बेमौसम बारिश से निर्माण कार्य ठप, प्रतिदिन लाखों की आर्थिक क्षति
कोलकाता. महानगर में मॉनसून के विदा होने के बाद भी बारिश का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. कभी निम्न दबाव, तो कभी चक्रवात के प्रभाव से हो रही बेमौसम बारिश ने न केवल कोलकाता वासियों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, बल्कि कोलकाता नगर निगम (केएमसी) के लिए भी बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. नगर निगम के कई इलाकों में जल निकासी से जुड़ीं महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम चल रहा था, लेकिन लगातार बारिश के कारण ये परियोजनाएं अब ठप पड़ी हैं. इससे निगम को हर दिन लाखों रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है.
केएमसी के अनुसार, इस वर्ष अब तक 2500 मिमी बारिश दर्ज की जा चुकी है, जबकि पिछले साल इसी अवधि में केवल 1550 मिमी बारिश हुई थी. बारिश के इस असामान्य पैटर्न ने निगम की जल निकासी योजनाओं की रफ्तार पर सीधा असर डाला है.
निगम के सीवरेज और ड्रेनेज विभाग की कई परियोजनाएं जैसे- बेलगछिया के मिल्क कॉलोनी, ऋषिकेश पार्क और सीवेज डिपो में पंपिंग स्टेशन निर्माण कार्य ठप हैं. इसी तरह तालाबों की कटाई और नहरों के चौड़ीकरण का कार्य भी दिनेश नगर, इठ खोला, भाटीखाना और गोल्फ गार्डेन जैसे क्षेत्रों में रुका हुआ है. इन परियोजनाओं पर सैकड़ों श्रमिक और भारी मशीनें लगी हुई हैं, जिनका किराया और वेतन निगम को रोजाना देना पड़ रहा है.
नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया : लगातार बारिश के कारण काम शुरू होते ही रुक जाता है. मॉनसून के समय भी पूजा से पहले परियोजनाएं पूरी नहीं हो सकीं. अब जब मौसम सामान्य होने की उम्मीद थी, तब फिर से बारिश ने रफ्तार थाम दी है. उन्होंने कहा कि विभिन्न परियोजनाओं के हिसाब से निगम को रोजाना 80,000 से एक लाख रुपये तक का नुकसान हो रहा है. सभी परियोजनाओं को मिला कर यह नुकसान करोड़ों रुपये तक पहुंच सकता है. इस बीच, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से निगम को 500 करोड़ रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ है, जिसे मार्च तक खर्च करना आवश्यक है, अन्यथा यह राशि वापस करनी होगी. लेकिन परियोजनाओं में विलंब के कारण समय पर कार्य पूरा होने की संभावना कम होती जा रही है.
वार्ड 143 और 144 में जल निकासी सुधार के लिए नहरों के चौड़ीकरण का काम धीमी गति से चल रहा है. अधिकारियों का कहना है कि अगर ये कार्य समय पर पूरे हो जाते हैं, तो महानगर की जल निकासी व्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार होगा. हालांकि, मौजूदा मौसम ने निगम के सामने प्रशासनिक और वित्तीय दोनों मोर्चों पर मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
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