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आयोग से टकराव: चार अधिकारियों को निलंबित करने से राज्य सरकार का इनकार

राज्य सरकार ने सोमवार को निर्वाचन आयोग को सूचित किया कि उसने मतदाता सूची तैयार करने में ‘अनियमितताएं’ करने के लिए पहचाने गये चार अधिकारियों में से दो को सक्रिय चुनाव ड्यूटी से हटा दिया है, लेकिन चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार उन्हें निलंबित नहीं किया है.

चार में से दो अधिकारियों को चुनाव ड्यूटी से हटाया

मुख्य सचिव ने कहा : ‘ईमानदार एवं सक्षम’ अधिकारियों को दंडित करना जरूरत से ज्यादा कठोर कदम होगा

संवाददाता, कोलकाता

राज्य सरकार ने सोमवार को निर्वाचन आयोग को सूचित किया कि उसने मतदाता सूची तैयार करने में ‘अनियमितताएं’ करने के लिए पहचाने गये चार अधिकारियों में से दो को सक्रिय चुनाव ड्यूटी से हटा दिया है, लेकिन चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार उन्हें निलंबित नहीं किया है. राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत ने भारत निर्वाचन आयोग (इसीआइ) को लिखे पत्र में कहा कि ‘लगातार ईमानदारी और क्षमता’ का प्रदर्शन करने वाले राज्य सरकार के किसी अधिकारी के खिलाफ अगर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है, तो वह बहुत अधिक कठोर मानी जायेगी. पंत ने पत्र में कहा कि राज्य सरकार ने निर्वाचन आयोग के पूर्व निर्देशानुसार संबंधित अधिकारियों को निलंबित करने के बजाय उन्हें निर्वाचक पुनरीक्षण और चुनाव संबंधी ड्यूटी से हटा दिया. मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य ने इस मुद्दे की आंतरिक जांच शुरू कर दी है, साथ ही उक्त प्रक्रिया के संचालन को नियंत्रित करने वाली मौजूदा प्रक्रियाओं और कार्यप्रणालियों की गहन समीक्षा भी की जा रही है.

गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने सबसे पहले पांच अगस्त को राज्य को पत्र देकर कार्रवाई का निर्देश दिया. बाद में, आयोग ने आठ अगस्त को एक और पत्र भेजा. दूसरे पत्र में, आयोग ने राज्य से 72 घंटों के भीतर जवाब देने को कहा था. राज्य के मुख्य सचिव ने आयोग के आदेश पर जवाब तय समय यानी सोमवार दोपहर तीन बजे दो घंटे पहले ही भेज दिया था. निर्वाचन आयोग ने चार अधिकारियों को निलंबित करने और उनके खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज करने का आदेश दिया था. आयोग को भेजे पत्र में मुख्य सचिव ने लिखा है कि सरकारी अधिकारियों को अपने कार्यस्थल पर कई तरह के कर्तव्यों का निर्वहन करना होता है. इसके अलावा, उनके पास चुनाव संबंधी कार्यों की भी जिम्मेदारी होती है, जिसे एक निश्चित समय के भीतर पूरा करना होता है. ऐसे में, कई मामलों में अधिकारी अपने कार्यालय के अन्य अधिकारियों को कुछ जिम्मेदारियां दे देते हैं. ऐसे में, अगर बिना विस्तृत जांच के कोई निर्णय लिया जाता है, तो यह उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो जायेगी. ऐसा फैसला न सिर्फ उन अधिकारियों को, बल्कि आम तौर पर सरकारी अधिकारियों को भी निराश कर सकता है. इसलिए, शुरुआती कदम के तौर पर, राज्य ने आयोग को सूचित किया है कि एक एइआरओ और एक डेटा एंट्री ऑपरेटर को फिलहाल चुनाव ड्यूटी से हटाया जा रहा है.

दो इआरओ व दो एइआरओ पर है मतदाता सूची में धांधली का आरोप

निर्वाचन आयोग ने पांच अगस्त को चार अधिकारियों- दो निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (इआरओ) और दो सहायक निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (एइआरओ) और एक अस्थायी डेटा एंट्री ऑपरेटर को निलंबित करने के अपने फैसले की घोषणा की थी. इन पर दक्षिण 24 परगना के बारुईपुर पूर्व और पूर्व मेदिनीपुर के मोयना विधानसभा क्षेत्र में मतदाता सूची तैयार करते समय कथित रूप से अनियमितताएं करने का आरोप था. चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव को सभी आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया तथा जल्द से जल्द कार्रवाई रिपोर्ट मांगी. अधिकारियों में देबोत्तम दत्ता चौधरी और बिप्लब सरकार पश्चिम बंगाल लोकसेवा (कार्यकारी) रैंक के अधिकारी हैं और वे निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (इआरओ) के रूप में कार्यरत हैं. राज्य सरकार ने इन अधिकारियों को निलंबित करने से इनकार कर दिया है.

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