कोलकाता.
राज्य सरकार पर आरोप है कि उसने दार्जिलिंग की पहाड़ियों में वर्ष 2011 से लगातार घटते वन क्षेत्र को लेकर केंद्र सरकार की चेतावनी की अनदेखी की. इस बीच, हाल ही में हुई भारी वर्षा और भूस्खलन के बाद इस क्षेत्र में पारिस्थितिक असंतुलन को लेकर राज्य सरकार पर सवाल और गहरे हो गये हैं. विपक्षी दलों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा है कि अनियंत्रित निर्माण और रियल एस्टेट गतिविधियों के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई ने दार्जिलिंग की संवेदनशील पारिस्थितिकी को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. वन सर्वेक्षण विभाग की वर्ष 2023 की नवीनतम रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि दार्जिलिंग जिले में वन क्षेत्र में तेजी से कमी दर्ज की गयी है. रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2011 में जहां जिले का कुल वन क्षेत्र लगभग 2,289 वर्ग किलोमीटर था, वहीं वर्ष 2023 में यह घटकर लगभग 1,402 वर्ग किलोमीटर रह गया. इस अवधि में वन क्षेत्र में लगभग 31 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है.रिपोर्ट में बताया गया है कि वन क्षेत्र में यह कमी सभी श्रेणियों- अत्यंत घना वन क्षेत्र, मध्यम घना वन और खुला वन क्षेत्र में दर्ज की गयी है. अत्यंत घने वन क्षेत्र में सबसे अधिक गिरावट आयी है, जो वर्ष 2011 की तुलना में लगभग आधा रह गया है. पर्यावरणविदों का कहना है कि यह गिरावट केवल प्राकृतिक कारणों से नहीं, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और अंधाधुंध विकास नीति का परिणाम है.
विशेषज्ञों ने चेताया : वन संरक्षण के लिए ठोस कदम नहीं उठाये गये, तो दार्जिलिंग की पारिस्थितिकी को हो सकती है काफी क्षतिविशेषज्ञों ने चेताया है कि यदि राज्य सरकार ने वन संरक्षण को लेकर ठोस कदम नहीं उठाये गये, तो आने वाले वर्षों में दार्जिलिंग की पारिस्थितिकी को अपूरणीय क्षति हो सकती है. उनका कहना है कि पहाड़ी इलाकों में निर्माण गतिविधियों पर नियंत्रण और वनों की पुनर्स्थापना अब तत्काल प्राथमिकता होनी चाहिए.
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