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दुर्गापुर दुष्कर्म मामला : तृणमूल ने अपराजिता विधेयक को लेकर भाजपा को घेरा

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर छिड़ा नया विवाद

महिलाओं की सुरक्षा को लेकर छिड़ा नया विवाद कोलकाता. दुर्गापुर के एक निजी मेडिकल कॉलेज में एक छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने फिर से महिलाओं की सुरक्षा और लंबित ‘अपराजिता विधेयक’ को सुर्खियों में ला दिया है. भाजपा ने इस घटना को लेकर राज्य सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर हमला किया है, जबकि तृणमूल कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. तृणमूल का आरोप है कि मोदी सरकार ने ‘अपराजिता एंटी रेप बिल’ को एक साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद लागू नहीं किया, जिससे अपराधियों को खुली छूट मिलने जैसा संदेश जाता है. पिछले साल आठ अगस्त को कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक जूनियर महिला चिकित्सक से दुष्कर्म और हत्या की घटना ने पूरे राज्य में विरोध की लहर दौड़ा दी थी. 14 अगस्त को पूरे बंगाल में रात भर धरना आयोजित किया गया, जिसमें डॉक्टरों ने भी भाग लिया था. इस घटना के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तृणमूल छात्र परिषद के मंच से राज्य में महिलाओं की सुरक्षा के लिए नया कानून लाने की घोषणा की. सितंबर में विशेष विधानसभा सत्र बुलाकर ‘अपराजिता (महिला अधिकार संरक्षण) विधेयक 2025’ पारित किया गया. विधेयक को राज्यपाल डॉ सीवी आनंद बोस के पास मंजूरी के लिए भेजा गया. राज्यपाल ने इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पास भेजा. राष्ट्रपति ने जुलाई में इसे राज्य सरकार के पास सवाल उठाते हुए वापस भेजा, जिसमें पूछा गया कि देश में पहले से ही दुष्कर्म और हत्या के लिए कानून मौजूद हैं, तो नया कानून बनाने की आवश्यकता क्यों है. विधेयक फिलहाल विधानसभा से राज्य सरकार के मुख्यालय लौट गया है और राजनीतिक व कानूनी प्रक्रिया जारी है. इस विवाद का तत्कालिक संदर्भ 16 दिसंबर, 2012 की दिल्ली की निर्भया घटना से भी जुड़ा है. उस समय बस में एक युवती से बेरहमी से दुष्कर्म और हत्या की गयी थी, जिसके विरोध में देशभर में जनाक्रोश फैला था. तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह सरकार ने न्यायमूर्ति जेएस वर्मा समिति की रिपोर्ट के आधार पर ‘निर्भया विधेयक’ को संसद में पारित कराया था. तृणमूल ने दुर्गापुर की घटना के बाद यह सवाल फिर से उठाया है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए राज्य और केंद्र स्तर पर कानून पर्याप्त हैं या नहीं. अपराजिता विधेयक इस दिशा में एक नयी पहल के रूप में पेश किया गया था, लेकिन इसके लागू होने में विलंब और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप ने इसे फिर से विवाद का विषय बना दिया है.

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