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अब सिर्फ 4.3% डेटा चुनावी रोल से मेल नहीं खा रहा

मुख्य चुनाव अधिकारी मनोज अग्रवाल ने बताया कि वर्तमान में केवल 4.3 प्रतिशत पंजीकृत मतदाता ऐसे हैं, जिनका डेटा 2002 के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआइआर) या किसी अन्य राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के चुनावी रोल से मेल नहीं खा रहा है.

बंगाल में मतदाता सूची की मैपिंग में बड़ा सुधार

चार नवंबर से पहले मैपिंग दर थी 51%

संवाददाता, कोलकातापश्चिम बंगाल में मतदाता सूची की मैपिंग को लेकर एक महत्वपूर्ण खुलासा हुआ है. मुख्य चुनाव अधिकारी मनोज अग्रवाल ने बताया कि वर्तमान में केवल 4.3 प्रतिशत पंजीकृत मतदाता ऐसे हैं, जिनका डेटा 2002 के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआइआर) या किसी अन्य राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के चुनावी रोल से मेल नहीं खा रहा है. यह स्थिति चुनाव आयोग के 28 अक्तूबर के उस आकलन के मुकाबले काफी बेहतर है, जिसमें कहा गया था कि राज्य के 7.6 करोड़ मतदाताओं में से 49 प्रतिशत का डेटा 2002 के एसआइआर के बाद के रोल से लिंक नहीं हो पा रहा था. अग्रवाल ने बताया कि 6.5 करोड़ से अधिक एन्यूमरेशन फॉर्म डिजिटाइज किये जा चुके हैं. इनमें से करीब 26 लाख मतदाताओं का डेटा किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के पिछले एसआइआर रोल से अभी तक मैप नहीं हो पाया है. एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, एसआइआर की शुरुआत से पहले यानी चार नवंबर से पहले मैपिंग की दर 51 प्रतिशत थी. उन्होंने बताया कि पिछले 23 वर्षों में पोलिंग बूथों की संख्या लगभग 19,000 बढ़ी है. इसके अलावा, बड़ी संख्या में मतदाता राज्य के भीतर या बाहर दूसरे विधानसभा क्षेत्रों में स्थानांतरित हुए हैं. यही वजह रही कि शुरुआती चरण में मैपिंग का प्रतिशत काफी कम दिखायी दिया. अधिकारियों के अनुसार, 2002 में बंगाल में 61,531 पोलिंग बूथ थे, जो अब बढ़कर 80,681 हो गये हैं. चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन ने भी मैपिंग प्रक्रिया को प्रभावित किया. कोलकाता के कसबा और मटियाबुर्ज जैसे क्षेत्रों में शुरुआती मैपिंग दर क्रमशः चार और आठ प्रतिशत दर्ज की गयी. अन्य नवगठित निर्वाचन क्षेत्रों में भी ऐसे ही कम प्रतिशत देखने को मिले. मुख्य चुनाव अधिकारी अग्रवाल ने बताया कि जैसे-जैसे एसआइआर प्रक्रिया अंतिम चरण में पहुंच रही है, मैपिंग दर में लगातार सुधार हो रहा है. उन्होंने कहा कि यह स्वाभाविक है, क्योंकि नए बूथों में स्थानांतरित मतदाताओं को उनके एन्यूमरेशन फॉर्म में दी गयी अतिरिक्त जानकारी के आधार पर सत्यापित डेटा में शामिल किया जा रहा है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जिन मतदाताओं का डेटा 2002 के एसआइआर रोल में उपलब्ध नहीं है, क्योंकि वे उस समय दूसरे राज्यों में पंजीकृत थे, उन्हें उन राज्यों के पोस्ट-एसआइआर रोल से मैप किया जा रहा है.

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