जस्टिस कर्णन ने कहा : पूरी तरह से सामान्य हैं और उनका दिमाग स्थिर है
कोलकाता : कलकत्ता हाइकोर्ट के न्यायाधीश सीएस कर्णन ने गुरुवार को सरकारी अस्पताल के चार सदस्यीय मेडिकल टीम से यह कहते हुए चिकित्सा जांच कराने से इनकार कर दिया कि ‘वह पूरी तरह से सामान्य हैं और उनका दिमाग स्थिर है.’
न्यायमूर्ति कर्णन ने मेडिकल जांच से इनकार करने के बाद चिकित्सकों को लिखित में दिया, ‘चूंकि मैं पूरी तरह से सामान्य हूं और मेरा दिमाग स्थिर है, मैं चिकित्सा उपचार का लाभ लेने से इनकार करता हूं. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे में मेरा दृढ़ विचार है कि यह न्यायाधीश (मेरा) का अपमान और उत्पीड़न करता है.’
न्यायमूर्ति ने चिकित्सकों से कहा कि इस तरह की मेडिकल जांच कराने के लिए अभिभावक की सहमति लेनी होती है. ‘चूंकि मेरे परिजन यहां नहीं हैं, तो उनकी कोई सहमति भी नहीं है. इसलिए कोई मेडिकल जांच भी नहीं हो सकती.
उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी और पुत्र चेन्नई में हैं वहीं दूसरा पुत्र फ्रांस में काम कर रहा है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति कर्णन की चिकित्सकों के दल से जांच कराने के आदेश एक मई को दिये थे. इसी आदेश के पालन के लिए चिकित्सकों का चार सदस्यीय दल पुलिस के साथ कोलकाता के न्यू टाउन स्थित उनके आवास पर गुरुवार सुबह गया था.
क्या है मामला
जस्टिस कर्णन ने 23 जनवरी को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर 20 जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. इनमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और मद्रास हाईकोर्ट के मौजूदा जज शामिल हैं. जस्टिस कर्णन ने इस मामले की जांच कराने की मांग की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आठ फरवरी को जस्टिस कर्णन को नोटिस जारी कर पूछा था कि क्यों न इसे कोर्ट की अवमानना माना जाये.
कोर्ट ने उन्हें मामले की सुनवाई होने तक सभी ज्यूडिशियल और एडमिनिस्ट्रिेटिव फाइलें कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को लौटाने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को 13 फरवरी को कोर्ट में पेश होने को कहा था, लेकिन वह हाजिर नहीं हुए. यह देश का पहला केस था, जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के मौजूदा जज को अवमानना का नोटिस भेजा था.
जस्टिस कर्णन ने दलित होने के कारण उपेक्षा का लगाया था आरोप
जस्टिस कर्णन सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर यह आरोप भी लगा चुके हैं कि दलित होने की वजह से उन पर यह एक्शन लिया जा रहा है. उन्होंने अपने पत्र में लिखा था, यह ऑर्डर (सुप्रीम कोर्ट का नोटिस) साफ तौर पर बताता है कि ऊंची जाति के जज कानून अपने हाथ में ले रहे हैं और अपनी ज्यूडिशियल पावर का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं.
पहले भी विवादों में रहे हैं जस्टिस कर्णन
जस्टिस कर्णन 2011 में मद्रास हाईकोर्ट में जज थे. उस वक्त उन्होंने एक साथी जज के खिलाफ जातिसूचक शब्द कहने की शिकायत दर्ज करायी थी. 2014 में मद्रास हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर वह तब के चीफ जस्टिस के चेंबर में घुस गये थे और कथित तौर पर बदसुलूकी की थी. इसके अलावा, जस्टिस कर्णन ने उन्हें मद्रास हाईकोर्ट से कलकत्ता हाईकोर्ट ट्रांसफर करने पर इस मामले की खुद सुनवाई शुरू कर दी थी. बाद में इसके खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगायी थी. यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है.