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रायगंज : बीड़ी बनाकर आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं

इस पेशे में कुशल हैं दोमहना गांव की औरतें बेहतर घर-वर के लिये माना जाता है आवश्यक गुण रायगंज : उत्तर दिनाजपुर जिले का सदर रायगंज प्रखंड के सरियाबाद गांव में बीड़ी ने कुटीर उद्योग का रुप ले लिया है. यहां की महिलाएं बीड़ी बनाकर आत्मनिर्भर बनीं हैं. इनकी कुशलता का मान्यता यहां तक है […]

इस पेशे में कुशल हैं दोमहना गांव की औरतें

बेहतर घर-वर के लिये माना जाता है आवश्यक गुण

रायगंज : उत्तर दिनाजपुर जिले का सदर रायगंज प्रखंड के सरियाबाद गांव में बीड़ी ने कुटीर उद्योग का रुप ले लिया है. यहां की महिलाएं बीड़ी बनाकर आत्मनिर्भर बनीं हैं. इनकी कुशलता का मान्यता यहां तक है कि जो युवती बीड़ी बनाने में निपुण होंगी, उन्हें अच्छा घर-वर मिलता है. इसी उम्मीद में कम उम्र की लड़कियां भी इस हूनर को सीख रही हैं.

हालांकि ये महिलाएं जानती हैं कि तंबाकू का जहर उनके और उनकी गोद में खेलने वाले बच्चे के लिये घातक है. फिर भी विकल्प रोजगार के अभाव में इनके लिये यह अनिवार्य कर्म बन गया है. अक्सर महिलाएं अपने नवजात को पीठ पर बांधकर बीड़ी बनाने का काम करती हैं. केवल उत्तर दिनाजपुर ही नहीं बल्कि मुर्शिदाबाद, मालदा के राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे बसे गांवों में इस तरह का नजारा देखने को अक्सर मिल जाया करता है.

जानकारी के अनुसार सरियाबाद गांव की अधिकतर महिलाएं बीड़ी बनाकर ही परिवार का भरण पोषण करती हैं. घर की कम उम्र की बेटियां भी इस काम में बड़ों का हाथ बंटाती हैं. परिवार के आर्थिक अभाव के चलते ये लड़कियां पढ़ाई लिखाई छोड़कर इस काम को सीख रही हैं.

उत्तर दिनाजपुर जिले के दोमहना गांव की महिलाओं में यह विश्वास भी घर कर गया है कि जो बीड़ी बांधने में निपुण हैं उन्हें अच्छा घर-वर मिलने में जरा भी कठिनाई नहीं होती है. कई छात्राएं बीड़ी बंधाई से ही अपनी पढ़ाई का खर्च निकालती हैं. ये महिलाएं जाने अनजाने अपने और अपने शिशु के शरीर में तंबाकू का जहर ले रही हैं. लेकिन उन्हें इसके प्रति सचेत कौन करेगा? कौन यह दायित्व पालन करेगा? यह सवाल अनुत्तरित रह जाता है.

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