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दृष्टिबाधित छात्रों को सशक्त बनाने की जेयू की नयी पहल

स्कूल की निदेशक अमृता बसु ने बताया कि दृष्टिबाधित छात्र अक्सर अंग्रेजी में दक्षता की कमी से परेशान होते हैं, क्योंकि स्कूल स्तर पर उनकी शिक्षा का माध्यम ज्यादातर बंगाली होता है.

कोलकाता. जादवपुर यूनिवर्सिटी (जेयू) के स्कूल ऑफ कॉग्निटिव साइंस, को दृष्टिबाधित छात्रों के कल्याण के लिए फंड दिया गया है. दृष्टिबाधित छात्रों को ब्रेल से लेकर एआइ के जरिये अंग्रेजी भाषा दक्षता सिखाने के प्रोजेक्ट के लिए लगभग 44 लाख रुपये का अनुदान दिया गया है. इसके तहत दृष्टिबाधित छात्रों के लिए अंग्रेजी सीखने के लिए तकनीकी उपकरण विकसित करने की परियोजना बनायी गयी है. स्कूल की निदेशक अमृता बसु ने बताया कि दृष्टिबाधित छात्र अक्सर अंग्रेजी में दक्षता की कमी से परेशान होते हैं, क्योंकि स्कूल स्तर पर उनकी शिक्षा का माध्यम ज्यादातर बंगाली होता है. उन्हें किसी भी भाषा को समझने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना पड़ता है. यह भी देखा गया कि स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर स्क्रीन रीडर, ऑडियो-आधारित भाषा सीखने के प्लेटफॉर्म और अंग्रेजी में ब्रेल टेक्स्ट जैसे विशेष उपकरणों की कमी के कारण कई दृष्टिबाधित छात्रों को संघर्ष करना पड़ता है. हम उनकी इस कमी को पूरा करने में उनकी मदद करेंगे. दृष्टिबाधित छात्रों को सशक्त बनाने के लिए सक्रिय इस स्कूल को हायर एजुकेशन फंडिंग एजेंसी (एचइएफए) से 44 लाख रुपये का अनुदान मिला है. यह केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की एक शाखा है. आइआइटी खड़गपुर में कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग के पूर्व प्रोफेसर और अब जेयू में राजा रमन्ना चेयर के प्रो अनुपम बसु इस परियोजना के सलाहकार हैं. उन्होंने बताया कि उच्च शिक्षा में पारंपरिक शिक्षण पद्धतियां अक्सर दृष्टिबाधित शिक्षार्थियों की जरूरतों को नजरअंदाज करती हैं, जिससे उनके सामान्य साथियों (जो दृष्टिबाधित नहीं) की तुलना में उनकी दक्षता का स्तर कम होता है. प्रोफेसर ने कहा कि परियोजना के हिस्से के रूप में, जेयू एक एआइ-आधारित सहायक उपकरण विकसित कर रहा है, जिसे विशेष रूप से दृष्टिबाधित व्यक्तियों को बोली जाने वाली अंग्रेजी सिखाने के लिए डिजाइन किया गया है. जेयू के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो दीपांकर सान्याल ने कहा कि जेयू हमेशा अपने समावेशी दृष्टिकोण के लिए जाना जाता है. जेयू में पीएचडी कर रहे दृष्टिबाधित छात्र जिशुआ देबनाथ ने कहा कि इस तरह की परियोजनाएं दिव्यांग छात्रों को मुख्यधारा में लाने में काफी मददगार साबित होंगी.

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