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एसआइआर को लेकर तैयारियां शुरू, किनके कटेंगे नाम, क्या देने होंगे दस्तावेज

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) के लिए चुनाव आयोग की तैयारियां अंतिम चरण में है.

कोलकाता. पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) के लिए चुनाव आयोग की तैयारियां अंतिम चरण में है. राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. जैसी कि उम्मीद थी, आयोग ने उससे पहले पुनरीक्षण कार्य पूरा करने की तैयारी शुरू कर दी है. आयोग एसआइआर की अंतिम सूची के आधार पर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव कराना चाहता है, बिल्कुल बिहार की तरह. एसआइआर के बाद बिहार में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है. एसआइआर की तैयारियों को लेकर नयी दिल्ली में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बैठक भी पूरी कर ली है. अब लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि एसआइआर के लिए कौन से दस्तावेज़ जरूरी हैं? किन लोगों के नाम सूची से हटाये जा सकते हैं? अवैध मतदाता कौन हैं? बिहार की एसआइआर और पश्चिम बंगाल की एसआइआर में क्या अंतर है? लोग इस बारे में जानना चाह रहे हैं. जरूरी जानकारी पर एक नजर डालें. एसआइआर की जरूरत क्यों है? चुनाव आयोग हर साल मतदाता सूची में संशोधन करता है. नये नाम दर्ज करने के साथ-साथ मृत और अवैध मतदाताओं के नाम हटाकर एक नयी सूची प्रकाशित की जाती है. लेकिन आयोग का मानना है कि यह प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण और गहन पुनरीक्षण नहीं हो पाती है. नाम निकालने और हटाने की प्रक्रिया में कई खामियां रह जाती हैं. एसआइआर के बाद सभी मतदाताओं के नाम नये सिरे से दर्ज किये जायेंगे. इसमें दो बातें सुनिश्चित की जायेगी. एक, कोई भी वैध मतदाता छूटना नहीं चाहिए, दूसरा, एक भी अवैध मतदाता सूची में नहीं होना चाहिए. पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची में आखिरी बार 2002 में आमूल-चूल विशेष संशोधन किया गया था. पिछले 10-15 सालों में आयोग ने पूरे देश में यह काम नहीं किया है. अब संशोधन के बारे में आयोग का कहना है कि एसआइआर के लिए कोई निश्चित तिथि नहीं है. यह तब किया जाता है जब इसे आवश्यक समझा जाता है. हालांकि कांग्रेस और तृणमूल सहित विपक्षी दलों का कहना है कि एसआइआर में भाजपा का दिमाग काम कर रहा है. भाजपा का मानना है कि बांग्लादेश और म्यांमार से भारत में घुसे लगभग एक करोड़ घुसपैठिए इस देश की मतदाता सूची में हैं. भाजपा एसआइआर के माध्यम से आयोग से उन नामों को हटवाना चाहती है. इसीलिए इतने सालों बाद एसआइआर की जरूरत पड़ी है. कौन से दस्तावेज जरूरी हैं? बूथ लेवल अधिकारी एसआइआर के लिए सभी के घर ”गणना फॉर्म” पहुंचायेंगे. उस फॉर्म के साथ आयोग द्वारा निर्धारित 11 दस्तावेज जमा करने होंगे. बिहार के मामले में यही तरीका अपनाया गया था. आयोग के सूत्रों के अनुसार एसआइआर बिहार की तरह ही आयोजित की जायेगी, कुछ बदलाव हो सकते हैं. आयोग के मुताबिक इस राज्य में जिन लोगों के नाम 2002 की मतदाता सूची में हैं, उन्हें कोई दस्तावेज नहीं देने होंगे. इस वर्ष की एसआइआर में उनका नाम तभी शामिल किया जायेगा जब उनका नाम उस सूची में होगा. आयोग ने एसआइआर में 11 दस्तावेज निर्दिष्ट किये हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करने को कहा है. आयोग ने कहा कि इन 11 दस्तावेजों में से कोई भी और पिता या माता का नाम 2002 की सूची में होने पर ही नयी सूची में नाम शामिल किया जा सकता है. एसआइआर की घोषणा के बाद आयोग दिल्ली से गणना फॉर्म की सॉफ्ट कॉपी निर्वाचक पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) के पोर्टल पर भेजेगा. इसके बाद इनकी छपाई होगी. जिन लोगों के नाम वर्तमान मतदाता सूची में हैं, उन सभी को गणना फॉर्म मिलेगा. प्रत्येक मतदाता का गणना फॉर्म अलग-अलग होगा. फॉर्म पर मतदाता की 90 प्रतिशत जानकारी, जिसमें मतदाता का एपिक नंबर, नाम, पता, जन्मतिथि शामिल है, मुद्रित होगी. आयोग प्रत्येक मतदाता के लिए दो गणना फॉर्म मुद्रित करेगा. पश्चिम बंगाल में अभी मतदाताओं की संख्या लगभग 7.65 करोड़ है. दोगुनी संख्या में फॉर्म मुद्रित किये जायेंगे. बीएलओ प्रत्येक मतदाता के घर फॉर्म पहुचायेंगे. फॉर्म का शेष भाग भरकर उपयुक्त दस्तावेजों के साथ जमा करना होगा. एक फॉर्म संबंधित मतदाता के पास रहेगा, दूसरा बीएलओ ले जायेगा. किसका नाम कट सकता है? आयोग उन लोगों के नाम हटा सकता है जिनके परिवार के सदस्य 2002 की मतदाता सूची में शामिल नहीं हैं और जो अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने में विफल होंगे. मतदाता सूची में शामिल सभी मृतक और अवैध मतदाताओं के नाम हटा दिये जायेंगे. जो लोग कहीं और चले गये हैं या जिनके नाम दो जगहों पर हैं और जिनके पास दो ईपीआईसी नंबर हैं, उन्हें एक जगह से हटा दिया जायेगा. जिन लोगों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर अपना नाम सूची में दर्ज कराया है, वे अवैध मतदाता होंगे. इस मामले में बांग्लादेश और म्यांमार से आये घुसपैठियों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है. आयोग का मानना है कि अगर इन 11 दस्तावेजों में से कोई भी फर्जी तरीके से दस्तावेज बना लेता है और संबंधित व्यक्ति 2002 की मतदाता सूची में अपने पिता या माता का नाम नहीं दिखा पाता है तो स्वाभाविक रूप से नागरिकता को लेकर सवाल उठेंगे. अगर आप अपनी भारतीय नागरिकता साबित नहीं कर पाते हैं, तो आपका नाम सूची से बाहर कर दिया जायेगा. कितने लोगों के नाम कट सकते हैं, आयोग के पास इस बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं है. हालांकि कुछ अधिकारियों का अनुमान है कि लगभग एक करोड़ नाम बाहर किये जा सकते हैं. उनका तर्क है कि अगर आप 2002 से 2025 तक हर साल मरने वाले और पलायन करने वाले मतदाताओं की संख्या गिनें, तो ऐसे मतदाताओं की संख्या कम से कम 75 लाख होगी जो मतदाता सूची से बाहर हो जायेंगे. इसके साथ ही अगर आप पिछले 23 सालों में अवैध मतदाताओं की संख्या गिनें, तो यह संख्या एक करोड़ को पार कर जायेगी. आयोग द्वारा निर्दिष्ट 11 दस्तावेज क्या हैं? 1. केंद्र या राज्य सरकार के कर्मचारी के रूप में काम कर चुके या पेंशन प्राप्त करने वाले व्यक्ति का पहचान पत्र. 2. एक जुलाई 1987 से पहले बैंक, डाकघर, एलआईसी, स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी कोई भी दस्तावेज. 3. जन्म प्रमाण पत्र. 4. पासपोर्ट. 5. माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्रमाण पत्र. 6. राज्य सरकार के सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी निवास प्रमाण पत्र. 7. वन अधिकार प्रमाण पत्र. 8. जाति प्रमाण पत्र. 9. नागरिक का राष्ट्रीय रजिस्ट्रार. 10. स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी परिवार रजिस्ट्रार. 11. जमीन या मकान के दस्तावेज. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में दिखाया जा सकता है. हालांकि इसे दिखाकर नागरिकता का दावा नहीं किया जा सकता. आयोग ने कहा है कि आधार कार्ड के साथ इन 11 दस्तावेजों में से कोई एक दस्तावेज जमा करना होगा. अगर इन 11 दस्तावेजों के अलावा कोई भी दस्तावेज नागरिकता साबित कर सकता है, तो उसे भी स्वीकार किया जायेगा.

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