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हर मोर्चे पर सत्ता-विपक्ष ने तैयार की चुनावी रण की जमीन

वर्ष 2025 की राजनीति के लिए बेहद अहम और निर्णायक साल बनकर उभरा. 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यह साल सत्ता और विपक्ष के बीच तीखे राजनीतिक टकराव, रणनीतिक दांव-पेच और बड़े घटनाक्रमों से भरा रहा. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और मुख्य विपक्षी भाजपा के बीच संघर्ष और अधिक तीखा हुआ, जबकि वाममोर्चा और कांग्रेस अपनी खोयी हुई राजनीतिक जमीन बचाने की कोशिशों में उलझे रहे.

अमित शर्मा, कोलकाता.

वर्ष 2025 की राजनीति के लिए बेहद अहम और निर्णायक साल बनकर उभरा. 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यह साल सत्ता और विपक्ष के बीच तीखे राजनीतिक टकराव, रणनीतिक दांव-पेच और बड़े घटनाक्रमों से भरा रहा. सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और मुख्य विपक्षी भाजपा के बीच संघर्ष और अधिक तीखा हुआ, जबकि वाममोर्चा और कांग्रेस अपनी खोयी हुई राजनीतिक जमीन बचाने की कोशिशों में उलझे रहे.

तृणमूल ने योजनाओं को सरकार की उपलब्धियों के रूप में पेश किया : मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने 2025 में जनकल्याणकारी योजनाओं को अपने राजनीतिक अभियान का मुख्य आधार बनाया. लक्खी भंडार, स्वास्थ्य साथी, कन्याश्री और छात्र-युवा केंद्रित योजनाओं को सरकार की उपलब्धियों के रूप में पेश किया गया. इन योजनाओं के प्रचार के लिए इसी वर्ष जनसंपर्क अभियान ‘उन्नयनेर पांचाली’ अभियान शुरू किया गया, जिसकी कमान पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी के हाथ में है.

तृणमूल में अभिषेक का कद बढ़ा : राजनीति विश्लेषकों के अनुसार, तृणमूल के संगठनात्मक चेहरे के रूप में अभिषेक बनर्जी की भूमिका 2025 में और मजबूत हुई. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के तौर पर उन्होंने संगठन में अनुशासन और जवाबदेही पर जोर दिया. जिलेवार बैठकें, सांसद-विधायकों की परफॉर्मेंस समीक्षा और युवा नेतृत्व को आगे लाने की कोशिशें इसी रणनीति का हिस्सा रहीं. पार्टी में उनके कद बढ़ने का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसी साल उन्हें लोकसभा में पार्टी के संसदीय दल का नेता चुना गया.

आक्रामक विपक्ष की भूमिका निभाती नजर आयी भाजपा : राज्य में स्कूलों में हुईं नियुक्तियों के घोटाले व भ्रष्टाचार के अन्य मामलों को लेकर भाजपा समेत विपक्ष लगातार तृणमूल पर हमलावर रहा, लेकिन पार्टी ने इसे ‘राजनीतिक बदले की कार्रवाई’ बताते हुए पलटवार किया. वहीं, 2025 भाजपा के लिए आक्रामक विपक्ष की भूमिका निभाने और संगठनात्मक विस्तार का साल साबित हुआ. इसी साल भाजपा के नये प्रदेश अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य नियुक्ति किये गये. इसके पहले डॉ सुकांत मजूमदार इस पद पर आसीन थे. इधर, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने कानून-व्यवस्था की स्थिति, शिक्षक नियुक्ति घोटाले, नगर निकायों में कथित भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और प्रशासनिक विफलताओं, राज्य में घुसपैठ, महिलाओं की सुरक्षा व अन्य मुद्दों को लेकर तृणमूल सरकार पर लगातार हमले किये. भाजपा ने इन मुद्दों को न केवल विधानसभा में बल्कि सड़कों पर भी जोरदार तरीके से उठाया. पार्टी नेतृत्व का दावा रहा कि लंबे समय से सत्ता में रहने के कारण तृणमूल सरकार के खिलाफ राज्य में असंतोष बढ़ रहा है और 2026 में सत्ता परिवर्तन की जमीन तैयार हो रही है.

वाम व कांग्रेस के लिए आत्ममंथन का वर्ष रहा : इधर, माकपा व वाममोर्चा से जुड़े अन्य दलों और कांग्रेस के लिए 2025 आत्ममंथन और संघर्ष का वर्ष रहा. इसी साल मोहम्मद सलीम फिर माकपा के प्रदेश चुने गये और उन्होंने बेरोजगारी, महंगाई और श्रमिक अधिकारों को लेकर आंदोलन तेज करने की कोशिश की. वहीं, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने केंद्र और राज्य दोनों सरकारों पर निशाना साधते हुए खुद को मुखर विपक्षी नेता के रूप में पेश किया. हालांकि, राजनीति के पंडितों के कहना है कि इन दलों को बड़े पैमाने पर जनसमर्थन जुटाने में अब भी कठिनाई का सामना करना पड़ा.

कुल मिलाकर, 2025 पश्चिम बंगाल की राजनीति में सत्ता और विपक्ष के बीच खुली जंग, तीखी बयानबाजी और रणनीतिक तैयारियों का साल रहा. यह वर्ष साफ संकेत दे गया कि 2026 का विधानसभा चुनाव तृणमूल कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए एक तरह से साख की लड़ाई होगा, जो राज्य की राजनीतिक दिशा तय करेगा.

एसआइआर प्रक्रिया पर व्यापक टकराव : मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) को लेकर भी 2025 में बड़ा राजनीतिक टकराव देखने को मिला. तृणमूल, वाममोर्चा और कांग्रेस ने इस प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए मतदाता सूची में छेड़छाड़ की आशंका जतायी. इसके उलट भाजपा ने खुलकर चुनाव आयोग का समर्थन किया. भाजपा नेताओं का कहना रहा कि एसआइआर का उद्देश्य फर्जी और दोहरे मतदाताओं को हटाकर चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है और इसे राजनीतिक रंग देना गलत है.

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