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भ्रूण व मातृ चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ी पहल

सुरक्षा डायग्नोस्टिक्स और फेटोमैट वेलनेस अब एक साथ मिल कर फीटल व मैटर्नल मेडिसिन के क्षेत्र में जांच व और इलाज करेंगे.

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अब सुरक्षा डायग्नोस्टिक में जेनेटिक काउंसिलिंग और पैरेंटिंग डायग्नोस्टिक की सुविधा पूर्वी भारत में पहली बार कोलकाता में होगा क्रोमोसोमल माइक्रोएरे जांच कोलकाता. फीटल व मैटर्नल मेडिसिन यानी भ्रूण और मातृ चिकित्सा के क्षेत्र में कोलकाता में बड़ी पहल की गयी है. दरअसल जांच व इलाज के लिए सुरक्षा डायग्नोस्टिक और फेटोमैट वेलनेस के साथ एक अनुबंध हुआ है. सुरक्षा डायग्नोस्टिक्स और फेटोमैट वेलनेस अब एक साथ मिल कर फीटल व मैटर्नल मेडिसिन के क्षेत्र में जांच व और इलाज करेंगे. फेटोमैट फीटल और मैटर्नल मेडिसिन के प्रसव पैरेंटल डायग्नोस्टिक( प्रसव के बाद इलाज) और जेनेटिक काउंसिल (आनुवंशिक परामर्श) के लिए पूर्वी भारत में सबसे बड़ा फीटल व मैटर्नल मेडिसिन केंद्रों में से एक है. ऐसे में इस अनुबंध से कोलकाता में अब सुरक्षा डायग्नोटिस क्रोमोसोमल माइक्रोएरे, क्यूएफ पीसीआर और एफआइएसएच (फ्लोरोसेंस इन सीटू हाइब्रिडाइजेशन) जैसी जांच कोलकाता ही नहीं पूर्वी भारत में पहली बार होगी. इसकी घोषणा सुरक्षा डायग्नोस्टिक की ओर से आयोजित संवाददाता सम्मेलन में की गयी है. इस मौके पर महानगर में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में सुरक्षा डायग्नोस्टिक के सीइओ रितु मित्तल, सुरक्षा के चेयरमैन व प्रबंधन निदेशक डॉ सोमनाथ चटर्जी और फेटोमैट के संस्थापक और निदेशक डॉ प्रदीप गोस्वामी समेत उपस्थित थे. इस संबंध में रितु मित्तल ने बताया कि सुरक्षा एक मात्र जांच केंद्र है जो पश्चिम बंगाल ही नहीं, पूरे पूर्वी भारत में पहली बार फीटल मेडिसिन से संबंधित क्रोमोसोमल माइक्रोएरे, क्यूएफ पीसीआर और एफआइएसएच जांच करेगा. अब तक इस तरह की जांच के लिए नमूनों को दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद और बेंगलुरु में भेजना पड़ता था. अब यह जांच कोलकाता में भी संभव है. उन्होंने बताया कि कोलकाता के अलावा आसनसोल, सिलीगुड़ी, पटना और गुवाहाटी स्थित सुरक्षा डायग्नोस्टिक केंद्र में जांच की जायेगी. मौके पर उपस्थित सुरक्षा के वैज्ञानिक समीहा बनर्जी ने बताया कि क्रोमोसोमल माइक्रोएरे, क्यूएफ पीसीआर और एफआइएसएच जांच पहली बार कोलकाता में हो रहा है. उन्होंने बताया बार-बार भ्रूण नष्ट होना, भ्रूण के विकास से संबंधित, जेनेटिक समस्याओं को समझने के लिए इस तरह की जांच की जाती है. उन्होंने बार-बार भ्रूण के नष्ट होने पर फीट्स की टिशू की जांच की जाती है. जांच के बाद अगले बार सेकेंड प्रेगनेंसी आसान हो जाता है. उन्होंने बताया कि क्रोमोसोमल माइक्रोएरे जांच पहली बार कोलकाता में शुरू हुई है. सुरक्षा के कुल 59 डायग्नोस्टि सेंटर है और 166 सैंपल कलेक्शन सेंटर हैं.

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