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पोस्टमार्टम में शराब की गंध मिलने मात्र से मुआवजा नहीं नकारा जा सकता: हाइकोर्ट

सड़क दुर्घटना में मृत व्यक्ति की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पेट से शराब की गंध पाये जाने मात्र के आधार पर उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता

नशे में वाहन चलाने का आरोप कानूनन प्रमाणित होना जरूरी

बीमा कंपनी की अपील खारिज

कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सड़क दुर्घटना में मृत व्यक्ति की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पेट से शराब की गंध पाये जाने मात्र के आधार पर उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि नशे में वाहन चलाने का आरोप तभी स्वीकार्य होगा, जब उसे कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार विधिवत प्रमाणित किया गया हो. न्यायमूर्ति विश्वरूप चौधरी ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए पूर्व मेदिनीपुर के तमलुक स्थित थर्ड एडिशनल जिला जज अदालत के मुआवजा आदेश को बरकरार रखा. ट्रायल कोर्ट ने 22 मई 2024 को अपने फैसले में मृतक गणेश दास के परिजनों को 11.41 लाख रुपये का मुआवजा छह प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित देने का निर्देश दिया था.

क्या है मामला : मामला 27 दिसंबर 2020 की एक सड़क दुर्घटना से जुड़ा है, जिसमें मोटरसाइकिल सवार गणेश दास की एक ट्रक से टक्कर हो गयी थी. आरोप था कि ट्रक चालक ने लापरवाही और तेज गति से वाहन चलाया, जिससे दुर्घटना हुई और गणेश दास की मौके पर ही मौत हो गयी. मृतक की मां और अन्य आश्रितों ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत मुआवजे की मांग की थी. बीमा कंपनी ने मुआवजे के आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक के पेट से शराब की गंध पाये जाने का उल्लेख है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह नशे की हालत में वाहन चला रहा था. इसके अलावा, कंपनी ने यह भी दलील दी कि मृतक की मोटरसाइकिल बीमित नहीं थी और मुआवजे की राशि अत्यधिक है.

इन दलीलों पर विचार करते हुए हाइकोर्ट ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के तहत नशे में वाहन चलाने को साबित करने के लिए यह दिखाना आवश्यक है कि रक्त में अल्कोहल की मात्रा कानूनन निर्धारित सीमा से अधिक थी. अदालत ने स्पष्ट किया कि जब दुर्घटना में व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी हो और उस पर नशे में होने का आरोप लगाया जाये, तो केवल अनुमान या शराब की गंध के आधार पर उसके उत्तराधिकारियों को मुआवजे से वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि मृत व्यक्ति स्वयं अपने बचाव में कुछ कहने की स्थिति में नहीं होता. अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में न तो ब्लड अल्कोहल टेस्ट कराया गया और न ही ब्रेथ एनालाइजर से जांच की गयी. ऐसे में केवल शराब की गंध के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि मृतक नशे की हालत में वाहन चला रहा था. मोटरसाइकिल के बीमित न होने की दलील को भी अदालत ने खारिज कर दिया. हाइकोर्ट ने कहा कि मुआवजे का दावा दुर्घटना के लिए जिम्मेदार ट्रक के बीमाकर्ता के खिलाफ किया गया है, न कि मृतक की मोटरसाइकिल के बीमाकर्ता के खिलाफ. इसलिए इस आधार पर बीमा कंपनी को कोई राहत नहीं दी जा सकती.

हालांकि, अदालत ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि बीमा कंपनियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन वाहनों का बीमा समाप्त हो चुका है, उनके बारे में परिवहन अधिकारियों को समय पर सूचित किया जाये, ताकि बिना वैध बीमा के वाहन सड़कों पर न चलें. अदालत ने निर्देश दिया कि सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद दावेदार मुआवजे की राशि और उस पर अर्जित ब्याज निकाल सकते हैं.

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