जलपाईगुड़ी: डुआर्स-तराई गोरखा टास्क फोर्स के चेयरमैन विनोद घतानी ने उपेक्षा का आरोप लगाया है. उनकी शिकायत है कि टास्क फोर्स को उत्तर बंगाल विकास विभाग के मातहत रह कर काम करना पड़ता है. इस संस्था के लिए अभी तक एनबीडीडी (उत्तर बंगाल विकास विभाग) में कोई कमरा भी नहीं मिला है. न ही इसका […]
जलपाईगुड़ी: डुआर्स-तराई गोरखा टास्क फोर्स के चेयरमैन विनोद घतानी ने उपेक्षा का आरोप लगाया है. उनकी शिकायत है कि टास्क फोर्स को उत्तर बंगाल विकास विभाग के मातहत रह कर काम करना पड़ता है. इस संस्था के लिए अभी तक एनबीडीडी (उत्तर बंगाल विकास विभाग) में कोई कमरा भी नहीं मिला है. न ही इसका कोई अपना साइन बोर्ड है.
साल में इसका बजट आवंटन मात्र पांच करोड़ रुपये हैं. इतनी कम राशि में नक्सलबाड़ी से लेकर संकोश तक के गोरखा समुदाय के हित में विकास करना पड़ रहा है. हालांकि उन्होंने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के प्रति आभार भी जताया है कि वे गोरखा समुदाय के विकास के प्रति गंभीर हैं. इसीलिए उन्होंने इस टास्क फोर्स का गठन भी किया है. लेकिन अभी भी हमारे सामने बुनियादी ढांचे की सुविधाओं की भारी कमी है.
इस बीच, टास्क फोर्स की देखरेख में गोरखाओं के लिए 56 घर बनाने का काम शुरू हो गया है. मुख्यमंत्री ने गत 22 नवंबर को उत्तरकन्या में बैठक करके और 48 नये घरों की परियोजनाओं को मंजूर किया है. प्रति घर तीन लाख 28 हजार रुपये की लागत आयेगी. गोरखा संस्कृति के संरक्षण के लिए 10 कम्युनिटी हॉल का निर्माण किया जा रहा है. प्रत्येक के लिए 15 लाख रुपये निर्धारित किये गये हैं.
चार कम्युनिटी हॉल सिलीगुड़ी तराई इलाके में और बाकी जलपाईगुड़ी के उदलाबाड़ी, सामसिंग, नागराकाटा और अलीपुरद्वार जिले के कुमारग्राम में बनाये जायेंगे. इनके अलावा तराई इलाके में 10 और डुवार्स क्षेत्र में 30 गहरे नलकूप बैठाने का काम अंतिम चरण में है.
विनोद घतानी ने कहा कि जीटीए गठन के बाद डुआर्स और तराई में किसी तरह का विकास विमल गुरुंग ने नहीं किया, जबकि राज्य सरकार ने छह साल में ही बहुत कुछ कर दिखाया है. उन्होंने बताया कि टास्क फोर्स में चेयरमैन और वाइस चेयरमैन के अलावा चार सदस्य हैं. चार में से दो सदस्यों को विमल गुरुंग का सहयोगी बताते हुए उन्हें पद से हटा दिया गया है.
अपने ही खर्च पर करनी होती है यात्रा
उन्होंने बताया कि पहाड़ पर विभिन्न गोरखा जनजातियों के लिए पृथक विकास बोर्ड बनाये गये हैं, जिन्हें केवल एक ही जनजाति के लिए काम करना होता है. लेकिन गोरखा टास्क फोर्स को सभी जनजातियों और उप-जातियों के लिए इसी छोटी सी राशि से काम करना होता है. यह बड़ा ही चुनौतीपूर्ण कार्य है. उन्होंने बताया कि टास्क फोर्स विभिन्न योजनाएं तैयार करके एनबीडीडी में जमा करता है. वहीं से डीपीआर मंजूर होकर राशि आवंटित की जाती है. चेयरमैन को अपने ही खर्च पर नक्सलबाड़ी से संकोश तक की यात्रा करनी होती है.
न कोई वाहन, न ही बैंक खाता: विनोद घतानी ने बताया कि अगले साल फरवरी में गोरखा टास्क फोर्स के गठन को एक साल पूरा हो जायेगा. इस का उद्देश्य दार्जिलिंग जिले से लेकर कूचबिहार तक तराई व डुआर्स के गोरखा समुदाय के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए काम करना है. हालांकि आबादी के हिसाब से साल में मिलने वाले पांच करोड़ रुपये बहुत कम है. संस्था का अपना कोई वाहन भी नहीं है और न ही बैंक खाता है.