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कुछ भी हो, संविधान को झुकने नहीं दूंगा : राज्यपाल

राज्यपाल जगदीप धनखड़ को अपना पद संभाले भले ही कुछ महीनों का ही वक्त हुआ हो, पर लगता है मानो विवादों के साथ उनका नाता हो गया है. विशेषकर राज्य सरकार के साथ आये दिन, चाहे वह सोशल मीडिया हो या मेनस्ट्रीम मीडिया में राज्यपाल और राज्य सरकार मानो आमने-सामने दिख रहे हैं, पर फैसलों, […]

राज्यपाल जगदीप धनखड़ को अपना पद संभाले भले ही कुछ महीनों का ही वक्त हुआ हो, पर लगता है मानो विवादों के साथ उनका नाता हो गया है. विशेषकर राज्य सरकार के साथ आये दिन, चाहे वह सोशल मीडिया हो या मेनस्ट्रीम मीडिया में राज्यपाल और राज्य सरकार मानो आमने-सामने दिख रहे हैं, पर फैसलों, अपने बयानों में बिल्कुल निर्भीक श्री धनखड़ संविधान के दायरे में सदैव बने रहने में और उसके मुताबिक ही आचरण करने में विश्वास करने का दावा करते हैं.

प्रभात खबर कोलकाता के वरिष्ठ स्थानीय संपादक कौशल किशोर त्रिवेदी के साथ वरिष्ठ समाचार संपादक अजय विद्यार्थी और वरीय संवाददाता अमर शक्ति ने राजभवन में राज्यपाल श्री धनखड़ के साथ विभिन्न मुद्दों पर लंबी बातचीत की. इस विशेष बातचीत में उन्होंने लोकतंत्र, प्रशासन और केंद्र-राज्य संबंधों से जुड़े कई पहलुओं पर अपनी बेबाक राय रखी. प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश:
Q पश्चिम बंगाल के संवैधानिक प्रधान (राज्यपाल) के रूप में काम करते हुए आपका अनुभव कैसा रहा है? क्या आप अपने अनुभव से खुश हैं?
उत्तर : कोलकाता ‘सिटी ऑफ जॉय’ है. सांस्कृतिक रूप से बंगाल देश में सबसे धनी है. बंगाल की संस्कृति का मुकाबला दुनिया का शायद ही कोई भी देश कर पायेगा. अगर बंगाल को पर्यटन के नजरिये से देखें, तो मैं हमेशा से ही कहता आया हूं कि सिंगापुर, स्विट्जरलैंड, फ्रांस, इटली, न्यूजीलैंड को अगर एक साथ ला दिया जाये, तो भी बंगाल का पलड़ा ही भारी रहेगा. यहां जरूरत है सिर्फ स्त्रोतों काे विकसित करने की. अगर हम इनका विकास करेंगे, तो पश्चिम बंगाल पर्यटन के क्षेत्र में भी नंबर वन होगा.
बंगाल जैसे सांस्कृतिक प्रदेश का राज्यपाल बनना किसी के भी जीवन की ऐतिहासिक उपलब्धि हो सकती है. मुझे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ है. आजादी के बाद जन्मा हुआ बंगाल का पहला राज्यपाल हूं. पश्चिम बंगाल मेरा कार्य क्षेत्र भी रहा है. मैंने यहां पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय के सामने मुकादमा लड़ा है. मैं आनंदो जी के साथ, पॉल साहब व शक्तिनाथ जी के साथ भी कई मुकदमे लड़ चुका हूं.
जिन अधिवक्ताओं ने मुझे सहयोग किया था, वे आज न्यायाधीश बन चुके हैं. न्यायाधीश पिनाकी घोष जब नये-नये न्यायाधीश बने थे, उस समय मैंने उनके सामने मुकदमा लड़ा था. वरिष्ठ न्यायाधीश दीपंकर दत्ता के सामने भी कई मामलों की पैरवी की है. बंगाल से मेरा जुड़ाव काफी पुराना रहा है. 30 साल पहले जब केंद्र सरकार में मंत्री था, तो उस समय भी मेरा यहां आना हुआ था.
Q राज्यपाल का पद ग्रहण करने के पहले आपने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की काफी प्रशंसा की थी और आप विरोधी दल की नेता के रूप में आंदोलन के दौरान घायल होने पर उनसे मिलने कोलकाता भी आये थे, लेकिन अब यह संबंध इतना कड़वा क्यों हो गया है?
उत्तर: मेरे हिसाब से मेरे रिश्ते आज भी बेहतर हैं. यह दोष मैं दबी आवाज में यहां के पत्रकारों को देता हूं. आप (मीडिया) निरंतर यह बात फैला रहे हैं कि राज्यपाल का राज्य सरकार से टकराव है. अगर कहीं कोई टकराव है, तो राज्य सरकार का टकराव राज्यपाल से हो सकता है, लेकिन राज्यपाल का राज्य सरकार से टकराव कत्तई नहीं है. मैं हर किसी से यह जानना चाहता हूं कि क्या कोई ऐसा एक भी उदाहरण देंगे, कि राज्यपाल का वह (कोई) कदम राज्य सरकार से टकराने का है.
मैं संविधान के अनुसार कार्य कर रहा हूं. मैंने जो शपथ ली है, उसी के अनुसार कार्य कर रहा हूं. राज्यपाल की शपथ के दो पहलू हैं. पहला कि मैं देश के संविधान की रक्षा करूंगा और यह मेरा कर्तव्य है, जबकि कोई भी मुख्यमंत्री अपनी शपथ में संविधान को मानने की शपथ लेता है. दूसरी ओर, राज्यपाल संविधान की रक्षा करने की. साथ ही राज्यपाल की शपथ में लोगों की सेवा करने की बात कही गयी है.
मेरा हर कार्य पद संभालते वक्त ली गयी मेरी शपथ के अनुरूप है. इसलिए मेरा मानना है कि मेरी ओर से कोई टकराव नहीं है. अगर टकराव है, तो उधर से है. सरकार का राज्यपाल से टकराव है. इस टकराव को बातचीत के माध्यम से दूर करने का उत्तरदायित्व उनपर भी है और हम पर भी.
लेकिन मैं मानता हूं कि मुझ पर उत्तरदायित्व ज्यादा है और उसे कम करने के लिए मैं ज्यादा प्रयास कर रहा हूं. मैंने अपनी ओर से पूरी कोशिश की. बातचीत के लिए कई बार आमंत्रण भी भेजा. मैं उनके समय पर, उनके स्थान पर मिल कर बातचीत करने को तैयार हूं. राज्य सरकार का राज्यपाल के साथ टकराव का उदाहरण आपने पांच दिसंबर को देखा. विधानसभा का गेट मैंने बंद नहीं किया था.
इस घटना से पश्चिम बंगाल के विधानसभा का इतिहास कलंकित हुआ. पूरी दुनिया ने इसे देखा था. मैं इस कलंक को धोना चाहता था. मैंने ठानी कि मुझे इससे लंबी लकीर खींचनी होगी. इसलिए मैंने फिर विधानसभा अध्यक्ष से संपर्क किया और 12 दिन के बाद 17 दिसंबर को फिर विधानसभा गया और उस कलंक को धोया. मैंने पहले भी उनसे कहा था, मैं विधानसभा घूमना चाहता हूं.
लेकिन उन्होंने कहा कि वह नहीं रहेंगे. मैं वहां विधानसभा अध्यक्ष से मिलने नहीं जा रहा था, मैं विधानसभा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखना चाहता था. संविधान दिवस के अवसर पर विधानसभा में प्रथम वक्ता प्रदेश के राज्यपाल नहीं होंगे, ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती. देश के संविधान में ऐसा नहीं है. फिर भी मैं खून का घूंट पी कर रह गया.
जगदीप धनखड़ नाराज हो सकता है, लेकिन राज्यपाल को नाराज होने का हक नहीं है, क्योंकि वह संवैधानिक पद पर है. मेरे आचरण से सौजन्यता खत्म नहीं हो सकती. कोई जल्लाद भी मेरी सौजन्यता को मुझसे अलग नहीं कर सकता. मेरा जीवन ऐसा ही रहा है और मैं पश्चिम बंगाल में आकर सौजन्यता भूल जाऊं, ऐसा हो ही नहीं सकता.
ऐसा करना पश्चिम बंगाल का अपमान करना होगा, जो कि मैं सपने में भी नहीं कर सकता. तीन बजे मैं गया, हाथ जोड़ कर जब विधानसभा में घुसा, तो मुख्यमंत्री ने मेरी ओर देखा तक नहीं. प्रतिपक्ष के नेता को मैंने अभिवादन किया. हर चीज को सकारात्मक रूप से देखना चाहिए. इसमें भी कहा गया कि गवर्नर ने कर्टसी (सौजन्यता) नहीं मानी.
Q सत्तारूढ़ दल के नेता व मंत्री आप पर आरोप लगा रहे हैं कि आप समानांतर सरकार चला रहे हैं ?
उत्तर: माननीय मुख्यमंत्री जी ने दर्जनों बार कहा है कि राज्यपाल यहां समानांतर सरकार चला रहे हैं. चुनौती देने का काम राज्यपाल कर ही नहीं सकता. क्या राज्यपाल समानांतर सरकार चला रहा है, क्या यह आरोप गंभीर नहीं है? आधा दर्जन मंत्री राज्यपाल के कपड़े फाड़ने में लगे हैं. मुझे फर्क नहीं पड़ता. इससे उनको ही नुकसान होगा. ‘वह टूरिस्ट हैं. उन्हें टूरिस्ट की तरह रहना चाहिए. उनको चिड़ियाघर जाकर घूमना चाहिए.’
मैंने इसलिए उनका ध्यानाकर्षण कराना चाहा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर का ऐतिहासिक फैसला आया था और मुख्यमंत्री ने कोई बयान नहीं दिया. पूरी दुनिया ने इस फैसले का स्वागत करते हुए अपनी बातें रखीं, लेकिन मुख्यमंत्री ने एक शब्द भी नहीं कहा. मुझे उनके चुप रहने पर विवाद नहीं है. लेकिन उनके चुप रहने के कारण पार्टी के किसी भी नेता ने कुछ भी नहीं कहा.
इसका मतलब यह है कि पार्टी व सरकार पर उनका पूरा कंट्रोल है. ऐसे में कोई अगर राज्यपाल के संबंध में गलत बयानबाजी कर रहा है, तो इससे भी यही संकेत जाता है कि इसके पीछे भी उनकी सहमति है. उनकी सहमति के बिना कोई कुछ भी नहीं बोल सकता.
आप ही बताइये, 11 अक्तूबर (पूजा कार्निवल) को मेरे साथ जो हुआ, पूरी मीडिया ने देखा. किसी ने कुछ नहीं कहा. चार घंटे में राज्यपाल को चार सेकेंड के लिए नहीं दिखाया गया. राज्यपाल को ऐसे कर दिया कि जैसे वे कटघरे में हैं और मुख्यमंत्री आलीशान महल में. पांच दिन बाद खबर आयी कि राज्यपाल 11 अक्तूबर के कार्यक्रम से अति प्रसन्न हैं. मैं जनता से प्रसन्न हूं. ममता जी के प्रशासन से प्रसन्न नहीं हूं.
इमरजेंसी से भी बुरे हालात हैं. मीडिया की भूमिका इस मुद्दे पर काफी उदासीन रही है. जिस दिन मीडिया डर जायेगी, उस दिन देश से गणतंत्र खत्म हो जायेगा. हालात को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह दिन अब दूर नहीं है. मैं वो हालात अभी देख सकता हूं. इमरजेंसी के दौरान मीडिया का अहम रोल था, लेकिन आज मीडिया डरी हुई है. क्या कुलपति को नोटिस देने के बाद भी उनका नहीं रहना कुलाधिपति का अपमान नहीं है?
Q मुख्यमंत्री सीएए और एनआरसी की खिलाफत कर रही हैं. उनके विरोधी बयान विज्ञापन में दिखाये जा रहे हैं? आपने इसका विरोध किया है?
उत्तर: हां, जनता के रुपये से देश के कानून के खिलाफ विज्ञापन कैसे दिया जा सकता है? किसी भी सरकार की इसके प्रति जवाबदेही है. मेरी भी जवाबदेही बनती है. नो एनआरसी, नो सीएए. संसद ने सीएए को पास कर दिया है, अब उसके खिलाफ कोई सरकार विज्ञापन देकर प्रचार कैसे कर सकती है?
वह पैसे बहा कर जनता को भ्रमित कर रही है, वह पैसे बहा कर मीडिया को कंट्रोल कर रहे हैं और उसमें मुख्य सचिव, डीजीपी व सीपी का फोटो लगाया जा रहा है. ऐसा करके आप प्रशासन को पंगु बना रहे हैं. लेकिन मैं इतना कहना चाहूंगा कि इस देश में कानून है. जिसने भी जनता के धन का दुरुपयोग किया है, उसके खिलाफ कानून के तहत कार्रवाई होगी. इसका जवाब देना होगा.
Q आरोप लगते हैं कि आप बिल रोकते हैं. एससी व एसटी बिल रोका गया.
उत्तर: 25 नवंबर को मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि एससी व एसटी बिल लाया जायेगा. लेकिन वह मेरे पास 29 नवंबर को आया. मैंने दो दिसंबर को जवाब दिया. चार दिसंबर तक कोई जवाब नहीं आया. पांच दिसंबर को अधिकारी आये, मैंने दो सवाल पूछे, जवाब आज तक नहीं आया. मुख्य सचिव को पत्र लिखा, उसका जवाब नहीं आया. बेबसी की हालत में मैंने आर्टिकल 175 का प्रयोग किया.
विधानसभा में जब कहा गया कि राज्यपाल ने बिल को रोका है, राज्यपाल की ओर से विधानसभा अध्यक्ष को पत्र दिया गया, लेकिन उन्होंने उसे सदन में नहीं रखा. यहां विधानसभा अध्यक्ष की भी नहीं चल रही है. ममता जी का बयान आया : राज्यपाल ने पूछा है कि पैसा कहां से आयेगा, यह तो हमारा काम है. मुख्यमंत्री के इस बयान से मुझे आश्चर्य हुआ कि वह ऐसा कैसे कह सकती हैं. मुख्यमंत्री के रूप में उनकी यह दूसरी पारी है. वह सांसद भी रह चुकी हैं.
उनको यह पता होना चाहिए कि राज्यपाल के पास वही बिल आता है, जो धन से संबंधित हो. वह जो प्रश्न पूछ रही हैं, यह सुन कर मैं दंग रह गया. वह बिल धन से संबंधित था, इसलिए मेरे पास आया था. अगर बिल में धन की बात नहीं होती, तो वह राज्यपाल के पास आता ही नहीं. राज्यपाल के पास वह आया, तो तभी सवाल उठा और सवाल उठना भी चाहिए. आंखें बंद कर पोस्टऑफिस का रबर स्टैंप बन कर कार्य करूं, यह मेरा आचरण नहीं है. किसी भी परिस्थिति में मैं ऐसा नहीं करूंगा.
Q आप पर अतिसक्रियता का आरोप लग रहा है. क्या कहेंगे?
उत्तर: उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन मुझसे एक या दो दिन पहले शपथ ली हैं. मैंने 30 जुलाई को शपथ ली थी. उन्होंने 28 जुलाई को ली थी. वह मुख्यमंत्री भी रही हैं.
राज्यपाल भी हैं. दोनों पदों पर रही हैं. उन्होंने गवर्नर्स कांफ्रेंस में एक पुस्तिका वितरित की थी. सभी आश्चर्यचकित थे, क्या हो रहा है? मैंने वहां पश्चिम बंगाल का मुद्दा नहीं उठाया और पश्चिम बंगाल के बाहर उठाऊंगा भी नहीं. पश्चिम बंगाल की बात पश्चिम बंगाल के बाहर नहीं करूंगा. यह मेरा घरेलू मामला है. मैं सुधारूंगा, मैं प्रयास करूंगा. मेहनत करूंगा और आवश्यकता पड़ी तो किसी को झुकाऊंगा, लेकिन संविधान को नहीं झुकने दूंगा.
जिस दिन संविधान झुक जायेगा, डेमोक्रेसी (लोकतंत्र) खत्म हो जायेगी. उसको नहीं झुकने दूंगा, जिसको बचाने की मेरी प्रतिबद्धता है. वह (उत्तर प्रदेश की राज्यपाल) कलेक्टर के साथ मीटिंग कर रही हैं. वाइस चांसलर की मीटिंग कर रही हैं. वह जगह-जगह जा रही हैं. हेलीकॉप्टर से जा रही हैं. हवाई जहाज से जा रही हैं. स्कीम का पता लगा रही हैं. एनालिसिस कर रही हैं और आप अंदाजा नहीं लगा सकते हैं.
उनकी क्या-क्या गतिविधियां हैं. उन्होंने मुझे तीन कॉपियां दी थीं. एक ममता जी को भेज दी है और एक प्रेस सचिव को दिया हूं और मैंने ममता जी को पत्र में यही लिखा है : ये उदाहरण हैं. अन्य राज्यपाल क्या कर रहे हैं और मैंने किया क्या है. कोई बतायेगा ये मुझे कि मैंने क्या किया है? एक बात चल रही है. राज्यपाल ओवर एक्टिव (अति सक्रिय) हैं.
राज्यपाल विक्टोरिया मेमोरियल घूमने चला गया, तो उसने क्या अपराध किया? रवींद्र सरोवर घूमने चला गया, तो क्या अपराध किया? बॉटेनिकल गार्डेंन चला गया, तो अपराध किया? क्यों नहीं जाऊंगा? मेरा यह काम है. मैंने शपथ ली है. यदि किसी को परेशानी है, तो वह धारा 159 पढ़ ले. उनकी समझ में आ जायेगा. वह एक सीनियर लीडर हैं. एक अनुभवी नेता हैं. दूसरी बार मुख्यमंत्री हैं एवं एनर्जेटिक हैं. लेकिन मुझे भी देखना है.
मैं कहता हूं कि प्रांत के हर कोने में जाऊंगा. उनको सूचना दूंगा. उनकी इजाजत लेनी होगी? जिस दिन मैंने सरकार की इजाजत लेकर कहीं जाना शुरू कर दिया, जिस दिन सरकार से इजाजत लेकर मैंने आपसे मिलना शुरू कर दिया, मैं राज्यपाल का पद एक सकेंड के लिए ग्रहण नहीं करूंगा, क्योंकि ये संविधान की मूल भावना के खिलाफ है.
यह कुठाराघात है, जो संविधान निर्माता की आत्मा को झकझोर देगा. मैं बहुत सरल आदमी हूं. आइ विल डू इट टू इन द बेस्ट ऑफ माइ कैपिसिटी. एक नहीं, कितने किस्से सुनाऊं. मेरे पत्रों का जवाब नहीं मिलता है. मैं मुख्यमंत्री को पत्र लिखूं, जवाब सेक्रेटरी दे रहे हैं. मैं छोटी-मोटी बातों को बर्दाश्त कर लेता हूं. शायद धीरे-धीरे ठीक हो जायेगा.
Q मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नागरिकता संशोधन कानून का लगातार विरोध कर रही हैं? आपने उनके विरोध करने के तरीके पर सवाल उठाया है?
उत्तर : मेरा मानना है कि देश के कानून के खिलाफ वह व्यक्ति आंदोलन नहीं कर सकता है, जो संवैधानिक पद पर बैठा है. मैंने कहा तो उनकी पार्टी की ओर से बयान आया है कि वह टीएमसी की अध्यक्ष के रूप में (आंदोलन) कर रही हैं. मैंने जवाब दिया है कि क्या उन्होंने शपथ टीएमसी की अध्यक्ष के रूप में ली हैं.
उन्होंने शपथ भारत के संविधान की ली है. आप सरकार के धन का दुरुपयोग नहीं कर सकते हैं. देश के कानून को चुनौती देने के लिए राज्य के धन का व्यय नहीं कर सकते हैं. क्या-क्या बताऊं? राज्य के धन से किसी भी कानून को चुनौती देना अपराध है और अपराधी को कानून के तहत सजा होती है.
सरकारी धन से किसी भी कानून को चुनौती देना अपराध है. कानून के तहत सजा होती है. सिस्टम जानना होगा. इसपर ज्यादा नहीं बोलना चाहता हूं. न्यायपालिका की बात पर गौर कीजिये और उसे आगे बढ़ाइये. यह बयान देना कि मेरी डेड बॉडी के ऊपर कानून बनेगा, मरते दम तक कानून लागू होने नहीं दूंगी. आप क्यों सरकार की कुर्सी पर बैठी हैं. आप क्रिटिकल टाइम में गवर्निंग नहीं कर रही हैं.
इससे राज्य का कितना बड़ा नुकसान हो रहा है. राज्य में भय का वातावरण बन रहा है. निष्क्रियता जबदस्त रूप से दिखायी दे रही है. ये खेल यदि चलता रहा, तो डेमोक्रेसी को बहुत बड़ी चुनौती मिलती है. ये देश के लिए अच्छा नहीं है. राजनीतिक दल क्या करते हैं, ये उनका सरोकार है.
हां, उन्हें भी कानून के दायरे में काम करना चाहिए. हिंसा को हमें हर हाल में दूर रखना होगा. शांतिपूर्ण आंदोलन होना चाहिए. मैं बात करता हूं, तो आपको पसंद नहीं आता है. आइ एम ए वरिड मैन, नो डाउट एबाउट इट. (मैं चिंतित हूं. इसमें कोई शंका नहीं है) ऐसी बातों का निराकरण होना चाहिए. सार्वजनिक रूप से मैंने क्यों कहा है, मैं आपसे (ममता बनर्जी) मिलने के लिए तैयार हूं.
डायलॉग करना चाहता हूं. कम्युनिकेशन के लिए तैयार हूं. अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. आपके स्थान पर, आपके डेट के अनुसार. डायलॉग होगा, तो वे मुझसे मेरी बातें पूछ सकती हैं. बिल के बारे में पूछेंगी, तो मैं बताऊंगा कि यह बिल मेरे पास आया ही है, इसलिए क्योंकि यह मनी बिल है. हर चीज का जवाब दूंगा. मेरे प्रश्न हैं, उनका जवाब भी मैं उनसे लेना चाहूंगा.
Qआपने राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाया है. विश्वविद्यालय में नियम लाकर आपके अधिकार सीमित कर दिये गये हैं?
उत्तर : यहां शिक्षा को बिल्कुल तहस-नहस कर दिया गया है. एक राज्यपाल को कंट्रोल करने के लिए सबकी नींद हराम हो गयी है. करोड़ों रुपये खर्च हो गये हैं. कितने लोग आते हैं और एक दिन पहले मीटिंग रद्द कर देते हैं..
मजाक बना दिया है एजुकेशन का. सुधार की बात तो हो नहीं रही, उसकी दुर्गति की जा रही है. कम से कम सब्जी काटने वाले चाकू से एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन की सर्जरी मत करो. ये बहुत संवेदनशील मामला है. मैंने पहले दिन से कहा था. यूनिवर्सिटी के मामले में सरकार की भूमिका सीमित है. राज्यपाल की, चांसलर के रूप में और भी सीमित है.
विश्वविद्यालय में स्वायता आने दें. उनको काम करने दो, उनको सांस लेने दें. उनको काम करने दें. उन्हें स्वतंत्रता दें. जितना काम सरकार का है, उससे ज्यादा नहीं करना चाहिए. मेरा जितना सीमित काम है, मुझे उससे ज्यादा नहीं करना चाहिए. गाड़ी वाइस चांसलर को चलानी है. गाड़ी प्रोफेसर को चलानी है. और गाड़ी को न तो राज्यपाल चला सकता है और न ही राज्य सरकार.
एक्ट में बिना संशोधन किये नियम बना दिया गया. मेरा काम अधिकार लेना नहीं है. मेरा काम कर्तव्य का निर्वाह करना है. एक काम इनके बस में नहीं है. भारतीय संविधान से शपथ से इनका लेना-देना नहीं है. मैंने संविधान की शपथ ली है. विधानसभा में जो कानून बनता है, वह विधानसभा बनायेगी. जितने एप्वाइंटमेंट मुझे मिलने चाहिए थे. सर, एक भी मुझे नहीं मिले. सभी गवर्नर इंटाइटल्ड हैं.
सभी राजभवन को यह मिलता है. सभी गवर्नर और सभी मंत्री इंटाइटल्ड हैं. अपना स्टाफ लायें. आठ-दस लोगों का, ताकि सुचारू रूप से काम कर सकें. मैंने लिख दिया है. मैं मंत्री भी रहा हूं, लेकिन कान में जूं तक नहीं रेंगी. भेजता हूं, इंतजार करता हूं. 50वीं गवर्नर्स कांफ्रेंस थी. मैंने मुख्यमंत्री को कई सप्ताह पहले राज्य की कुछ बातों के लिए लिखा था कि मैं सरकार के मुद्दों को केंद्र के सामने उठाऊंगा. कोई सवाल नहीं मिला.
तीन सप्ताह के बाद कांफ्रेंस के लिए एक दिन पहले, तीन डिमांड भेजे गये. उन तीनों डिमांड को मैंने जैसा का तैसा उठाया, बिना कॉमा, फुटस्टॉप के उठाया. और मेरे साथ क्या हो रहा है? उसकी चर्चा मैंने वहां बिल्कुल नहीं की. ये कभी नहीं करूंगा. आज जो मेरे साथ ऐसा कर रहा है अगर वह शीशे में देखेगा, तो उसको खुद की शक्ल धूमिल नजर आयेगी.
Q क्या राज्य की परिस्थिति ऐसी नहीं है कि केंद्र सरकार हस्तक्षेप करे?
उत्तर: देखिये. मेरा काम सरकार के लिए परेशानी खड़ा करना नहीं है. मेरा काम यह सुनिश्चित करना है कि सरकार संविधान के तहत बेहतर तरीके से चले. इसलिए मैं ये बातें करता हूं. मैंने कहा कि बुलबुल चक्रवात के दौरान सरकार ने अच्छा काम किया, तो पूरी मीडिया ने हेडलाइन कर दी कि राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को सराहा.
तब तो आपत्ति नहीं हुई ? मैं राज्यपाल हूं और मुझे आइना दिखाने का भी अधिकार है. शिक्षा जगत की बहुत ही भयानक स्थिति है. मैं नहीं जानता हूं कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं. देश के भविष्य के साथ ऐसा घिनौना खिलवाड़ करना, आनेवाली पीढ़ियों को इस तरह से कुंठित करना, अनुचित है, सर्वथा अनुचित है.
Q नागरिकता संशोधन कानून को आप किस रूप में देखते हैं. इस कानून के संबंध में आपकी राय क्या है?
उत्तर: राज्यपाल व व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि देश के संसद ने कानून बनाया है. वह कानून सर्वोच्च न्यायालय की समीक्षा में गया. सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन नहीं दिया है. वह कानून देश के किसी भी नागरिक के खिलाफ किसी भी परिस्थिति में नहीं है. ये राज्यपाल और एक कानूनविद की हैसियत में बोल रहा हूं. मैं हर तरीके से कहता हूं.
देश के नागरिक की हैसियत से भी. कानून के जानकार की हैसियत और राज्यपाल के जिम्मेदार पद पर बैठे रहते हुए कह रहा हूं कि नागरिकता संशोधन कानून देश के किसी भी नागरिक पर किसी भी तरीके से किसी भी परिस्थिति में लेशमात्र प्रभाव नहीं डालेगा.
यह स्पष्ट है. जो भ्रमित कर रहे हैं, जो इसे लेकर दूसरी बातें कह रहे हैं, मैं उसे संजीदगी की परिभाषा में नहीं लेता हूं. ‘दैट इज नॉट ए गुड कंडक्ट.’ मेरा तो प्रयास था कि ममता जी ऐसी विकट परिस्थिति में एक स्टेट्समैन बनें, लेकिन वह स्टेट पॉलिटिक्स करती रह गयीं.
यूएनओ से जनमत संग्रह की बात हो रही है. इस बारे में मैं पहले ही अपनी बात रख चुका हूं. राजभवन का कार्य क्षेत्र है. उसके लिए संविधान में प्रदत्त अधिकार हैं. राजभवन के पास बहुत ताकत है. दिक्कत नहीं है. मैं आग्रह करता रहूंगा. विनती करता रहूंगा. डायलॉग की बात करता रहूंगा, लेकिन मैं अपने आचरण को कमजोरी बनने नहीं दूंगा.

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