प्रतिनिधि, बैरकपुर
हाल ही में एक दिन के लिए बंद होकर खुली टीटागढ़ की लूमटेक्स जूट मिल फिर से बंद हो गयी. श्रमिक और मिल प्रबंधन के बीच चल रहे तनाव के बीच ही श्रमिक असंतोष के कारण गुरुवार को मिल बंद हो गयी. मिल में श्रमिकों ने काम बंद कर अपने बकाये भुगतान की मांग कर जमकर विरोध प्रदर्शन किया. यहां तक कि श्रमिकों ने अपनी समस्या को स्थानीय विधायक राज चक्रवर्ती तक पहुंचाने के लिए टीटागढ़ नगरपालिका के गेट पर विरोध प्रदर्शन किया और चेयरमैन कमलेश साव को अपनी समस्याओं को विधायक तक पहुंचाने की मांग की. चेयरमैन के आश्वासन के बाद उनका विरोध प्रदर्शन शांत हुआ. मिल में करीब हजार की संख्या में श्रमिक काम करते हैं.
गौरतलब है कि गत 23 अक्तूबर को मिल प्रबंधन ने जूट क्राइसिस समेत विभिन्न समस्याओं का हवाला देते हुए सात दिनों के लिए मिल बंद का नोटिस लगाया था. फिर श्रमिकों के हंगामे के बाद स्थानीय पार्षद के साथ प्रबंधन की बैठक हुई. फिर बैरकपुर के विधायक राज चक्रवर्ती के हस्तक्षेप से पुन: मिल चालू हुई थी. लेकिन गुरुवार को नाराज श्रमिकों ने अपने पीएफ समेत विभिन्न बकाये की मांग कर मिल में काम बंद कर विरोध जताया. इसके बाद से ही मिल बंद है.
श्रमिकों का आरोप है कि मिल प्रबंधन 2002 से मजदूरों के साथ अन्याय कर रहा हैं. लंबे समय से उनके बकाये पीएफ का भुगतान नहीं हो रहा है. साथ ही श्रमिकों को कम काम देकर धीरे-धीरे एक के बाद एक श्रमिकों को काम से निकाला जा रहा है. यहां तक कि मिल से रिटायर्ड हो चुके मजदूरों का भी बकाया नहीं दिया जा रहा है. सप्ताह में छह दिन की जगह सिर्फ पांच दिन ही काम हो रहा है. श्रमिकों की मांग है कि छह दिन काम हो. वहीं मिल प्रबंधन का कहना है कि धागे की आपूर्ति में कमी के कारण ऐसा करना पड़ रहा है.
गुस्साये श्रमिकों की मांग है कि मिल के ठेकेदार को तुरंत बदला जाये. वरना वे काम पर नहीं आयेंगे. साथ ही श्रमिकों ने विधायक को चेतावनी दी कि पहले श्रमिकों की समस्या का समाधान करें, वरना इसका असर आगामी चुनावों पर भी पड़ेगा. श्रमिकों की बात सुनकर नगरपालिका के चेयरमैन कमलेश साव ने श्रमिकों के हित में जरूरी कदम उठाने का आश्वासन दिया है.
इधर, ज्वाइंट फोरम ऑफ ऑल पार्टी यूनियन के संयोजक प्रमेंद्र चौधरी ने कहा कि संगठन की ओर से एक मीटिंग बुलायी गयी है और मीटिंग के बाद ही श्रमिक अपना अगला कदम उठायेंगे. श्रमिक अपनी मांगों को लेकर अडिग है. उनका कहना है कि जब तक मांगें पूरी नहीं होती हैं, वे काम पर नहीं जायेंगे.
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