– राष्ट्रीय मेला घोषित करके केंद्र कमा सकता है यश
शिव कुमार राउत
सागरद्वीप : संक्रांति स्नान के लिए गंगासागर पधारे पुरी के श्रीगोवर्धन मठ के 145वें शंकराचार्य पीठाधीश्वर स्वामी शंकराचार्य निश्चलानंद ने सोमवार को आयोजित संवददाता सम्मेलन में देश की शासन व्यवस्था पर अपना मंतव्य व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्रसंघ का दायित्व बनता है कि वह विश्व स्तर या राष्ट्रीय स्तर पर न्याय पीठ की स्थापना करे. पाकिस्तान, बांग्लादेश या अरब किसी देश में अगर कोई मुस्लिम व्यक्ति उत्पीड़न का शिकार होता है तो संयुक्त राष्ट्रसंघ का न्यायपीठ उसके मानवाधिकारों की रक्षा करें.
उन्होंने कहा कि अगर पीड़ित व्यक्ति अपना देश छोड़ना चाहता है तो उसे दूसरे किसी मुस्लिम देश में बसाया जाए. अगर वहीं कोई हिंदू किसी मुस्लिम या इसाई देश में पीड़ित हो तो उसे हिंदु राष्ट्र में बसने की अनुमति दी जाए. सबसे जरूरी है कि भारत, नेपाल व भूटान को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाए.
उन्होंने कहा कि धर्म एक दीर्घकालीन राजनीति है एवं राजनीति एक अल्पकालीन धर्म है. धर्म विहीन राजनीति भ्रष्टाचार की जननी एवं पाखंड को जन्म देती है. वर्तमान में देश में धर्मविहीन राजनीति का साम्राज्य कायम है. मैं किसी दल विशेष का नहीं वरन रामराज व धर्मराज्य का पक्षधर हूं.
विश्वस्तर का सर्वोत्कृष्ट तीर्थस्थल है गंगासागर
शंकराचार्य कहते हैं कि गंगासागर का पौराणिक महात्मय है, क्योंकि यह गंगा जी का विलय स्थल है और मोक्ष प्रदान करता है. यहां पर मानव समाज के साथ-साथ गंधर्व, अप्सरा, देव-पितर सभी पुण्य स्नान करते हैं. हमारे आदि ऋषियों ने तो सनातन काल से ही इसे सर्वोत्कृष्ट तीर्थस्थल उद्घोषित कर चुके हैं. केंद्रीय शासन तंत्र अपनी सहभागिता का परिचय देकर इसे विश्व स्तर का या भारत के स्तर का उच्चतम तीर्थ स्थल घोषित करता है तो उसे यश ही होगा.
प्रशासन बनाये रखे तीर्थस्थलों की मौलिकता
स्वामी जी आगे कहते हैं कि सागर आते हुए मुझे 20 साल हो गये. इस दौरान राज्य सरकार की ओर से यहां के विकास के लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं वह प्रशंसनीय है. लेकिन राज्य व केंद्र को इस बात का ध्यान रखना होगा कि सुविधा व विकास के नाम पर तीर्थस्थली की मर्यादा व मौलिकता को हर हालत में कायम रखना होगा. तभी तीर्थस्थली का महत्व बरकरार रहेगा. वरना यह पर्यटन के नाम पर मात्र पिकनिक स्पॉट बन जायेगा. क्योंकि धर्म व आस्था धैर्य का विषय है. साथ ही तीर्थयात्रियों को किसी भी प्रकार की समस्या ना हो इसका भी पर्याप्त ध्यान रखना प्रशासन का दायित्व है.