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ईसीआइ गैरकानूनी रूप से कार्य करता है, तो कोर्ट कर सकता है हस्तक्षेप

भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआइ) की शक्तियों की न्यायिक समीक्षा को स्पष्ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यदि ईसीआइ मनमाने ढंग से या गैरकानूनी रूप से कार्य करता है, तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं.

कोलकाता.

भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआइ) की शक्तियों की न्यायिक समीक्षा को स्पष्ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यदि ईसीआइ मनमाने ढंग से या गैरकानूनी रूप से कार्य करता है, तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1977 में मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के मामले में यह फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश आज के माहौल में और भी प्रासंगिक हो गया है, जब पश्चिम बंगाल सहित देश के 12 राज्यों में एक साथ एसआइआर प्रक्रिया शुरू हुई है. इस संबंध में कलकत्ता हाइकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता देवब्रत उपाध्याय ने प्रभात खबर के ऑनलाइन सवालों का जवाब देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले ने संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत ईसीआइ की व्यापक शक्तियों की पुष्टि की, जिससे उसे चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार मिला. हालांकि, न्यायालय ने चेतावनी दी कि ये शक्तियां अनियंत्रित नहीं हैं और इन्हें निष्पक्षता और वैधता के मानदंडों का पालन करना होगा. इसने इस बात पर जोर दिया कि ईसीआइ कोई संवैधानिक तानाशाह नहीं है और यदि ईसीआइ के निर्णय मनमाने, अत्यधिक या अनुचित हैं, तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं और उन्हें रद्द कर सकती हैं.

श्री उपाध्याय ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले ने चुनावी शुचिता और न्यायिक निगरानी के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता को भी स्वीकार किया और इस बात पर प्रकाश डाला कि चल रहे चुनावों के दौरान, चुनावी प्रक्रिया में बाधा को रोकने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप प्रतिबंधित है. यह फैसला ईसीआइ के कार्यों और शक्तियों पर न्यायिक समीक्षा की सीमा तय करने वाली एक आधारभूत उदाहरण बना हुआ है.

सवाल : मैं अभी भी जीवित हूं. पैरालाइसिस की बीमारी होने के कारण घर में रहता हूं. लेकिन मतदाता सूची में मुझे मृत घोषित कर दिया गया है, मैं क्या करूं?

कृष्णकांत चौधरी, खड़दह

जवाब : आप इसे लेकर एसडीओ कार्यालय में शिकायत दर्ज करा सकते हैं और स्थानीय बीएलओ से संपर्क करें और इसकी जानकारी दें. अगर फिर भी बात नहीं बनती है, तो अदालत में भी मामला कर सकते हैं.

सवाल : मैं एक वरिष्ठ नागरिक हूं. मैंने एक व्यक्ति को 11 लाख रुपये दोस्ताना कर्ज के रूप में दिया था, जिसके एवज में उन्होंने चेक दिया था. चेक मैंने अपने बैंक में जमा किया है. लेकिन वह बाउंस हो गया, मुझे क्या करना होगा?

राम नारायण पांडे, भद्रेश्वर

जवाब : आप बैंक के पदाधिकारी से संपर्क कर चेक बाउंस का साक्ष्य प्राप्त करें. उसके बाद अधिवक्ता के माध्यम से 15 दिनों के अंदर रुपये वापसी के लिए लीगल नोटिस उक्त व्यक्ति को भेजें. नोटिस तामिला होने के अगर 15 दिनों के अंदर रकम की वापसी नहीं होती है और नोटिस का जवाब नहीं मिलता है, तो महज एक माह के अंदर कोर्ट में केस दर्ज कर सकते हैं.

सवाल : एक व्यक्ति द्वारा हमारी जमीन पर जबरन कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है. इसके लिए हमें क्या करना होगा?

राेहिनी सिंह, हावड़ा

जवाब : आप जमीन का सीमांकन के लिए अंचल कार्यालय में अर्जी दाखिल करें. सीमांकन होने के बाद आप बीएलआरओ से लिखित शिकायत कर सकते हैं. इसके साथ ही आप स्थानीय थाने में शिकायत दर्ज करायें, वहां से काम नहीं बनने पर अदालत में मामला दायर करें.

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