं किया. बाग के पेड़-पौधे और उन पेड़ों पर बैठने वाले विभिन्न प्रजाति के पक्षी ही इनका परिवार है. बाग के बीच में ही इनकी एक छोटी सी झोपड़ी है.
उल्लेखनीय है कि हरे भरे चाय बागानों से घिरे नागराकाटा के निकट राष्ट्रीय राजमार्ग 31सी के किनारे जहां नवोदय विद्यालय का स्थायी कैम्पस बन रहा है उसी के पास है सुखलाल का प्रकृति पार्क. खेतों की मेड़ होते हुए सुखलाल के बाग में पहुंचा जा सकता है. पिछले 19 साल से वह अपनी छह बीघा जमीन में इन्होंने इस बाग को विकसित किया है.
चाय बागान में श्रमिक का काम कर जो आय होती है उसका अधिकतर हिस्सा वह अपने प्रकृति पार्क पर ही खर्च कर देते हैं. इनके बाग में आम, जामुन, लीची, कटहल, अंगूर, अनार, अन्नानास, ईंख, शिमला बेर, लटका जैसे सैकड़ों किस्म के फलों के पेड़ हैं. इनके अलावा देवदार, झाउ, मनी प्लांट, गम्हारी, साल, सागौन, चाप, चिकराशि, कालमेघ, सजना, तेजपाता, रुद्राक्ष जैसे कीमती और औषधीय पेड़ हैं.
सुखलाल शाक-सब्जी भी लगाते हैं. सुखलाल ने बताया कि वह वर्ष 2002 से यहां रह रहे हैं. इनकी झोपड़ी में एक कलाकार की छवि दिखती है. पेड़-पौधों से इतना गहरा लगाव है कि किसी को उन्हें छूने तक नहीं देते. इनका कहना है कि इन पेड़-पौधों की देखरेख करते हुए कब समय बीत गया उन्हें पता नहीं चला. अब यही इनका परिवार है. चाय बागान में काम करने के अलावा इनका खाली समय इसी बाग में ही बीतता है.
सुखलाल को सबसे बड़ी तकलीफ एक बात को लेकर है और वह कि आज तक जिस पुरखों की जमीन पर वह शुरु से रहते आ रहे हैं उसका उनके नाम से पट्टा नहीं मिला. इस बाग का नाम प्रकृति पार्क रखा है. इसी नाम से एक साइनबोर्ड भी बाग में लगा रखा है. सुखलाल की इलाके में ख्याति इतनी ज्यादा है कि लोगों ने इस इलाके का नाम सुखलाल बस्ती दिया है.
वहीं इनके बड़े भाई बलिराम किन्डो और मामा गंगा उरांव रहते हैं. इन्होंने बताया कि किसी को भी पेड़ों को सुखलाल छूने नहीं देते. पेड़ों के फल उन्हें भी देते हैं. लेकिन ज्यादा मांगने पर कहते हैं, सब दे दूंगा तो पक्षी क्या खायेंगे. उनके लिये भी मुझे सोचना है. सुलकापाड़ा के युवक मकलेश रहमान और कृष्ण उरांव ने कहा कि सुखलाल के बाग में दो पल बिताने पर मन को बड़ी शांति मिलती है. इसलिये यहां बार बार आने को मन करता है.

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