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सिलीगुड़ी : डेढ़ लाख गोरखाओं के अस्तित्व पर संकट

सिलीगुड़ी : असम में एनआरसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट जारी होने के बाद पूरे देश की राजनीति में उबाल है. हाल ही में एनआरसी ने नागरिकता को लेकर असम में ड्राफ्ट जारी किया है. जिसमें करीब 40 लोगों की नागरिकता पर सवालिया निशान लग गया है. माना जा रहा है कि यह सभी अवैध घुसपैठिए हैं. […]

सिलीगुड़ी : असम में एनआरसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट जारी होने के बाद पूरे देश की राजनीति में उबाल है. हाल ही में एनआरसी ने नागरिकता को लेकर असम में ड्राफ्ट जारी किया है. जिसमें करीब 40 लोगों की नागरिकता पर सवालिया निशान लग गया है. माना जा रहा है कि यह सभी अवैध घुसपैठिए हैं.
बांग्लादेश से यह लोग भारतीय सीमा क्षेत्र में प्रवेश कर इतने दिनों से रह रहे हैं. इसको लेकर केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा नीत एनडीए के साथ तमाम विपक्षी पार्टियों के बीच वाकयुद्ध जारी है. खासकर राज्य की मुख्यमंत्री तथा तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इस मामले को लेकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इस बीच असम में एनआरसी की रिपोर्ट जारी होने के बाद दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के गोरखाओं में चिंता की लकीर देखी जा रही है. दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के गोरखा नेताओं ने राज्य में किसी भी प्रकार के एनआरसी लागू करने का विरोध किया है. इस मुद्दे को लेकर सिलीगुड़ी से लेकर पहाड़ तक आक्रोश है. सिलीगुड़ी में जहां तृणमूल कांग्रेस ने काला दिवस का पालन किया,वहीं पहाड़ के नेता केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.
तृणमूल कांग्रेस ने काला दिवस मनाया. इसको लेकर शहर में एक रैली भी निकाली गयी. इसमें तृणमूल कांग्रेस के तमाम आला नेता शामिल हुए. इधर,असम में जो रिपोर्ट जारी की गयी है उसमें डेढ़ लाख से अधिक गोरखाओं की नागरिकता भी रद्द होने के कगार पर है. पहले गोजमुमो नेता विनय तमांग ने असम में एनआरसी रिपोर्ट का विरोध किया. उसके बाद भूमिगत गोजमुमो सुप्रीमो बिमल गुरुंग ने भी एनआरसी रिपोर्ट को खारिज कर दिया है.
उन्होंने असम के सभी गोरखाओं का नाम भारतीय नागरिक की सूची में शामिल करने की मांग की है. इसको लेकर उन्होंने केंद्र तथा असम सरकार से उचित कदम उठाने की मांग की है. श्री गुरुंग ने कहा है कि 25 मार्च 1971 से पहले आए असम के गोरखाओं की नागरिकता रद्द नहीं की जानी चाहिए. अगर असम के साथ-साथ पश्चिम बंगाल में भी एनआरसी की आड़ में गोरखाओं की नागरिकता रद्द करने की साजिश रची जाएगी तो वह चुप नहीं बैठेंगे.
बांग्लादेशियों को बसाने की कोशिश का आरोप
उन्होंने राज्य सरकार पर भी निशाना साधा है. श्री गुरुंग ने अपने बयान में कहा है कि बांग्लादेशी घुसपैठिए की जगह देश में नहीं है. इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार जो चाहे करें. लेकिन एनआरसी की आड़ में गोरखा तथा उत्तर बंगाल के अन्य जाति के लोगों के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए.
उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि असम के अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के साथ-साथ उत्तर बंगाल में विभिन्न स्थानों पर बसाने की कोशिश होगी. ऐसे तत्वों की पहचान होनी चाहिए. किसी भी असामाजिक तत्व तथा देश विरोधी लोगों को यहां बसाने का विरोध किया जाएगा. यदि असम के बांग्लादेशियों को यहां बसाया जाता है तो इससे देश की सुरक्षा को भी गंभीर खतरा पैदा होगा. ऐसे भी दार्जिलिंग तथा उत्तर बंगाल का इलाका काफी संवेदनशील है.
पहले से ही जारी है पहचान की लड़ाई
श्री गुरुंग ने किसी अज्ञात स्थान से एक प्रेस बयान जारी कर बताया है कि दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के गोरखा पहले से ही पहचान की लड़ाई लड़ रहे हैं. सिर्फ गोरखा ही नहीं बल्कि उत्तर बंगाल के कामतापुरी, आदिवासी मेच, नमसुद्र एवं मतुआ समुदाय के साथ भी अन्याय हो रहा है. एनआरसी की आड़ में यदि इन जाति के लोगों की नागरिकता रद्द करने की कोई कोशिश होती है तो वह चुप नहीं बैठेंगे और इसका जोरदार विरोध करेंगे.

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