दार्जिलिंग से लौटकर विपिन राय
दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड की मांग को लेकर जारी ताजा आंदोलन के 50 दिन से अधिक हो गये हैं, लेकिन इस आंदोलन की स्थिति जो शुरू में थी, वही आज भी बनी हुई है. पूरा पर्वतीय क्षेत्र 50 दिनों से भी अधिक समय से बंद है. काम-धंधा पूरी तरह चौपट हो गया है और अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है. उसके बाद भी आंदोलन के परिणाम की दिशा में एक इंच की भी प्रगति नहीं हुई है.
राज्य सरकार जहां किसी भी कीमत पर अलग गोरखालैंड राज्य के पक्ष में नहीं है, वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार की चुप्पी से भी पूरे पहाड़वासी आवाक हैं. यहां के लोगों में भारी निराशा एवं गुस्से का माहौल है. ऐसी परिस्थिति में दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में हर दिन ही रैलियों का दौर जारी है. दार्जिलिंग, कालिम्पोंग, कर्सियांग, मिरिक आदि प्रमुख शहरों के अलावा जहां कहीं भी चले जायें, आपको अलग गोरखालैंड मांग को लेकर रैलियां निकलती दिख जायेंगी. आंधी-तूफान तथा बारिश में भी गोरखालैंड समर्थक लगातार रैली निकाल रहे हैं. इन रैलियों में न्याय देउ, न्याय देउ हमीलाइ न्याय देउ….की आवाज गूंजती रहती है. हिंदी में इसका मतलब है न्याय दो, न्याय दो, हम सभी को न्याय दो. दरअसल पहाड़ पर आंदोलन की स्थिति ऐसी हो गयी है कि किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि आगे क्या करना है.
राज्य सरकार के निशाने पर आंदोलन की अगुवायी कर रहे गोजमुमो के तमाम आला नेता हैं. पहाड़ पर भले ही इन लोगों की गिरफ्तारी नहीं हो रही है, लेकिन सिलीगुड़ी आदि क्षेत्र में इनके पहुंचते ही पुलिस इन्हें गिरफ्तार कर रही है. गोजमुमो नेताओं को दार्जिलिंग में भी अपनी गिरफ्तारी का डर सता रहा है. यही वजह है कि गोजमुमो के बड़े नेताओं को खुलकर सामने आते नहीं देखा जा रहा है. हाल ही में सिलीगुड़ी में गोजमुमो नेता नर्बू लामा तथा जीटीए के पूर्व सभासद की गिरफ्तारी हुई है. इससे गोजमुमो के अन्य नेता डरे हुए हैं.
स्वाभाविक रूप से पहाड़ पर यह आंदोलन एक तरह से नेतृत्वहीन हो गया है. तमाम गली-मुहल्लों में वहां के स्थानीय गोजमुमो नेताओं की देखरेख में रैलियां निकाली जा रही हैं. रैली में शामिल लोग इन दिनों राज्य सरकार के खिलाफ कम, बल्कि केंद्र सरकार के खिलाफ अधिक नारे लगा रहे हैं. जब आंदोलनकारियों पर पुलिस फायरिंग हुई थी, तब सभी का गुस्सा राज्य सरकार के खिलाफ अधिक था. सबको यह उम्मीद थी कि केंद्र सरकार इस मामले में कोई न कोई दखल देगी और समस्या का समाधान हो जायेगा. अब ऐसे लोगों की उम्मीद टूटने लगी है. केंद्र सरकार ने इस पूरे मामले में चुप्पी साध रखी है. यही वजह है कि आंदोलनकारी अब राज्य सरकार के बदले केंद्र को अपना निशाना बना रहे हैं.
आंदोलन के दिशाहीन होने की संभावना
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, पहाड़ पर अलग गोरखालैंड राज्य के लिए जारी आंदोलन के दिशाहीन होने की संभावना है. 50 दिनों से भी अधिक समय से बेमियादी बंद जारी है. नौ आंदोलनकारी अब तक मारे जा चुके हैं, जबकि दर्जनों वाहन आग के हवाले कर दिये गये हैं. सरकारी संपत्ति का भी करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है. उसके बाद भी आंदोलन का लाभ कुछ भी नहीं हुआ. केंद्र तथा राज्य सरकार ने अब तक बातचीत की पहल तक शुरू नहीं की. ऐसे में गोरखालैंड राज्य का निर्माण काफी दूर की कौड़ी है.
राज्य ने आंदोलन का दमन किया
कर्सियांग में एक रैली की अगुवायी कर रहे गोजमुमो के नेता धीरेंद्र खाती ने कहा है कि राज्य सरकार ने जिस प्रकार से आंदोलन का दमन किया, उससे केंद्र सरकार से न्याय की उम्मीद थी, लेकिन केंद्र सरकार भी चुप बैठी हुई है. इसीलिए केंद्र सरकार से न्याय दो, न्याय दो की मांग की जा रही है. इस रैली में शामिल नारी मोरचा की नेता रितू रोका ने भी कुछ ऐसी ही बातें कहीं. रितू रोका का कहना है कि राज्य सरकार से उन्हें न्याय की कोई उम्मीद नहीं है. राज्य की पुलिस पहले ही नौ आंदोलनकारियों को मार चुकी है. ऐसे में भला उनसे न्याय की उम्मीद क्या रखना. उन्हें केंद्र सरकार से न्याय की उम्मीद थी. अब केंद्र सरकार भी चुप बैठी हुई है. उन्होंने दार्जिलिंग के भाजपा सांसद तथा केंद्रीय मंत्री एसएस अहलुवालिया की चुप्पी पर भी आश्चर्य व्यक्त किया.
अहलुवालिया के प्रति नाराजगी
श्री अहलुवालिया के प्रति नाराजगी पूरे पहाड़ पर दिख रही है. गोजमुमो एनडीए का घटक दल है. इसलिए गोजमुमो समर्थक दबी जुबान में अहलुवालिया पर हमला बोल रहे हैं. हालांकि गोजमुमो में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो श्री अहलुवालिया से इस्तीफा चाहते हैं. विपक्ष भी अहलुवालिया के प्रति हमलावर है. कर्सियांग में गोजमुमो तथा गोरामुमो द्वारा बेमियादी बंद को सफल बनाने के लिए अलग-अलग पिकेटिंग की जा रही है. इसी पिकेटिंग के दौरान कर्सियांग के गोरामुमो नेता हिम्मत राई ने भी सांसद श्री अहलुवालिया पर हमला बोला. श्री राई ने कहा कि पुलिस फायरिंग में नौ लोगों के मारे जाने के बाद भी सांसद आखिर कहां हैं. उन्हें पहाड़ के लोगों ने गोरखालैंड के नाम पर वोट दिया है. अब वह जीत कर चुपचाप बैठे हुए हैं. श्री राई ने भाजपा सांसद से इस्तीफे की मांग की. गोजमुमो नेता विनय तामांग भले ही श्री अहलुवालिया का इस्तीफा नहीं मांग रहे हों, लेकिन उनकी भूमिका से वह भी अपनी नाराजगी नहीं छिपा पा रहे हैं. पातलेवास में एक बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि श्री अहलुवालिया गोरखालैंड के मुद्दे पर यहां से चुनाव जीते हैं. पहाड़ के लोगों ने अलग राज्य के लिए उनको वोट देकर सांसद बनाया है. उन्हें यहां के लोगों के लोगों की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए. एनसीपी के जिला अध्यक्ष फैजल अहमद ने भी श्री अहलुवालिया के इस्तीफे की मांग की है. उनका कहना है कि भाजपा सांसद इस्तीफा दें और दार्जिलिंग में फिर से चुनाव हो. इसके साथ ही उन्होंने मोरचा से स्थानीय किसी व्यक्ति को उम्मीदवार बनाने की मांग की. उनका कहना है कि यदि दार्जिलिंग का कोई व्यक्ति सांसद बनेगा, तो वह कम से कम गोरखालैंड के मामले को संसद में तो उठायेगा. बाहरी लोगों को जीता कर भेजने का क्या लाभ होता है.