कोलकाता.
सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद कोलकाता और जादवपुर विश्वविद्यालय समेत राज्य के छह विश्वविद्यालयों में स्थायी कुलपतियों की नियुक्ति अभी तक नहीं हो पायी है. नामों की सूची को लेकर नयी प्रशासनिक जटिलता पैदा हो गयी है. उच्च शिक्षा विभाग की ओर से फैसले की एक प्रति राजभवन भेजी गयी थी, लेकिन राजभवन ने फाइल लौटाकर सवाल उठाया है कि जिन छह लोगों की सिफारिश की गयी थी, उनके नाम क्यों नहीं भेजे गये? उच्च शिक्षा विभाग ने साफ कहा कि नामों की सूची भेजना उनकी जिम्मेदारी नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय को सूची सीधे राजभवन भेजनी थी. जटिलता पैदा होने से विश्वविद्यालयों की प्रशासनिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाने का खतरा पैदा हो गया है. सबसे ज्यादा अनिश्चितता कलकत्ता और जादवपुर विश्वविद्यालयों में बनी हुई है. शोध परियोजनाएं और प्रशासनिक निर्णय लगभग ठप हो गये हैं.कलकत्ता विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कई अंतरराष्ट्रीय परियोजनाएं और शोध निधि विदेशों से आती हैं. लेकिन अगर कोई स्थायी नेतृत्व नहीं होगा, तो इस बात को लेकर अनिश्चितता बढ़ती जा रही है कि वे परियोजनाएं आयेंगी भी या नहीं. जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सलीम बख्स मंडल ने भी रोष व्यक्त किया और कहा कि जादवपुर जैसे संस्थान में इतने लंबे समय तक कुलपति का नहीं होना अकादमिक छवि के अनुरूप नहीं है. कई प्रशासनिक फाइलें अनसुलझी पड़ी हैं. शीर्ष अधिकारियों को जल्द ही कोई निर्णय लेना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का भी पालन नहींशिक्षा जगत का मानना है कि कुलपति की नियुक्ति को लेकर गतिरोध जितना लंबा चलेगा, राज्य की उच्च शिक्षा उतनी ही संकटग्रस्त होती जायेगी. विदेशी सहयोग, शोध अनुदान, नयी परियोजनाएं, ये सब संस्थान के स्थायी नेतृत्व और प्रशासनिक स्थिरता पर निर्भर करते हैं. अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल नहीं हुआ, तो भविष्य में राज्य के विश्वविद्यालयों की अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थिति और भी कमजोर हो सकती है.
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